नागपुरी कविता - स्वर्णिम भविष्य
-अशोक "प्रवृद्ध"
कुक्कुर सोचलक कि जंगल कर राजा शेर के डर से दहलाय देबूँ !
गगरी सोचलक कि समुदर कर पानी के पीके मन के बहलाय लेबूँ !!
गीदड़ साजिश करलक गजराज के आईन्ख देखायेक कर !
एगो अंगार कोशिश करलक सूरज में आईग लगायेक कर !!
.
लेकिन ई मन का जानयं कि लोटा में नाव नी चलेल !
चूहा कर आवेक जायेक से पहाड़ कभियो (कहियो) नी हिलेल !!
धर्मनाशक देशद्रोही मनक सारा अरमान धरले रईह जई !
कोनों कईर लेवा भारतवर्ष कर स्वर्णिम भविष्य तो हईये हई !!
-अशोक "प्रवृद्ध"
कुक्कुर सोचलक कि जंगल कर राजा शेर के डर से दहलाय देबूँ !
गगरी सोचलक कि समुदर कर पानी के पीके मन के बहलाय लेबूँ !!
गीदड़ साजिश करलक गजराज के आईन्ख देखायेक कर !
एगो अंगार कोशिश करलक सूरज में आईग लगायेक कर !!
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लेकिन ई मन का जानयं कि लोटा में नाव नी चलेल !
चूहा कर आवेक जायेक से पहाड़ कभियो (कहियो) नी हिलेल !!
धर्मनाशक देशद्रोही मनक सारा अरमान धरले रईह जई !
कोनों कईर लेवा भारतवर्ष कर स्वर्णिम भविष्य तो हईये हई !!