नागपुरी कविता - चाईरो कोना (बटे) है डहर , लेकिन सब डहर में है मोड़ !
- अशोक "प्रवृद्ध"
चाईरो कोना (बटे) है डहर , लेकिन सब डहर में है मोड़ !
आब तोहें बताव ऐ जिन्दगी , जायेक है तोके कोन ओर !!
सब कोना (बटे) से आवथे आवाज , हल्ला - गुल्ला , कोलाहल आऊर है शोर !
मोके कोनों समझ में आवेल नहीं , मंजिल है मोर कोन ओर !!
सब कर सब बेकल हैं हियाँ , सब कर है सपना कर जोड़ !
केकर सपना के तोड़ों मोयं , कईसन कठिन है ई होड़ !!
जिन्दगी कर संघर्ष में , प्रवृद्ध हैं कतई टेढा मोड़ !
लेकिन ठाईन लेबें तोयं अगर , मंजिल है नहीं कोनों दूर !
जोन बटे भी चईल पड़ , डहर है तोर ओहे ओर !
मंजिल भी है हूवें तोर , सारा संसार है तोर ओहे ओर
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