नागपुरी कविता - सच कर डहर
अशोक "प्रवृद्ध"
सच कर डहर
कहयनां कि बडा
काँटा से भरल होवेला
सच कर डहर ।
लेकिन
अनुभव तो ई है कि
सच कर डहर हर - हमेशा
मनोहर - सुन्दर होवेला ।
हां बाधा मन तो निश्चित
अधिका आवी ।
लेकिन हौसला भी तो
आउर मनसे अधिक होवेला ।
संगी - साथी मन भी भले
संख्या में कम लागबयं
लेकिन होंबयं सच्चा आउर पक्का ।
सच कर डहर कर
संगी ही
सच्चा साथी कहायला ।
तो संगी - साथी मन कहियो
एकला
ना अनुभव करब।
चाहे देवेक पड़ी
सैंकडों धांव
अग्निपरीक्षा ।
चाहे कोनो धोबी कर
भूंकल से
क्रेक पड़ी घरी - घरी (बार बार)
वन कर गमन!
हे मोर सच कर डहर कर संगी - साथी मन
छोड़ब ना साथ
सच कर
तोड़ब ना व्रत
धर्म कर ।
रचनाकार - अशोक "प्रवृद्ध"
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