गुरुवार, 28 अगस्त 2014

नागपुरी कविता - महंगाई डाईन कर डंस -अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता -  महंगाई डाईन कर डंस
 -अशोक "प्रवृद्ध"


बरसाईत होवेला
 कि महंगाई बरसेला 
बाजार में सब चीज महंगे है !
बाहरे बाढ जईसन नजारा है 
ऐने घर कर नाव डूबेक वाला है !
तियन (सब्जी)मनक भाव 
बदरी नीयर गरजथे 
सब चीज के महंगाई डाईन डईन्स ले हे 
(आदमी) इन्सान आऊर आदमियत (इन्सानियत)
काले ऐतना सस्ता होय गेलक ?
डहर चलते ईकरसे दोकानदार मनक 
हस्ती होय गेलक
बाजार में आलू , आटा आऊर चाऊर
 प्याज , दूध , पानी तक महंगा है !
मगर आदमी बहुते सस्ता है 
ईके लेई जावा 
जईसन मर्जी सतावा 
मारा , खावा , पकावा 
केखो कोनों फरक नी पड़ी 
भूखल कर पेट तो भरी 
लेकिन महंगाई डाईन कर डंस नी चुभी !

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