शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

नागपुरी कविता - सच कर डहर - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - सच कर डहर
अशोक "प्रवृद्ध"

सच कर डहर
कहयनां कि बडा
काँटा से भरल होवेला
सच कर डहर ।

लेकिन
अनुभव तो ई है कि
सच कर डहर हर - हमेशा
मनोहर - सुन्दर होवेला ।

हां बाधा मन तो निश्चित
अधिका आवी ।
लेकिन हौसला भी तो
आउर मनसे अधिक होवेला ।
संगी - साथी मन भी भले
संख्या में कम लागबयं
लेकिन होंबयं सच्चा आउर पक्का ।
सच कर डहर कर
संगी  ही
सच्चा साथी कहायला ।

तो संगी - साथी मन कहियो
एकला
ना अनुभव करब।
चाहे देवेक पड़ी
सैंकडों धांव
अग्निपरीक्षा ।

चाहे कोनो  धोबी कर
भूंकल से
क्रेक पड़ी घरी - घरी (बार बार)
वन कर गमन!

हे मोर सच कर डहर कर संगी - साथी मन
छोड़ब ना साथ
सच कर
तोड़ब ना व्रत
धर्म कर ।

रचनाकार - अशोक "प्रवृद्ध"

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