नागपुरी कविता - महंगाई डाईन कर डंस
-अशोक "प्रवृद्ध"
बरसाईत होवेला
कि महंगाई बरसेला
बाजार में सब चीज महंगे है !
बाहरे बाढ जईसन नजारा है
ऐने घर कर नाव डूबेक वाला है !
तियन (सब्जी)मनक भाव
बदरी नीयर गरजथे
सब चीज के महंगाई डाईन डईन्स ले हे
(आदमी) इन्सान आऊर आदमियत (इन्सानियत)
काले ऐतना सस्ता होय गेलक ?
डहर चलते ईकरसे दोकानदार मनक
हस्ती होय गेलक
बाजार में आलू , आटा आऊर चाऊर
प्याज , दूध , पानी तक महंगा है !
मगर आदमी बहुते सस्ता है
ईके लेई जावा
जईसन मर्जी सतावा
मारा , खावा , पकावा
केखो कोनों फरक नी पड़ी
भूखल कर पेट तो भरी
लेकिन महंगाई डाईन कर डंस नी चुभी !
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