नागपुरी कविता / गजल - आँईख जे देखलक ऊ अफ़साना भी नखे
अशोक "प्रवृद्ध'
आँईख जे देखलक ऊ अफ़साना भी नखे
ऊ संगी , प्यार -मुहब्बत कर दीवाना भी नखे
अफ़सोस चरई - चुरगुन मईर जाबयं भूखे
ई धाँव (बार) कोनों जाल में दाना भी नखे
एक दिन कर मुलाकात से भ्रम (गफलत) में मुरूनगुर गाँव है
सम्बन्ध मोर ऊकर से ढेईर पुराना भी नखे
ऊ खोजते - फिरथे सब चीज में गजल के
आब तो मीर आउर ग़ालिब कर जमाना भी नखे
फूल से भरल घर कर बगीचा में भीत (दीवार) ना उठाव
मोके तो तोर दुआर में आवेक भी नखे
हर मोड़ में ऊ रास्ता बदईल लेवेल आपन
अगर संगी -साथी नखे तो दुश्मन - बेगाना भी नखे
ई बिहान (सुबह) कर आँईख में खुमारी है काले एतना
ई जगन (ठाँव /स्थान) तो कोनों भट्ठीघर (मैखाना) भी नखे
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