सोमवार, 24 मार्च 2014

नागपुरी कविता -आम आदमी कर मुखौटा लगायके , भारतीय जनता आऊर मोदी के निशाना न बनावl -अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता -आम आदमी कर मुखौटा लगायके , भारतीय जनता आऊर मोदी के निशाना न बनावl
अशोक "प्रवृद्ध"


तनी जुबूड़ बात कर ईसन तमाशा ना बनाव ,
सत्ता कर इय्याईद में , ईसन लोर के पोखरा ना बनाव l

मानथों कि गम बहुत है , कुर्सी कर छूटेक कर तोके 
लेकिन भ्रष्टाचार से लड़ेक कर , ईके बहाना ना बनाव l

ई सच है कि तोर सवाल (बात) के तवज्जो नी मिललक कहूँ ,
लेकिन खिसियाहट में क़ानून कर मजाक ना बनाव l

तोर सब इल्जाम आऊर आरोप सबके सम्हराय के राईखहों मोयं ,
बाहर बटे तोहमत आऊर घर में मिलेक कर बहाना ना बनाव l

शीला पर निशाना आऊर निगाह रहे दिल्ली शहर कर कुर्सी पर 
लोकपाल कर बहाना से पद छोईड़ भाईगके आऊर बेवकूफ ना बनाव l

बिच डगर में छोईड़ रहीस साथ अन्ना हजारे कर तोयं सत्ता कर खातिर ,
आम आदमी कर मुखौटा लगायके , भारतीय जनता आऊर मोदी के निशाना न बनावl

रविवार, 16 मार्च 2014

क्षमा करब ! माफ करब !! झूठ नी कह्थों !!!- अशोक "प्रवृद्ध"

होली कर शुभ कामना आउर बधाई 


शुभ होलिका दहन आउर होली  !
होलिका दहन कर मंगल कामना आउर बधाई  !!
शुभ होलिका दहन 

क्षमा करब ! माफ करब !! झूठ नी कह्थों !!!
अशोक "प्रवृद्ध"


ई गरीब ठीना आपने (राउरे) मन के,
 होली कर हार्दिक शुभ कामना देवेक सिवा 
आउर कोनों सन्देश नखे !
क्षमा करब ! 
माफ करब !!
झूठ नी कह्थों !!!

आपने मन संघे बांटेक ले तैयार कईरके 
राखल मोर सब धन - असबाब 
सब लूटाय गेलक !!
सब कुछ मिट गेलक !!!
क्षमा करब ! 
माफ करब !!
झूठ नी कह्थों !!!

बहुते सामान (सामग्री) तैयार कईरके राखल रहे , 
मगर किस्मत में नी रहे ,
से ले ढंग से सम्हरायके राखल नी रहे ,
मोर आपन गलती से
सब लूटाय गेलक !
सब कुछ मिट गेलक !!!
क्षमा करब ! 
माफ करब !!
झूठ नी कह्थों !!!


के के कहों ई दुःख कर बात 
ई दुःख कर घड़ी में केऊ नखयं साथ ?
किस्मत कर देखू मार केऊ नखयं पूछत 
 प्रवृद्ध कैसे होय गेले तोयं अनाथ ??
तोर सब कैसे लूटाय गेलक ???
का तरी सब कुछ मिट गेलक ????
क्षमा करब ! 
माफ करब !!
झूठ नी कह्थों !!!

शनिवार, 8 मार्च 2014

स्व.तिलेश्वर साहू के हार्दिक श्रद्धांजलि

लकड़ी व्यवसायी कर रूप में आपन जीवन कर शुरू कइरके झारखण्ड कर प्रदुषण नियंत्रण पार्षद कर चेयरमैन तक कर सफर तय करेक वाला आजसू पार्टी आउर छोटा नाग्पुरियता तेली उत्थान परिषद कर नेता तिलेश्वर साहू कर आइझ गोली माईरके हत्या कईर देल गेलकl साहु के तिन गोली मरल जायहे आउर अस्पताल ले जायेक बेरा उनकर मौत होय गेलकl खबर है कि ह्त्या कर जिम्मेवारी उग्रवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएलएफआई) लेवथे l
स्व.तिलेश्वर साहू के हार्दिक श्रद्धांजलि 
भगवान तिलेश्वर साहू कर आत्मा के शांति देवों

शुभ जनानी दिवस

शुभ जनानी दिन 
शुभ जनानी दिन l
आइझ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हके . आइझ सम्पूर्ण संसार में महिला मनके पूजल जाएला लेकिन बाकी दिन ???????????????????????
खैर हमरे मन तो आदि काल से ही रोजे दिन स्त्री जाति कर सम्मान करीला l
गछ - बृक्ष , नदी , प्रकृति ,सरना ,धरती आदि के भी हमरे कर संस्कृति मे माय माईन के पूजा कारक कार परम्परा है l
हियाँ तक कि आपन देश के भी हमरे भारतमाता , राष्ट्रमाता कईह्के सम्बोधित ,नमन , प्रार्थना करीला l
आईज विश्व जनानी दिन पर सब माय - बहिन के हामर 
बटसे गोड़लगी , सादर प्रणाम ,नमन , जोहार आउर शुभकामना आउर ढेईरो बधाई

रंगीन मिजाज आउर वासंती चोला ओढे वाला भारतीय जनता जनार्दन सबके रंगेक में लाइगहयं l



वसंती माहौल पूरा होली कर रंग में रईन्ग के होलियाना होय चुईक हे l का सुब्रत राय आउर का जोगेंदर यादव ?
 रंगीन मिजाज आउर वासंती चोला ओढे वाला भारतीय जनता जनार्दन सबके रंगेक में लाइगहयं l तरोताजा
 समाचार कर अनुसार आम आदमी पार्टी कर नेता आउर गुड़गांव से लोकसभा चुनाव कर उम्मीदवार जोगेंदर
 (योगेंद्र) यादव कर चेहरा में एगो आदमी स्याही पोईत देलक , जे बेरा ऊ मिडिया से गोठियात रहयं से खने 
ऊ आदमी पाछे बट से आलक आउर जोगेंदर यादव कार मुँह आउर गाल में स्याही पोईत के होली खेई
 लेलक l सियाही (स्याही) रगड़ेक बेर ऊ आदमी भारत माता कर जय कहत रहे l
भारत माता कर जय 
वंदे मातरम l

हियाँ दिल टूटल दिल जलल मनक जुटान है

हियाँ दिल टूटल दिल जलल मनक जुटान है काले सितम करिसला ?
ऐ समय तोयं रूईक जा काले आपन चलेक पर गुमान करिसला ??
हम बड़ा जतन से जे के दिल में छुपायके राईख रही ,
ओहे दिल के तोईड़ देलक , ओहे नी भरे वाला जख्म देलक l
आब नींद तो आवेला बहुत "प्रवृद्ध" मगर सुतेक कर नाव नखे ll

नागपुरी कविता - लूट कर मिल गेलक छूट , रे भईया जईम के लूटा - अशोक “प्रवृद्ध”

नागपुरी कविता - लूट कर मिल गेलक छूट , रे भईया जईम के लूटा 
- अशोक “प्रवृद्ध”  


लूट कर मिल गेलक छूट , रे भईया जईम के लूटा
खाली कईर देवा सबकर जेब ,रे भईया जईम के लूटा

मूड़ी से लेईके गोड़ तक, लगाय देवा रेलम पेल ,
रे भईया जईम के लूटा
गरीब से लेईके अमीर तक, सब कर बजाय देवा बाजा आउर ढोल
रे भईया जईम के लूटा
लूट कर मिल गेलक छूट , रे भईया जईम के लूटा
खाली कईर देवा सबकर जेब , रे भईया जईम के लूटा

अईसन निकलावा दिवाला, खायेक कर पईड़ जाए सबके लाला
रे भईया जईम के लूटा
बीवी है हरसाल , मियाँ कर ढीला होवल पैजामा
रे भईया जईम के लूटा
लूट कर मिल गेलक छूट , रे भईया जईम के लूटा
खाली कईर देवा सबकर जेब , रे भईया जईम के लूटा

कोईला से लेईके सोना तक , सबसे भरा आपन जेब
रे भईया जईम के लूटा
शरम - हया आउर इज्जत , देवा सबके बेईच
रे भईया जईम के लूटा
लूट कर मिल गेलक छूट ,रे भईया जईम के लूटा
खाली कईर देवा सबकर जेब ,रे भईया जईम के लूटा


सड़थे अनाज , प्रवृद्ध आउर किसान चढथयं बलि कर भेंट  
रे भईया जईम के लूटा
सरसों है जग मग , निकलाय लेवा ईकर तेल
रे भईया जईम के लूटा
लूट कर मिल गेलक छूट ,रे भईया जईम के लूटा
खाली कईर देवा सबकर जेब ,रे भईया जईम के लूटा




शुक्रवार, 7 मार्च 2014

नागपुरी कविता - वसन्त - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - वसन्त
अशोक "प्रवृद्ध"

जाड़ कर बंद कोठा कर दुरा से 
अंधार के इन्जोर में लाइन्हे वसन्त l

महकत- गमकत फूल कर कली ले भौंरा कर ,
प्रेम सन्देश लाइन्हे वसन्त
 
पीयर रंगक मुँह में वसन्ती आभा 
फेंकते - बिखराते आहे वसन्त

किसान ले फसल कर सौगात 
ले के आयहे वसन्त

जीवन के जीवन देवेक 
एक धाँव फिर से आहे वसन्त

आउर पढ़े वाला छौव्वा मन ले 
देवी सरस्वती मांय कर वरदान ले के आयहे वसन्त 

मंगलवार, 4 मार्च 2014

नागपुरी कविता - ई बात आउर है ई धूप मोर से हाईर गेलक - अशोक "प्रवृद्ध'

नागपुरी कविता - ई बात आउर है ई धूप मोर से हाईर गेलक 
अशोक "प्रवृद्ध'


जबान रहते हुए जे बेजुबान रही 
हमरे कर देश में ईसने सरकार रही 


जे मीठा पानी कर तालाब में मछरी पकड़ेक सीख गेलक 
गोड़ आउर पाईन्ख कर रहते ऊ बे - उड़ान रही 
ई बात आउर है ई धूप मोर से हाईर गेलक 
लेकिन गाछ कहाँ मोर छाइंह कर सायबान रही 
महल है ऊ मनक जे के नेंवे (नींव) कर पत्ता नखे 
मकान बनालयं जे ऊ बे - मकान  रही 
मोंय फ़ैल होवेक डर से दिनसगर (दिन - राईत पढ़त रहों 
मोर डहर (सफर) में हर - हमेशा इम्तिहान रही 
गुड्डी (पतंग) राईख के उड़ायखे भूईल गेलों 
मोर गाँव में धुंगा वाला आसमान रही 
ऊ एगो शिकारी रहे छुईप के शिकार करत रहे 
हाम भी शामिल ऊकर हर जुर्म में हममचान  रही

 पहाड़ कर उतुंग शिखर तक चईढ़के ऊ हमके  भूईल गेलक 
हम ऊकर ले सीढ़ी कर पायदान रही 

हमरे कर मुंडी (सिर) में जरुरत कर बोझ रहे ऐतना
बूढ़ाल गतर (शरीर) कर भीतरे नवजवान रही 
 हाम आपन जंग सरहद में कहियो नी हारली 
घरे कर जंग में अक्सरहा लहूलुहान रही 

सोमवार, 3 मार्च 2014

नागपुरी कविता - दुश्मन अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - दुश्मन
अशोक "प्रवृद्ध"

ऊ दुश्मन 
जे के हम 
देईख सकिला साफ़ - साफ़ 
ईसन दुश्मन 
अक्सर दूर - दूर रहयनां 
कखनो - कखनों ही 
 फटकयनां आस - पास 

उनकर करल प्रहार से 
अक्सरहा बईच जाईला हमरे 

ऊ दुश्मन 
जे के हमरे दुश्मन नी समझीला
अक्सरहा रहयनां आस - पास 
ऊ बुराई मन नीयर 
जे रहयनां हमरे कर साथ 

आदत मन नीयर 
ईसन दुश्मन कर वार से 
बईच नी पावीला (सकिला) हमरे 
ईसन दुश्मन कर
 कोनों नाव (नाम) नी होवेला 

नागपुरी हास्य कविता -रावण कर चमत्कार- अशोक "प्रवृद्ध '

नागपुरी हास्य कविता -रावण कर चमत्कार

अशोक "प्रवृद्ध '


श्री राम कर नाव (नाम) से पखल (पत्थर) कर पऊरेंक (तैरने) कर समाचार 
जब लंका पहुँचलक  ,

तब हुवां कर जनता में काफी हलचल होलक  
कि भईया जेकर नावे से  (नाम से ही) 
पखल पऊरें लागेला  ऊ अदमी भी का गजब कर होई ?

ई नीयर (तरह) बेकार कर
 बतकही - अफ़वाह से परेशान
 रावण तैश में आयके चैलेन्ज कईर देलक 
आउर ढिंढोरा पीटवाये देलक कि काईल से रावण कर नाव
लिखल पखल भी पानी में गिराल पऊरान्ल जाई  !!


आउर अगला दिन श्रीलंका में 
सार्वजनिक अवकाश कर घोषणा कईर देल गेलक !
निश्चित दिन आउर समय पर
सब जनता रावण कर चमत्कार
 देखेक ले पहुँईच गेलयं ।

नियत समय पर रावण आपन भाई - बंधु,
पत्नी आउर सरकारी कर्मचारी मनक साथ पहुँचलक 
आउर एगो बड़का - भारी पखल में उकर नाव  लिखल गेलक ।
मजदूर मन ऊ पखल के 
उठालयं आउर समुदर में
- ड़ाईल देलयं पखल सीधे पानी कर भीतरे !

सारा कर सारा जनता ई सबके 
साँस रोईक के देखत रहे
 जबकि रावण लगातार मने- मने मंत्रोचारण करत रहे  ।
 अचानक, पखल वापस उपरे
आलक आउर पऊरें लागलक।

जनता खुशी से पगलाय गेलक 
आउर लंकेश कर जय कर नारा से 
आसमान के गुन्जाय देलक ।
एगो सार्वजनिक समारोह कर बाद रावण आपन 
लाव - लश्कर कर साथ आपन महल वापस चईल गेलक 


आउर जनता के भरोसा होय गेलक 
कि ई राम -वाम तो बस ईसने है ,
पखल तो हमरे कर महाराजा रावण कर नाव से भी 
पऊरेंला 
लेकिन ओहे राईत के मंदोदरी ई बात के नोटिस करलक 
कि रावण पलंग में सुईतके बस छत के देखले जाथे ।

"का होलक स्वामी 
फिर से अमल (अम्ल) कर कारण से नींद नी आवथे का ?"
"इनो टेबुल कर दराज में पड़ल है ले लानों का ?"मंदोदरी पूछलक ।
"मँदु !रहेक दे 
। आईझ तो इज्जत बस लूटते - लूटते बाँचलक।""आईन्दा से ईसन चैलेन्ज आउर प्रयोग नी करबूं। "
छत के एकसिरथा देखते रावण जवाब देलक 


मँदोदरी चौंक के उठलक आउर कहलक , “ईसन का होय गेलक स्वामी ?”
रावण आपन मुंडी (सिर) कर नीचे से हाथ 
निकलाय के छाती में राखलक आउर कहलक 
"ऊ आईझ विहान (सुबह) बेरा ईयाईद है पखल 
पऊरन्त रहे ?"

मँदोदरी एगो मधु मुस्कान कर साथ में हाँ में मुंडी हिलालक।
“ पखल जब पानी में नीचे चईल जाय रहे ,
ऊकर साथे मोरो सांस नीचे चईल जाय रहे । " रावण कहलक ।
असमंजस में पड़ल मँदोदरी कहलक  , “ लेकिन पखल वापस उपरे भी तो आय गेलक नी ?
वैसे कोन (कौन) मन्त्र के पढ़त रही रउरे 
जेकर से पानी में नीचे गेल पखल वापस उपरे आयके  पऊरे लागलक ?"

ई बात सुईंनके रावण 
एगो लम्बा साँस लेलक आउर कहलक 
मंतर - वंतर (मन्त्र- वंत्र) कोनों नी 
पढ़त रहों बल्कि घरी - घरी रटत रहों कि 
"" हे पखल ! तोके राम कर कसम है , कृपा कईरके ना डूबबे भाई
  "

!! जय श्री राम !!रावण कर चमत्कार!!

रविवार, 2 मार्च 2014

नागपुरी कविता - आये गेलक मास फागुन कवि - अशोक " प्रवृद्ध "



गाँव की गोरी, जिसका पति परदेश में है, वह फागुन के महीने में कैसे तड़पती है, उसी का चित्रण इस नागपुरी (नगपुरिया) कविता (गीत) में किया गया है -
नागपुरी कविता -आये गेलक मास फागुन
 कवि - अशोक " प्रवृद्ध "
 
घड़ी घड़ी सिहरे मोर बदन, आये गेलक मास फागुन  !
भोरे भोरे कूहके कोयल, कुहुक करे जियरा के  घायल.
पी पी कईरके पपीहा पुकारे, पिया परदेशी जल्दी आरे!
कईस के धर मोर बदन, आये गेलक मास  फागुन !
सरसों कर खेत में गेलो, शरम से मोये भी पियर होय गेलो!
तीसी कर फल मोती लागे, साग चना कर   प्रवृद्ध लागे.
आम कर मंजर अशोक से भरल बागान, आये गेलक मास फागुन !!
ननद मोरे पे ताना मारे, साईस जी भी नजईर से तारे.
टोला पड़ोस से नजर बचायके, देवर मन  भी मोरे पे ताके.
अब नी सोहायेला  कोई गहना आये गेलक  मास फागुन !
चिट्ठीयो पतरी नी तोय भेजले, फोनो करेक तोय बंद  कईर देले.
पनघट पर सखी बतिआयेल , ऊकर पिया कर संदेशा आयेल.
 तोय नी भेजले एको गो संदेशआये गेलक  मास. फागुन !
घड़ी घड़ी सिहरे मोर बदनआये गेलक  मास फागुन ! !

रचनाकार -  अशोक " प्रवृद्ध " 

नागपुरी कविता / गजल - आँईख जे देखलक ऊ अफ़साना भी नखे - अशोक "प्रवृद्ध'

नागपुरी कविता / गजल - आँईख जे  देखलक ऊ अफ़साना भी नखे 
अशोक "प्रवृद्ध'



आँईख जे  देखलक ऊ अफ़साना भी नखे 

ऊ संगी , प्यार -मुहब्बत कर दीवाना भी नखे 

अफ़सोस चरई - चुरगुन मईर जाबयं भूखे 
ई धाँव (बार) कोनों जाल में दाना भी नखे 

एक दिन कर मुलाकात से भ्रम (गफलत) में मुरूनगुर गाँव है 
सम्बन्ध मोर ऊकर से ढेईर पुराना भी नखे 

ऊ खोजते - फिरथे सब चीज में गजल के 
आब तो मीर आउर ग़ालिब कर जमाना भी नखे 

फूल से भरल घर कर बगीचा में भीत (दीवार) ना उठाव 
मोके तो तोर दुआर में आवेक भी नखे 

हर मोड़ में ऊ रास्ता बदईल लेवेल आपन
अगर संगी -साथी  नखे तो दुश्मन -  बेगाना भी नखे 

ई बिहान (सुबह) कर आँईख में खुमारी है काले एतना 
ई जगन (ठाँव /स्थान)  तो कोनों भट्ठीघर (मैखाना) भी नखे 

नागपुरी कविता - आलक होली - अशोक 'प्रवृद्ध "

नागपुरी कविता  - आलक होली 
अशोक "प्रवृद्ध"



आलक  होली 

हवा उड़ाते 
घर -घर रंग -
गुलाल कर आलक होली   |
लाज -शरम से 
होलक सब दिशा लाल 
कि आलक  होली  |

साँस -साँस में 
गीत समालक  ,
नैन कर इशारे से 
हवा बुलायेल ,
नदी गावेल फाग 
कबीरा देवेल ताल
कि  आलक होली  |

मौसम में है 
भरल आवारापन  ,
खिलल धूप में है 
बिना छूअल कुंवारापन ,
रंग अबीर से है 
खाली गाँव -देहाईत कर चौपाल 
कि आलक होली  |

आयना से भी 
हंसी -ठिठोली ,
मउध (शहद) नीयर होय गेलक 
सबकर बोली ,
इन्द्रधनुष नीयर लागथे 
सहिया  कर  गाल 
कि  आलक  होली  |

गाँव - देहाईत , 

टोला - मुहल्ला , गली -गली

बच्चा- बूढा 

आउर जवान  ,
फेंकथयं  "प्रवृद्ध" आउर 
मछली कर उपरे  जाल 
कि आलक  होली  |