नागपुरी कविता - समय हर - हमेशा चलतेहें रहेला
अशोक "प्रवृद्ध"
समय कर गत्ति के रोकेक चाहयनां ऊ मन
जेकर खिलाफ होवेला समय
फिर भी समय बढ़तेहें जायेला
जैसे बढ़तेहें जायेला नदी
आपन उद्गम ठाँव से समुन्दर तक
सब बाधा रूकावट के तोड़ते - फोड़ते
चिरेला धरती कर सीना
नदिये नीयर होवेला समय
हर - हमेशा चलतेहें रहेला
नदिए नीयर सबके सुख - शुकुन देवेला
कखनों - कखनों समय
राऊर हाथ पकईड़के
घुमयेक लेई जायेला
बीतल अतीत कर गली में
फिर ऊ राऊरे के खड़ा कईर देवेला
ऐखन वर्तमान कर आईना कर सामने
का राऊरे
आपन बदलल रूप के , चेहरा के देईखके
नी डेराब ? भयभीत नी होअब ?
समय डरुवायेक , भयभीत करेक नी चाहेल
ऊ राऊरे कर साथ होवेक चाहेल
हर क्षण , हर समय
ताकि , समय कर आहट के सुनते हुए
राऊरे महसूस कईर सकू
ऊकर गीत - संगीत
आऊर लेई सकू
उचित अवसर मौका कर सौगात
अशोक "प्रवृद्ध"
समय कर गत्ति के रोकेक चाहयनां ऊ मन
जेकर खिलाफ होवेला समय
फिर भी समय बढ़तेहें जायेला
जैसे बढ़तेहें जायेला नदी
आपन उद्गम ठाँव से समुन्दर तक
सब बाधा रूकावट के तोड़ते - फोड़ते
चिरेला धरती कर सीना
नदिये नीयर होवेला समय
हर - हमेशा चलतेहें रहेला
नदिए नीयर सबके सुख - शुकुन देवेला
कखनों - कखनों समय
राऊर हाथ पकईड़के
घुमयेक लेई जायेला
बीतल अतीत कर गली में
फिर ऊ राऊरे के खड़ा कईर देवेला
ऐखन वर्तमान कर आईना कर सामने
का राऊरे
आपन बदलल रूप के , चेहरा के देईखके
नी डेराब ? भयभीत नी होअब ?
समय डरुवायेक , भयभीत करेक नी चाहेल
ऊ राऊरे कर साथ होवेक चाहेल
हर क्षण , हर समय
ताकि , समय कर आहट के सुनते हुए
राऊरे महसूस कईर सकू
ऊकर गीत - संगीत
आऊर लेई सकू
उचित अवसर मौका कर सौगात
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें