नागपुरी कविता - फागुन में दुआरी होलक गोतिया हैं रसराज
अशोक "प्रवृद्ध"
फागुन में दुआरी होलक गोतिया हैं रसराज
गंध रंगीली उड़थे फिन [फिर] साँस पर आज।
सात रंग कर शरीर होलक इतना उड़लक गुलाल
नीला हरियर नदी होलक झील होय गेलक लाल।
पीयर रंग सरसों खिललक पीयर खिललक गुलाब
केसरिया रंग धूप होय गेलक टेसू चढ़लक शबाब।
होलक जुगलबंदी सुघर बाजथे बाजूबंद
कंठ-कंठ गुंजित होलक "प्रवृद्ध" कर छंद ।
एक एक मुस्कान में आईज मुरूनगुर कर दुआर
कुंकुम आउर अबीर संग बरसथे रस कर धार।
अशोक "प्रवृद्ध"
फागुन में दुआरी होलक गोतिया हैं रसराज
गंध रंगीली उड़थे फिन [फिर] साँस पर आज।
सात रंग कर शरीर होलक इतना उड़लक गुलाल
नीला हरियर नदी होलक झील होय गेलक लाल।
पीयर रंग सरसों खिललक पीयर खिललक गुलाब
केसरिया रंग धूप होय गेलक टेसू चढ़लक शबाब।
होलक जुगलबंदी सुघर बाजथे बाजूबंद
कंठ-कंठ गुंजित होलक "प्रवृद्ध" कर छंद ।
एक एक मुस्कान में आईज मुरूनगुर कर दुआर
कुंकुम आउर अबीर संग बरसथे रस कर धार।
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