गुरुवार, 28 अगस्त 2014

नागपुरी कविता -सब केऊ महफ़िल में चिराग , जलाय नी सकेला - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता -सब केऊ महफ़िल में चिराग , जलाय नी सकेला
 - अशोक "प्रवृद्ध"

सब केऊ महफ़िल में चिराग , जलाय नी सकेला
 जे खुद है एकले . ऊ अन्धेरा मिटाय नी सकेला 

सब केऊ कर नसीब में नी होवे , ह्रदय कर खुशी (उल्लास) इसने
 खुशी पैदा करेक वाला भी ऊकर उपाय बताय नी सकेला 

नादाँ रहेला ऊ ,जे प्यार के बेस तईर पाय लेवेला 
व्यापारी आदमी कखनो खुद कर प्यार जताय नी सकेला 

नेंव (नींव / बुनियाद) बेस होवोक तो इमारत बुलन्द रहेला 
हवा कर झोंका "प्रवृद्ध" , उके कमजोर बनाय नी सकेला 

खुशबु से महकेला बगीचा , भगवान कर ई करिश्मा है 
माली (बागवान) कहियो भी , फूल के महकाय नी सकेला

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