शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

नागपुरी कविता - लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव ! - अशोक "प्रवृद्ध"



नागपुरी कविता - लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव !
अशोक "प्रवृद्ध"

ना जाने अबरी धाँव 
केकर - केकर डूबी नाव 
ऐहे सोच में पड़ल नेतामन 
घुमथयं आऊर घुमबयं गांवें - गाँव 
पईहले जहां कभियो - कभा 
पड़त रहे उनकर पाँव 
लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव !

 आईझ जबकि बाजार में 
कय गो चीज कर बनल है अभाव 
आऊर जे मिलथयं 
सेकर भी चढल ही भाव 
तबो हमरे कर गाँव - देहाईत में 
नेता मनक नी रही अभाव 
लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव !

खेलबयं हर खेल , चलबयं सब दाँव 
बदलते रह्बयं आपन हाव - भाव 
लेकिन फिर चुनाव खतम होतेहें 
बदईल जई उनकर स्वभाव 
आऊर फिर खतम होय जई 
जनता से उनकर सब लगाव 
लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव !

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