नागपुरी कविता -सब केऊ महफ़िल में चिराग , जलाय नी सकेला
- अशोक "प्रवृद्ध"
सब केऊ महफ़िल में चिराग , जलाय नी सकेला
जे खुद है एकले . ऊ अन्धेरा मिटाय नी सकेला
सब केऊ कर नसीब में नी होवे , ह्रदय कर खुशी (उल्लास) इसने
खुशी पैदा करेक वाला भी ऊकर उपाय बताय नी सकेला
नादाँ रहेला ऊ ,जे प्यार के बेस तईर पाय लेवेला
व्यापारी आदमी कखनो खुद कर प्यार जताय नी सकेला
नेंव (नींव / बुनियाद) बेस होवोक तो इमारत बुलन्द रहेला
हवा कर झोंका "प्रवृद्ध" , उके कमजोर बनाय नी सकेला
खुशबु से महकेला बगीचा , भगवान कर ई करिश्मा है
माली (बागवान) कहियो भी , फूल के महकाय नी सकेला
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