शनिवार, 26 अप्रैल 2014

नागपुरी कविता - जिन्दगी भईर मोके तोर ख्वाहिश रही - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - जिन्दगी भईर मोके तोर ख्वाहिश रही ,
अशोक "प्रवृद्ध"

जिन्दगी भईर मोके तोर ख्वाहिश रही
साँझ तो साँझ , बिहानो - बिहान रही !

नी बुईझ हे आऊर नी बुझी , दिल कर ई लागल ,
चाहे जोन भी होई हालात , आईग तो आईगे रही !

मुद्दत होय गेलक , गोड़ घर से निकलबे नी कईर हे
सरपरस्ती में तोर , बंदिश है , बंदिश रहबे करी !

मोयं आपन कहियो कोनों , सौदा नी कर लों ,
व्यक्तित्व मोर , जे बेदाग है बेदाग रहबे करी !

काश मोर ,बस ई बात ऊ समईझ जातयं ,
आपन भी एगो हद है , आऊर ऊ हद कायम रही !

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

नागपुरी कविता - मशाल जलाऊ मोमबती कर कायरता हमरे के नी चाही !! - अशोक "प्रवृद्ध"



नागपुरी कविता - मशाल जलाऊ मोमबती कर कायरता हमरे के नी चाही !!
अशोक "प्रवृद्ध"

दिल में जे आईग है धधकते रहोक अंगार बईनके !
चिंगारी भी बईन जायेला ज्वालामुखी एतना बाथा सईह के !!

मानथों आईग कर लौ कर तपन बुरा होवेला !
मगर तईप के ही हर चीज खरा होवेला !!

बिना तप के ज्ञान भी नी मिली आऊर नी मिली रोटी !
तईप के ही होलक सोना खरा बिना तपल हर चीज है खोटी !!

एहे आईग में जईल रहयं तेलंगा , बिरसा , आजाद आऊर भगत सिंह !
एहे ज्वाला में पईल रहयं तिलका , बिश्वनाथ ,बिस्मिल आऊर ऊद्धम सिंह !!

केकर - ककर नाव गिनवाओं एहे क्रांति तो शहीद मन के बनाहे !
के - के , के - के इयाईद करों एहे आईग तो सबके जलाहे !!

ई क्रांति कर आईग हके सबक छाती में जलेक चाही !
मशाल जलाऊ मोमबती कर कायरता हमरे के नी चाही !!

मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

नागपुरी कविता - कखनों गैर - बेगाना के भी आपन बनाएक कर मन करेला !! -अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - कखनों गैर - बेगाना के भी आपन बनाएक कर मन करेला !! अशोक "प्रवृद्ध"खनों आपन हंसियों पर आवेला खीस आऊर गुस्सा ! कखनों सारा संसार के हंसुआयेक कर मन करेला !! कखनों लुकाय लेविला दुःख - गम के कोनों कोना में ! कखनों केखो सब कुछ सुनायेक कर मन करेला !! कखनों मन कान्देला नहीं कोनों कीमत पर भी ! कखनों ईसने लोर बहायेक कर मन करेला !! कखनों बेस लागेला आजाद रहेक , आजाद उड़ेक ! कखनों कोनों बंधन में बईंन्ध जायेक कर मन करेला !! कखनों लागयनां आपन भी गैर - बेगाना नीयर ! कखनों गैर - बेगाना के भी आपन बनाएक कर मन करेला !!

रविवार, 20 अप्रैल 2014

नागपुरी कविता - ढेईर दिन तक कहियो एके नीयर मौसम नी रहेला - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - ढेईर दिन तक कहियो एके नीयर मौसम नी रहेला
अशोक "प्रवृद्ध"


दिल मन में दूरी बईढ जायेल , घर टूईट जायेल
हियाँ रिश्ता ग़लतफ़हमी में अक्सरहा टूईट जायेला !

टिकल होवेला सब कुछ आपसी विश्वास कर दम पर
जहां बुनियादे कमजोर होवेला , घर टूईट जायेला !

ढेईर दिन तक कहियो एके नीयर मौसम नी रहेला
बदलेला हुकूमत तो , सब लाव - लश्कर टूईट जायेला !

बगावत कईरके जब आपन केऊ दुश्मन से मिल जायेला
भले मजबूत होओक केतनो भी , बंकर टूईट जायेला !

चलाय ले तोयं एखन कानून आपन , चईल सकेला जब तक
लेकिन कानून कर जद में धुरंधर भी घर टूईट जायेला !!



नागपुरी कविता - सब केऊ के हियाँ लूईट जायेक कर डर है भाई - अशोक 'प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - सब केऊ के हियाँ लूईट जायेक कर डर है भाई 
अशोक 'प्रवृद्ध"


सब केऊ के हियाँ लूईट जायेक कर डर है भाई 
ई सफर , केतना खतरनाक सफर है भाई ?

अदमी अदमी कर खून कर पियासल हैं हियाँ 
सब बटे फैलल कईसन जहर है भाई ?

खौफ है बूढा मन में , आऊर छऊवा मन हैं सहमल - सहमल 
पिछला दंगा कर एखन तक असर है भाई ?

फिर मसीहा मन एक धाँव हमरे के इयाईद करथयं 
फिर मसीहा मनक कुर्सी पर नजईर है भाई ?

भूख , बेकारी , तंगहाली , तबाही है गाँव में मोर 
देश खुशहाल अगर है तो कने है भाई ??

नागपुरी कविता - बेवजह दिल में कोनों बोझा भारी ना राखू अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - बेवजह दिल में कोनों बोझा भारी ना राखू
अशोक "प्रवृद्ध"


बेवजह दिल में कोनों बोझा भारी ना राखू
जिन्दगी जंग हके ई जंग के जारी राखू 

आब कलम से नी लिखल जाई ई बेरा कर हाल 
आब तो हाथ में कोनों तेज कटार आऊर तलवार राखू 

कतना दिन जिन्दा रहली ईके ना गिनू सहिया
का तरी जिन्दा रहली ईके इयाईद राखू 

ऊकर पूजा कहीं भगवान के ना कईर देओक बदनाम 
आब तो मंदिर में केऊ एगो आऊर पुजारी राखू 

राऊरे के राऊरे से बईढ के जे बताथे हर दम 
ईसन आदमी से तनी दूर कर यारी राखू  

जन्दगी भईर ले मोयं कोनों नी कह्बूं राऊरे से 
आईझ , बस आईझ तनी बात मोर राखू 

मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

नागपुरिया कविता -घर आपने घर होवेला - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरिया कविता -घर आपने घर होवेला 
अशोक "प्रवृद्ध"


घर आपने घर होवेला 
ऊसन कहाँ कने होवेला ?
शुद्ध हवा पानी मिल जाई
ईसन कहाँ शहर होवेला !
लाखों धाँव धोय के देईख लेऊ 
फिर भी जहर जहर होवेला !
चापलूस आऊर मक्कार मनक 
अक्सर आवाज मीठा होवेला !
भगवन जे के बने होवी
ओहे कन्या करवर होवेला !!

नागपुरी कविता - का कहब बड़ा खराब जुग (जमाना) आय गेलक - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - का कहब बड़ा खराब जुग (जमाना) आय गेलक 
अशोक "प्रवृद्ध"

का कहब बड़ा खराब जुग (जमाना) आय गेलक 
बैसाखी लगायके चले वाला 
देवथयं भाषण 
कि कैसे आपन गोड़ (पैर) में 
खड़ा होवल जाएला !

दोसर कर टांग खींचके 
आगे बढे वाला
बताथयं कि
राऊरे कर आचरण कईसन होवेक चाही !

दोसर कर खंधा (कंधा) के
सीढ़ी बनायके उपरे उठे वाला
उपदेश देवथयं कि
कैसे आसमान कर बुलंदी के छुवल जाये !

बात - बात पर
थूईक के चाटे वाला
वचन निभायेक कर
वादा करथयं !

दोसर कर गोड़ के पूजा कईरके
पद पावे वाला
आब पद कर मर्यादा कर
महत्व समझाथयं !

जुग बदलेला
जुग बदली
ई तो जानीला हमरे
लेकिन एतना आऊर ईसन बदली
ईसन कहाँ सोईच रही
ईसन कहाँ केऊ कईह रहे

नागपुरी कविता - मतलब नी होई तो आपन भी पहचानबयं नहीं - अशोक 'प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता   - मतलब नी होई तो आपन भी पहचानबयं नहीं 
अशोक 'प्रवृद्ध"

जे बेरा जिन्दगी परेशान होय गेलक ,
अपना - पराया कर पहचान होय गेलक !
सोना कर चिड़िया ऊईड़ गेलक मुर्दा रईह गेलक 
दंगा से बस्ती देश कर श्मशान होय गेलक !!

मतलब नी होई तो आपन भी पहचानबयं नहीं 
रिश्ता कर जड़ भी फायदा नुकसान होय गेलक !
कोनों बईन गेलयं छूवा मोर दूर होयं गेलयं 
शहर मोर जिन्दगी कर वीरान होय गेलक !!

शनिवार, 12 अप्रैल 2014

नागपुरी दोहा - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी  दोहा 
अशोक "प्रवृद्ध"


आफत में पड़ल है जिंदगी , उलझल है सब हालात !
कईसन है ई जनतंत्र , जहां हईये नखे जन कर बात !!

नेता जी आहैं मौज में , जनता है सुतल भूखेऊ !
झूठा वादा सब करयनां , कष्ट हरयनां नहीं केऊ !!

हंसी - ठिठोली है कहूँ , तो कहूँ बहथे  नीर !
महंगाई कर माऊर से , टूटथे सबकर धीर !!

मौसम देईख चुनाव कर , उमड़ल जनता से प्यार !
बदलल - बदलल लागथे , फिर से उनकर व्यवहार !!

राजनीती कर खेल में , सबकर आपन - आपन चाल !
मुद्दा ऊपर हावी दिसथे , जाति - धरम कर जाल !!

आईन्ख कर पानी मरल , कहाँ बाचल है शरम !
सब कर सब बिसराय गेलयं , जनसेवा कर करम !!

जब तक कुर्सी नी मिली , है देश - धरम से प्रीत !
सत्ता जब आय गेलक हाथ में , ओहे पुरना रीत !!

एके सांचा में हैं ढलल , नेता पक्ष आऊर विपक्ष !
मिलके लूटथयं देश के , मक्कारी में हैं दक्ष !!

लोकतंत्र कर परब कर , ढेईर होलक उपहास !
दागी - बागी सब भला , शत्रु होय गेलयं खास !!

राईतो - राईत बदईल गेलक , नेता मनक रंग !
काईल तक जेकर साथ रहयं , आइझ उकरे से जंग !!

 मौका आलक हाथ में , सब संताप के राखू दूरे !
ने तो बहुत पछताब , चुप रहली जे राऊरे !!

जाइंच - परईख के देईख लेऊ , केकर में है कतई खोट !
सोईच - समईझ के देऊ , आपन - आपन वोट !!

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

नागपुरी कविता - लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव ! - अशोक "प्रवृद्ध"



नागपुरी कविता - लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव !
अशोक "प्रवृद्ध"

ना जाने अबरी धाँव 
केकर - केकर डूबी नाव 
ऐहे सोच में पड़ल नेतामन 
घुमथयं आऊर घुमबयं गांवें - गाँव 
पईहले जहां कभियो - कभा 
पड़त रहे उनकर पाँव 
लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव !

 आईझ जबकि बाजार में 
कय गो चीज कर बनल है अभाव 
आऊर जे मिलथयं 
सेकर भी चढल ही भाव 
तबो हमरे कर गाँव - देहाईत में 
नेता मनक नी रही अभाव 
लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव !

खेलबयं हर खेल , चलबयं सब दाँव 
बदलते रह्बयं आपन हाव - भाव 
लेकिन फिर चुनाव खतम होतेहें 
बदईल जई उनकर स्वभाव 
आऊर फिर खतम होय जई 
जनता से उनकर सब लगाव 
लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव !