गुरुवार, 28 अगस्त 2014

नागपुरी कविता - चाईरो कोना (बटे) है डहर , लेकिन सब डहर में है मोड़ ! - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - चाईरो कोना (बटे) है डहर , लेकिन सब डहर में है मोड़ !
- अशोक "प्रवृद्ध"


चाईरो कोना (बटे) है डहर , लेकिन सब डहर में है मोड़ !
आब तोहें बताव ऐ जिन्दगी , जायेक है तोके कोन ओर !!

सब कोना (बटे) से आवथे आवाज , हल्ला - गुल्ला , कोलाहल आऊर है शोर !
मोके कोनों समझ में आवेल नहीं , मंजिल है मोर कोन ओर !!

सब कर सब बेकल हैं हियाँ , सब कर है सपना कर जोड़ !
केकर सपना के तोड़ों मोयं , कईसन कठिन है ई होड़ !!

जिन्दगी कर संघर्ष में , प्रवृद्ध हैं कतई टेढा मोड़ !
लेकिन ठाईन लेबें तोयं अगर , मंजिल है नहीं कोनों दूर !

जोन बटे भी चईल पड़ , डहर है तोर ओहे ओर !
मंजिल भी है हूवें तोर , सारा संसार है तोर ओहे ओर 

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