गुरुवार, 27 अगस्त 2015

आरक्षण नी मामा में काना मामा हके ।

आरक्षण नी मामा में काना मामा हके ।

आरक्षण नी मामा में काना मामा हके । आब हमरे कर झारखण्डे कर बात के देखू । करीब दू बरीस पहिले कर बात हके। झारखण्ड राईज कर मशहूर मेडिकल कोलेज रिम्स रांची में नाव लिखायेक ले आरक्षण कर श्रेणी में आवे वाला अनुसूचित जनजाति कर छऊवा मन ले निर्धारित सबसे कम माने कि न्यूनतम प्राप्तांक लाने वाला विद्यार्थी भी नी मिलेक चलते कोलेज कर करीब सौ गो सीट में नाव लिखाय वाला भी केऊ नी मिललयं । सेले कोलेज कर सीट के भरेक ले जब माननीय झारखण्ड हाई कोर्ट द्वारा सरकार से पूछल गेलक तो सरकार के कोर्ट से प्रार्थना करेक पड़लक कि रिम्स में नाव लिखायेक ले निर्धारित सबसे कम अंक कर सीमा के आऊरे कम करेक कर आदेश देवल जाय ताकि आरक्षण में आवेक वाला श्रेणी कर छऊवा मन के मेडिकल कोलेज में नाव लिखाल जाय सकी  आऊर देश कर स्वास्थ्य सेवा के आऊर भी बेस आऊर कारगर बनाएक कर प्रति कदम उठालजाय सके । हालांकि ई अलग बात है कि माननीय झारखण्ड हाई कोर्ट द्वारा निर्धारित अंक सीमा में आऊरे कम करेक कर ई मामले में कोनो स्पष्ट आदेश नी देल गेलक जेकर से न्यायलय के प्रति उम्मीद जागल है कि भारतीय न्याय प्रणाली कर रहते नेता मन जबरई आरक्षण के देश में लाईद के राष्ट्रविरोधी काम करेक नी पारबयं । जानिला मेडिकल में नाव लिखायेक ले झारखण्ड में आरक्षित वर्ग कर छउवा मन ले कम से कम कतना नंबर निर्धारित है ? नी जानिला तो जाईन लेऊ । मात्र ३३ (तैंतीस) प्रतिशत । आब राऊरेहें कहू आरक्षण नी मामा में काना मामा हके कि नहीं ?