नागपुरी कविता -कथनी - करनी एक होवोक , पाखण्ड नी (ना) लागे ।
अशोक "प्रवृद्ध"
ज़ालिम दारु पीयेक दे, रजाई में बैईठ के ,
चाहे ऊ ठाँव (जगह) बताय दे, जहाँ ठण्ड नी (ना) लागे ।।
रेल में पीते पकड़ाय गेलों , तो भरलों जुर्माना,
खोजथों ऊ सवारी, जहाँ दण्ड नी लागे ।।
पूँजी निवेश सही जगह, करेक चाही ,
सहियाओं (मित्रों) ! चिट फंड, चीटिंग फण्ड नी (ना) लागे ।।
सत्ता पायके सुख तजयं , कहाँ मानुष अईसन ,
'विनम्रता' वईससन होवेक चाही , जे घमण्ड नी (ना) लागे ।।
सही पात्र के वोट देवेक, है जरूरी बात बहुत,
देखब ! कहीं दिल्ली, झारखण्ड नी (ना) लगे ।।
बईन बैठहयं महंत जब, झाडे़ लाइगहयं उपदेश,
कथनी -;करनी एक होवोक , पाखण्ड नी (ना) लागे ।।
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