शनिवार, 26 अप्रैल 2014

नागपुरी कविता - जिन्दगी भईर मोके तोर ख्वाहिश रही - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - जिन्दगी भईर मोके तोर ख्वाहिश रही ,
अशोक "प्रवृद्ध"

जिन्दगी भईर मोके तोर ख्वाहिश रही
साँझ तो साँझ , बिहानो - बिहान रही !

नी बुईझ हे आऊर नी बुझी , दिल कर ई लागल ,
चाहे जोन भी होई हालात , आईग तो आईगे रही !

मुद्दत होय गेलक , गोड़ घर से निकलबे नी कईर हे
सरपरस्ती में तोर , बंदिश है , बंदिश रहबे करी !

मोयं आपन कहियो कोनों , सौदा नी कर लों ,
व्यक्तित्व मोर , जे बेदाग है बेदाग रहबे करी !

काश मोर ,बस ई बात ऊ समईझ जातयं ,
आपन भी एगो हद है , आऊर ऊ हद कायम रही !

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