नागपुरी कविता - चाँदनी छिटकल है ,फिर भी मोर मन खामोश है।
अशोक "प्रवृद्ध"
चाँदनी छिटकल है ,फिर भी मोर मन खामोश है।
बेखबर ई राईत में सारा संसार मदहोश है।
वक्त आगे भागथे,लागथे जईम जाहे कदम,
हाँ, सहारा देवथे मोर तन्हाई कर आगोश है।
हँसथे चेहरा मोर , तोयं तो बस एतने जानीस ,
कालेकि गम दिल संगे छातिये में परदापोश है।
माँगते मोयं रईह गेलों, देई दे बहार तनी मोखों ,
अनसुना कईरके बईढ गेले , इकर बड़ा आक्रोश है।
अब कहाँ रौनक बांचलक , "प्रवृद्ध" खुशी - उमंग कर हियाँ ?
घटथे साँस संगे धड़कन कर पल-पल जोश है।
अशोक "प्रवृद्ध"
चाँदनी छिटकल है ,फिर भी मोर मन खामोश है।
बेखबर ई राईत में सारा संसार मदहोश है।
वक्त आगे भागथे,लागथे जईम जाहे कदम,
हाँ, सहारा देवथे मोर तन्हाई कर आगोश है।
हँसथे चेहरा मोर , तोयं तो बस एतने जानीस ,
कालेकि गम दिल संगे छातिये में परदापोश है।
माँगते मोयं रईह गेलों, देई दे बहार तनी मोखों ,
अनसुना कईरके बईढ गेले , इकर बड़ा आक्रोश है।
अब कहाँ रौनक बांचलक , "प्रवृद्ध" खुशी - उमंग कर हियाँ ?
घटथे साँस संगे धड़कन कर पल-पल जोश है।
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