शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014

नागपुरी कविता - स्वर्णिम भविष्य -अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता -  स्वर्णिम भविष्य
-अशोक "प्रवृद्ध"

कुक्कुर सोचलक कि जंगल कर राजा शेर के डर से दहलाय देबूँ !
गगरी सोचलक कि समुदर कर पानी के पीके मन के बहलाय लेबूँ !!

गीदड़ साजिश करलक गजराज के आईन्ख देखायेक कर !
एगो अंगार कोशिश करलक सूरज में आईग लगायेक कर !!
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लेकिन ई मन का जानयं कि लोटा में नाव नी चलेल !
चूहा कर आवेक जायेक से पहाड़ कभियो (कहियो) नी हिलेल !!

 धर्मनाशक  देशद्रोही मनक सारा अरमान धरले रईह जई !
कोनों कईर लेवा भारतवर्ष कर स्वर्णिम भविष्य तो हईये हई !!

रविवार, 2 नवंबर 2014

नागपुरी शायरी - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी शायरी
- अशोक "प्रवृद्ध"

आब ईके राऊरे मन जे कहू ! ईके मोयं छोटे बेरा नवजवान परिया में लिख रहों , अईझ लाज - बीज छोईड़के सबकर सामने लानेक कर हिम्मत जुटात हों !!


एतना नादान हईस सेकरो में दिल लगईसला
एतना नाजुक हईस काले पत्थर से सिर टकरईसला

सामने आवेला ऊ तो छुईप जईसला
एतना पियासल हईस कि पानी से घबरईसला

आरजी पाईये गले तोयं एगो चन्दा कर
तोयं भी राईत में एकला विरह गीत गावीसला

आईग लाईगहे तोर दिल कर सनमखाना में
तोयं दिया नीयर खामोश नजर आवीसला



गुरुवार, 28 अगस्त 2014

नागपुरी में वेदार्थ

नागपुरी में वेदार्थ
- अशोक "प्रवृद्ध"

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुवरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात ॥

नागपुरी में मन्त्र कर अर्थ - ऊ प्राणस्वरूप,दुःखनाशक, सुखस्वरूप,श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक देवस्वरूप परमात्मा के हमरे अंतःकरण में धारण करील l ऊ परमात्मा हमरे कर बुद्धि के सन्मार्ग में प्रेरित करयं l
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उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ।। 
 -कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र १४

अर्थात -उठो, जागो, और जानकार श्रेष्ठ पुरुषों के सान्निध्य में ज्ञान प्राप्त करो । विद्वान् मनीषी जनों का कहना है कि ज्ञान प्राप्ति का मार्ग उसी प्रकार दुर्गम है जिस प्रकार छुरे के पैना किये गये धार पर चलना ।

नागपुरी अर्थ - उठू , जागू आऊर जानकार (विद्वान)) श्रेष्ठ पुरूष मनक संघे ज्ञान प्राप्त करू l विद्वान मनीषी मनक कहेक है कि ज्ञान प्राप्त करेक कर डहर (मार्ग) ओहे तरी (नीयर)  दुर्गम है जे तरी (नीयर) छुरा कर पैना करल धार में चलेक l
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मृत्यो पदं योपयन्तो यदैव ,
द्राघिय आयु परतरं दधाना ।
आप्यायमाना प्रजया धनेन । 
शुद्धा पूता भवत यज्ञियास ।। 
ऋग्वेद 10.18.2, अथर्ववेद 12.2.30 

अर्थात  - हे मानवो! मृत्यु के भय को दूर कर, लम्बी व दीर्घ आयु को धारण करते हुए तुम यहाँ आओ । हे यज्ञकर्ताओ! तुम संतान व धन से संपन्न होते हुए, शुद्ध व पवित्र होवो।

नागपुरी अर्थ - हे मनुख (मनुष्य) मन ! मृत्यु कर डर (भय) के दूर कईरके , लंबा आऊर सुदीर्घ उम्र (आयु) के धारण करते हुए तोहरे मन हियाँ आवा । हे यज्ञ कर्ता मन ! तोहरे संतान आऊर धन से संपन्न होते हुए शुद्ध आऊर पवित्र होवा ।
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नमो महद्भ्यो नमो अर्भकेभ्यो नमो युवभ्यो नम आशिनेभ्यः।यजाम देवान्यदि शक्नवाम मा ज्यायसः शंसमा वृक्षि देवाः॥- ऋग्वेद-संहिता - प्रथम मंडल सूक्त २७ , मंत्र ९ /ऋग्वेद मंत्र संख्या ३१२

मंत्रार्थ - बड़ो, छोटों , युवको और वृद्धो को हम नमस्कार करते है। सामर्थ्य के अनुसार हम देवो का यजन करें। हे देवो! अपने से बड़ो के सम्मान मे हमारे द्वारा कोई त्रुटि न हो॥



नागपुरी अर्थ - बड़ , छोट , नवजवान आऊर वृद्ध मन के हम नमस्कार करीला l
सामर्थ्य कर अनुसार हम देव मन कर यजन करब l
हे देव ! आपन से बड़ मनक सम्मान में हमर से कोनों त्रुटि ना होवोक ll

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सध्रीचीनान् व: संमनसस्कृणोम्येक श्नुष्टीन्त्संवनेन सर्वान्।
देवा इवामृतं रक्षमाणा: सामं प्रात: सौमनसौ वो अस्तु।।
-अथर्व. ३-३०-७

अर्थात - तुम परस्पर सेवा भाव से सबके साथ मिलकर पुरूषार्थ करो। उत्तम ज्ञान प्राप्त करो। योग्य नेता की आज्ञा में कार्य करने वाले बनो। दृढ़ संकल्प से कार्य में दत्त चित्त हो तथा जिस प्रकार देव अमृत की रक्षा करते हैं। इसी प्रकार तुम भी सायं प्रात: अपने मन में शुभ संकल्पों की रक्षा करो।


नागपुरी अर्थ -  तोयं परस्पर सेवा - भाव से सब कर साथ मिल के पुरुषार्थ कर l उत्तम ज्ञान प्राप्त कर l योग्य नेता कर आज्ञा में कार्य करेक वाला बन l दृढ - संकल्प से कार्य में दत्त - चित्त हो आऊर जे नीयर देव मन अमृत कर रक्षा करयनां ,से हे नीयर तोयं भी साँझ - बिहान आपन मन में शुभ संकल्प कर रक्षा कर l

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मा नः सोमपरिबाधो मारातयो जुहुरन्त ।
आ न इन्दोवाजे भज ॥ ऋग्वेद 1-43-8

नागपुरी अर्थ - हमरे मनक ज्ञान में बाधा डालेक वाला आऊर धन कर लोभी हमरे के ना सतांव . हमारे मनक ज्ञान हमरे कर बल के बढाए 

नागपुरी कविता - चाईरो कोना (बटे) है डहर , लेकिन सब डहर में है मोड़ ! - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - चाईरो कोना (बटे) है डहर , लेकिन सब डहर में है मोड़ !
- अशोक "प्रवृद्ध"


चाईरो कोना (बटे) है डहर , लेकिन सब डहर में है मोड़ !
आब तोहें बताव ऐ जिन्दगी , जायेक है तोके कोन ओर !!

सब कोना (बटे) से आवथे आवाज , हल्ला - गुल्ला , कोलाहल आऊर है शोर !
मोके कोनों समझ में आवेल नहीं , मंजिल है मोर कोन ओर !!

सब कर सब बेकल हैं हियाँ , सब कर है सपना कर जोड़ !
केकर सपना के तोड़ों मोयं , कईसन कठिन है ई होड़ !!

जिन्दगी कर संघर्ष में , प्रवृद्ध हैं कतई टेढा मोड़ !
लेकिन ठाईन लेबें तोयं अगर , मंजिल है नहीं कोनों दूर !

जोन बटे भी चईल पड़ , डहर है तोर ओहे ओर !
मंजिल भी है हूवें तोर , सारा संसार है तोर ओहे ओर 

नागपुरी कविता - महंगाई डाईन कर डंस -अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता -  महंगाई डाईन कर डंस
 -अशोक "प्रवृद्ध"


बरसाईत होवेला
 कि महंगाई बरसेला 
बाजार में सब चीज महंगे है !
बाहरे बाढ जईसन नजारा है 
ऐने घर कर नाव डूबेक वाला है !
तियन (सब्जी)मनक भाव 
बदरी नीयर गरजथे 
सब चीज के महंगाई डाईन डईन्स ले हे 
(आदमी) इन्सान आऊर आदमियत (इन्सानियत)
काले ऐतना सस्ता होय गेलक ?
डहर चलते ईकरसे दोकानदार मनक 
हस्ती होय गेलक
बाजार में आलू , आटा आऊर चाऊर
 प्याज , दूध , पानी तक महंगा है !
मगर आदमी बहुते सस्ता है 
ईके लेई जावा 
जईसन मर्जी सतावा 
मारा , खावा , पकावा 
केखो कोनों फरक नी पड़ी 
भूखल कर पेट तो भरी 
लेकिन महंगाई डाईन कर डंस नी चुभी !

नागपुरी कविता -सब केऊ महफ़िल में चिराग , जलाय नी सकेला - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता -सब केऊ महफ़िल में चिराग , जलाय नी सकेला
 - अशोक "प्रवृद्ध"

सब केऊ महफ़िल में चिराग , जलाय नी सकेला
 जे खुद है एकले . ऊ अन्धेरा मिटाय नी सकेला 

सब केऊ कर नसीब में नी होवे , ह्रदय कर खुशी (उल्लास) इसने
 खुशी पैदा करेक वाला भी ऊकर उपाय बताय नी सकेला 

नादाँ रहेला ऊ ,जे प्यार के बेस तईर पाय लेवेला 
व्यापारी आदमी कखनो खुद कर प्यार जताय नी सकेला 

नेंव (नींव / बुनियाद) बेस होवोक तो इमारत बुलन्द रहेला 
हवा कर झोंका "प्रवृद्ध" , उके कमजोर बनाय नी सकेला 

खुशबु से महकेला बगीचा , भगवान कर ई करिश्मा है 
माली (बागवान) कहियो भी , फूल के महकाय नी सकेला

नागपुरी कविता - समय हर - हमेशा चलतेहें रहेला - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - समय हर - हमेशा चलतेहें रहेला 
अशोक "प्रवृद्ध"

समय कर गत्ति के रोकेक चाहयनां ऊ मन 
जेकर खिलाफ होवेला समय 
फिर भी समय बढ़तेहें जायेला 
जैसे बढ़तेहें जायेला नदी 
आपन उद्गम ठाँव से समुन्दर तक 
सब बाधा रूकावट के तोड़ते - फोड़ते 
चिरेला धरती कर सीना 
नदिये नीयर होवेला समय 
हर - हमेशा चलतेहें रहेला 
नदिए नीयर सबके सुख - शुकुन देवेला 
कखनों - कखनों समय 
राऊर हाथ पकईड़के 
घुमयेक लेई जायेला 
बीतल अतीत कर गली में 
फिर ऊ राऊरे के खड़ा कईर देवेला 
ऐखन वर्तमान कर आईना कर सामने 
का राऊरे 
आपन बदलल रूप के , चेहरा के देईखके 
नी डेराब ? भयभीत नी होअब ?
समय डरुवायेक , भयभीत करेक नी चाहेल 
ऊ राऊरे कर साथ होवेक चाहेल 
हर क्षण , हर समय 
ताकि , समय कर आहट के सुनते हुए 
राऊरे महसूस कईर सकू 
ऊकर गीत - संगीत 
आऊर लेई सकू 
उचित अवसर मौका कर सौगात

शुक्रवार, 2 मई 2014

नागपुरी कविता - मोके मरेक है मोरेक कर वजह तो दे देवा मोके अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - मोके मरेक है मोरेक कर वजह तो दे देवा मोके 
अशोक "प्रवृद्ध"

मोके मरेक है मोरेक कर वजह तो दे देवा मोके 
मोके जियेक नखे !
ई जिन्दगी कन्दुवाय देलक मोके 
हियाँ सब बेरा परीक्षा देवेक पड़ेल
हियाँ सब बेरा सम्भईल के चलेक पड़ेल 
हियाँ केऊ नखयं जे दर्द बाईंट सकेन
हियाँ सुसुईक - सुसुईक के जियेक पड़ेल 
हियाँ सब डगर पर धोखा आऊर फरेब है
हियाँ आपने मन लूटेक ले आऊर लूटेक खातिर तैयार रहेन
हियाँ बद से बदतर जिन्दगी होय चुईक हे सब कर
हियाँ बस ईसने नकाब लगाय के मुंह छुपायेक पड़ेल
हियाँ कब हत्या होय जई सब कर
ई बात से खुद के बचायेक पड़ेल
ई जिन्दगी से मौत बेस 'प्रवृद्ध"
जहां बस ऊ भगवान कर घर जायेक पड़ेल

शनिवार, 26 अप्रैल 2014

नागपुरी कविता - जिन्दगी भईर मोके तोर ख्वाहिश रही - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - जिन्दगी भईर मोके तोर ख्वाहिश रही ,
अशोक "प्रवृद्ध"

जिन्दगी भईर मोके तोर ख्वाहिश रही
साँझ तो साँझ , बिहानो - बिहान रही !

नी बुईझ हे आऊर नी बुझी , दिल कर ई लागल ,
चाहे जोन भी होई हालात , आईग तो आईगे रही !

मुद्दत होय गेलक , गोड़ घर से निकलबे नी कईर हे
सरपरस्ती में तोर , बंदिश है , बंदिश रहबे करी !

मोयं आपन कहियो कोनों , सौदा नी कर लों ,
व्यक्तित्व मोर , जे बेदाग है बेदाग रहबे करी !

काश मोर ,बस ई बात ऊ समईझ जातयं ,
आपन भी एगो हद है , आऊर ऊ हद कायम रही !

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

नागपुरी कविता - मशाल जलाऊ मोमबती कर कायरता हमरे के नी चाही !! - अशोक "प्रवृद्ध"



नागपुरी कविता - मशाल जलाऊ मोमबती कर कायरता हमरे के नी चाही !!
अशोक "प्रवृद्ध"

दिल में जे आईग है धधकते रहोक अंगार बईनके !
चिंगारी भी बईन जायेला ज्वालामुखी एतना बाथा सईह के !!

मानथों आईग कर लौ कर तपन बुरा होवेला !
मगर तईप के ही हर चीज खरा होवेला !!

बिना तप के ज्ञान भी नी मिली आऊर नी मिली रोटी !
तईप के ही होलक सोना खरा बिना तपल हर चीज है खोटी !!

एहे आईग में जईल रहयं तेलंगा , बिरसा , आजाद आऊर भगत सिंह !
एहे ज्वाला में पईल रहयं तिलका , बिश्वनाथ ,बिस्मिल आऊर ऊद्धम सिंह !!

केकर - ककर नाव गिनवाओं एहे क्रांति तो शहीद मन के बनाहे !
के - के , के - के इयाईद करों एहे आईग तो सबके जलाहे !!

ई क्रांति कर आईग हके सबक छाती में जलेक चाही !
मशाल जलाऊ मोमबती कर कायरता हमरे के नी चाही !!

मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

नागपुरी कविता - कखनों गैर - बेगाना के भी आपन बनाएक कर मन करेला !! -अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - कखनों गैर - बेगाना के भी आपन बनाएक कर मन करेला !! अशोक "प्रवृद्ध"खनों आपन हंसियों पर आवेला खीस आऊर गुस्सा ! कखनों सारा संसार के हंसुआयेक कर मन करेला !! कखनों लुकाय लेविला दुःख - गम के कोनों कोना में ! कखनों केखो सब कुछ सुनायेक कर मन करेला !! कखनों मन कान्देला नहीं कोनों कीमत पर भी ! कखनों ईसने लोर बहायेक कर मन करेला !! कखनों बेस लागेला आजाद रहेक , आजाद उड़ेक ! कखनों कोनों बंधन में बईंन्ध जायेक कर मन करेला !! कखनों लागयनां आपन भी गैर - बेगाना नीयर ! कखनों गैर - बेगाना के भी आपन बनाएक कर मन करेला !!

रविवार, 20 अप्रैल 2014

नागपुरी कविता - ढेईर दिन तक कहियो एके नीयर मौसम नी रहेला - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - ढेईर दिन तक कहियो एके नीयर मौसम नी रहेला
अशोक "प्रवृद्ध"


दिल मन में दूरी बईढ जायेल , घर टूईट जायेल
हियाँ रिश्ता ग़लतफ़हमी में अक्सरहा टूईट जायेला !

टिकल होवेला सब कुछ आपसी विश्वास कर दम पर
जहां बुनियादे कमजोर होवेला , घर टूईट जायेला !

ढेईर दिन तक कहियो एके नीयर मौसम नी रहेला
बदलेला हुकूमत तो , सब लाव - लश्कर टूईट जायेला !

बगावत कईरके जब आपन केऊ दुश्मन से मिल जायेला
भले मजबूत होओक केतनो भी , बंकर टूईट जायेला !

चलाय ले तोयं एखन कानून आपन , चईल सकेला जब तक
लेकिन कानून कर जद में धुरंधर भी घर टूईट जायेला !!



नागपुरी कविता - सब केऊ के हियाँ लूईट जायेक कर डर है भाई - अशोक 'प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - सब केऊ के हियाँ लूईट जायेक कर डर है भाई 
अशोक 'प्रवृद्ध"


सब केऊ के हियाँ लूईट जायेक कर डर है भाई 
ई सफर , केतना खतरनाक सफर है भाई ?

अदमी अदमी कर खून कर पियासल हैं हियाँ 
सब बटे फैलल कईसन जहर है भाई ?

खौफ है बूढा मन में , आऊर छऊवा मन हैं सहमल - सहमल 
पिछला दंगा कर एखन तक असर है भाई ?

फिर मसीहा मन एक धाँव हमरे के इयाईद करथयं 
फिर मसीहा मनक कुर्सी पर नजईर है भाई ?

भूख , बेकारी , तंगहाली , तबाही है गाँव में मोर 
देश खुशहाल अगर है तो कने है भाई ??

नागपुरी कविता - बेवजह दिल में कोनों बोझा भारी ना राखू अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - बेवजह दिल में कोनों बोझा भारी ना राखू
अशोक "प्रवृद्ध"


बेवजह दिल में कोनों बोझा भारी ना राखू
जिन्दगी जंग हके ई जंग के जारी राखू 

आब कलम से नी लिखल जाई ई बेरा कर हाल 
आब तो हाथ में कोनों तेज कटार आऊर तलवार राखू 

कतना दिन जिन्दा रहली ईके ना गिनू सहिया
का तरी जिन्दा रहली ईके इयाईद राखू 

ऊकर पूजा कहीं भगवान के ना कईर देओक बदनाम 
आब तो मंदिर में केऊ एगो आऊर पुजारी राखू 

राऊरे के राऊरे से बईढ के जे बताथे हर दम 
ईसन आदमी से तनी दूर कर यारी राखू  

जन्दगी भईर ले मोयं कोनों नी कह्बूं राऊरे से 
आईझ , बस आईझ तनी बात मोर राखू 

मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

नागपुरिया कविता -घर आपने घर होवेला - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरिया कविता -घर आपने घर होवेला 
अशोक "प्रवृद्ध"


घर आपने घर होवेला 
ऊसन कहाँ कने होवेला ?
शुद्ध हवा पानी मिल जाई
ईसन कहाँ शहर होवेला !
लाखों धाँव धोय के देईख लेऊ 
फिर भी जहर जहर होवेला !
चापलूस आऊर मक्कार मनक 
अक्सर आवाज मीठा होवेला !
भगवन जे के बने होवी
ओहे कन्या करवर होवेला !!

नागपुरी कविता - का कहब बड़ा खराब जुग (जमाना) आय गेलक - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - का कहब बड़ा खराब जुग (जमाना) आय गेलक 
अशोक "प्रवृद्ध"

का कहब बड़ा खराब जुग (जमाना) आय गेलक 
बैसाखी लगायके चले वाला 
देवथयं भाषण 
कि कैसे आपन गोड़ (पैर) में 
खड़ा होवल जाएला !

दोसर कर टांग खींचके 
आगे बढे वाला
बताथयं कि
राऊरे कर आचरण कईसन होवेक चाही !

दोसर कर खंधा (कंधा) के
सीढ़ी बनायके उपरे उठे वाला
उपदेश देवथयं कि
कैसे आसमान कर बुलंदी के छुवल जाये !

बात - बात पर
थूईक के चाटे वाला
वचन निभायेक कर
वादा करथयं !

दोसर कर गोड़ के पूजा कईरके
पद पावे वाला
आब पद कर मर्यादा कर
महत्व समझाथयं !

जुग बदलेला
जुग बदली
ई तो जानीला हमरे
लेकिन एतना आऊर ईसन बदली
ईसन कहाँ सोईच रही
ईसन कहाँ केऊ कईह रहे

नागपुरी कविता - मतलब नी होई तो आपन भी पहचानबयं नहीं - अशोक 'प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता   - मतलब नी होई तो आपन भी पहचानबयं नहीं 
अशोक 'प्रवृद्ध"

जे बेरा जिन्दगी परेशान होय गेलक ,
अपना - पराया कर पहचान होय गेलक !
सोना कर चिड़िया ऊईड़ गेलक मुर्दा रईह गेलक 
दंगा से बस्ती देश कर श्मशान होय गेलक !!

मतलब नी होई तो आपन भी पहचानबयं नहीं 
रिश्ता कर जड़ भी फायदा नुकसान होय गेलक !
कोनों बईन गेलयं छूवा मोर दूर होयं गेलयं 
शहर मोर जिन्दगी कर वीरान होय गेलक !!

शनिवार, 12 अप्रैल 2014

नागपुरी दोहा - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी  दोहा 
अशोक "प्रवृद्ध"


आफत में पड़ल है जिंदगी , उलझल है सब हालात !
कईसन है ई जनतंत्र , जहां हईये नखे जन कर बात !!

नेता जी आहैं मौज में , जनता है सुतल भूखेऊ !
झूठा वादा सब करयनां , कष्ट हरयनां नहीं केऊ !!

हंसी - ठिठोली है कहूँ , तो कहूँ बहथे  नीर !
महंगाई कर माऊर से , टूटथे सबकर धीर !!

मौसम देईख चुनाव कर , उमड़ल जनता से प्यार !
बदलल - बदलल लागथे , फिर से उनकर व्यवहार !!

राजनीती कर खेल में , सबकर आपन - आपन चाल !
मुद्दा ऊपर हावी दिसथे , जाति - धरम कर जाल !!

आईन्ख कर पानी मरल , कहाँ बाचल है शरम !
सब कर सब बिसराय गेलयं , जनसेवा कर करम !!

जब तक कुर्सी नी मिली , है देश - धरम से प्रीत !
सत्ता जब आय गेलक हाथ में , ओहे पुरना रीत !!

एके सांचा में हैं ढलल , नेता पक्ष आऊर विपक्ष !
मिलके लूटथयं देश के , मक्कारी में हैं दक्ष !!

लोकतंत्र कर परब कर , ढेईर होलक उपहास !
दागी - बागी सब भला , शत्रु होय गेलयं खास !!

राईतो - राईत बदईल गेलक , नेता मनक रंग !
काईल तक जेकर साथ रहयं , आइझ उकरे से जंग !!

 मौका आलक हाथ में , सब संताप के राखू दूरे !
ने तो बहुत पछताब , चुप रहली जे राऊरे !!

जाइंच - परईख के देईख लेऊ , केकर में है कतई खोट !
सोईच - समईझ के देऊ , आपन - आपन वोट !!

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

नागपुरी कविता - लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव ! - अशोक "प्रवृद्ध"



नागपुरी कविता - लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव !
अशोक "प्रवृद्ध"

ना जाने अबरी धाँव 
केकर - केकर डूबी नाव 
ऐहे सोच में पड़ल नेतामन 
घुमथयं आऊर घुमबयं गांवें - गाँव 
पईहले जहां कभियो - कभा 
पड़त रहे उनकर पाँव 
लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव !

 आईझ जबकि बाजार में 
कय गो चीज कर बनल है अभाव 
आऊर जे मिलथयं 
सेकर भी चढल ही भाव 
तबो हमरे कर गाँव - देहाईत में 
नेता मनक नी रही अभाव 
लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव !

खेलबयं हर खेल , चलबयं सब दाँव 
बदलते रह्बयं आपन हाव - भाव 
लेकिन फिर चुनाव खतम होतेहें 
बदईल जई उनकर स्वभाव 
आऊर फिर खतम होय जई 
जनता से उनकर सब लगाव 
लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव !

सोमवार, 24 मार्च 2014

नागपुरी कविता -आम आदमी कर मुखौटा लगायके , भारतीय जनता आऊर मोदी के निशाना न बनावl -अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता -आम आदमी कर मुखौटा लगायके , भारतीय जनता आऊर मोदी के निशाना न बनावl
अशोक "प्रवृद्ध"


तनी जुबूड़ बात कर ईसन तमाशा ना बनाव ,
सत्ता कर इय्याईद में , ईसन लोर के पोखरा ना बनाव l

मानथों कि गम बहुत है , कुर्सी कर छूटेक कर तोके 
लेकिन भ्रष्टाचार से लड़ेक कर , ईके बहाना ना बनाव l

ई सच है कि तोर सवाल (बात) के तवज्जो नी मिललक कहूँ ,
लेकिन खिसियाहट में क़ानून कर मजाक ना बनाव l

तोर सब इल्जाम आऊर आरोप सबके सम्हराय के राईखहों मोयं ,
बाहर बटे तोहमत आऊर घर में मिलेक कर बहाना ना बनाव l

शीला पर निशाना आऊर निगाह रहे दिल्ली शहर कर कुर्सी पर 
लोकपाल कर बहाना से पद छोईड़ भाईगके आऊर बेवकूफ ना बनाव l

बिच डगर में छोईड़ रहीस साथ अन्ना हजारे कर तोयं सत्ता कर खातिर ,
आम आदमी कर मुखौटा लगायके , भारतीय जनता आऊर मोदी के निशाना न बनावl

रविवार, 16 मार्च 2014

क्षमा करब ! माफ करब !! झूठ नी कह्थों !!!- अशोक "प्रवृद्ध"

होली कर शुभ कामना आउर बधाई 


शुभ होलिका दहन आउर होली  !
होलिका दहन कर मंगल कामना आउर बधाई  !!
शुभ होलिका दहन 

क्षमा करब ! माफ करब !! झूठ नी कह्थों !!!
अशोक "प्रवृद्ध"


ई गरीब ठीना आपने (राउरे) मन के,
 होली कर हार्दिक शुभ कामना देवेक सिवा 
आउर कोनों सन्देश नखे !
क्षमा करब ! 
माफ करब !!
झूठ नी कह्थों !!!

आपने मन संघे बांटेक ले तैयार कईरके 
राखल मोर सब धन - असबाब 
सब लूटाय गेलक !!
सब कुछ मिट गेलक !!!
क्षमा करब ! 
माफ करब !!
झूठ नी कह्थों !!!

बहुते सामान (सामग्री) तैयार कईरके राखल रहे , 
मगर किस्मत में नी रहे ,
से ले ढंग से सम्हरायके राखल नी रहे ,
मोर आपन गलती से
सब लूटाय गेलक !
सब कुछ मिट गेलक !!!
क्षमा करब ! 
माफ करब !!
झूठ नी कह्थों !!!


के के कहों ई दुःख कर बात 
ई दुःख कर घड़ी में केऊ नखयं साथ ?
किस्मत कर देखू मार केऊ नखयं पूछत 
 प्रवृद्ध कैसे होय गेले तोयं अनाथ ??
तोर सब कैसे लूटाय गेलक ???
का तरी सब कुछ मिट गेलक ????
क्षमा करब ! 
माफ करब !!
झूठ नी कह्थों !!!

शनिवार, 8 मार्च 2014

स्व.तिलेश्वर साहू के हार्दिक श्रद्धांजलि

लकड़ी व्यवसायी कर रूप में आपन जीवन कर शुरू कइरके झारखण्ड कर प्रदुषण नियंत्रण पार्षद कर चेयरमैन तक कर सफर तय करेक वाला आजसू पार्टी आउर छोटा नाग्पुरियता तेली उत्थान परिषद कर नेता तिलेश्वर साहू कर आइझ गोली माईरके हत्या कईर देल गेलकl साहु के तिन गोली मरल जायहे आउर अस्पताल ले जायेक बेरा उनकर मौत होय गेलकl खबर है कि ह्त्या कर जिम्मेवारी उग्रवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएलएफआई) लेवथे l
स्व.तिलेश्वर साहू के हार्दिक श्रद्धांजलि 
भगवान तिलेश्वर साहू कर आत्मा के शांति देवों

शुभ जनानी दिवस

शुभ जनानी दिन 
शुभ जनानी दिन l
आइझ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हके . आइझ सम्पूर्ण संसार में महिला मनके पूजल जाएला लेकिन बाकी दिन ???????????????????????
खैर हमरे मन तो आदि काल से ही रोजे दिन स्त्री जाति कर सम्मान करीला l
गछ - बृक्ष , नदी , प्रकृति ,सरना ,धरती आदि के भी हमरे कर संस्कृति मे माय माईन के पूजा कारक कार परम्परा है l
हियाँ तक कि आपन देश के भी हमरे भारतमाता , राष्ट्रमाता कईह्के सम्बोधित ,नमन , प्रार्थना करीला l
आईज विश्व जनानी दिन पर सब माय - बहिन के हामर 
बटसे गोड़लगी , सादर प्रणाम ,नमन , जोहार आउर शुभकामना आउर ढेईरो बधाई

रंगीन मिजाज आउर वासंती चोला ओढे वाला भारतीय जनता जनार्दन सबके रंगेक में लाइगहयं l



वसंती माहौल पूरा होली कर रंग में रईन्ग के होलियाना होय चुईक हे l का सुब्रत राय आउर का जोगेंदर यादव ?
 रंगीन मिजाज आउर वासंती चोला ओढे वाला भारतीय जनता जनार्दन सबके रंगेक में लाइगहयं l तरोताजा
 समाचार कर अनुसार आम आदमी पार्टी कर नेता आउर गुड़गांव से लोकसभा चुनाव कर उम्मीदवार जोगेंदर
 (योगेंद्र) यादव कर चेहरा में एगो आदमी स्याही पोईत देलक , जे बेरा ऊ मिडिया से गोठियात रहयं से खने 
ऊ आदमी पाछे बट से आलक आउर जोगेंदर यादव कार मुँह आउर गाल में स्याही पोईत के होली खेई
 लेलक l सियाही (स्याही) रगड़ेक बेर ऊ आदमी भारत माता कर जय कहत रहे l
भारत माता कर जय 
वंदे मातरम l

हियाँ दिल टूटल दिल जलल मनक जुटान है

हियाँ दिल टूटल दिल जलल मनक जुटान है काले सितम करिसला ?
ऐ समय तोयं रूईक जा काले आपन चलेक पर गुमान करिसला ??
हम बड़ा जतन से जे के दिल में छुपायके राईख रही ,
ओहे दिल के तोईड़ देलक , ओहे नी भरे वाला जख्म देलक l
आब नींद तो आवेला बहुत "प्रवृद्ध" मगर सुतेक कर नाव नखे ll

नागपुरी कविता - लूट कर मिल गेलक छूट , रे भईया जईम के लूटा - अशोक “प्रवृद्ध”

नागपुरी कविता - लूट कर मिल गेलक छूट , रे भईया जईम के लूटा 
- अशोक “प्रवृद्ध”  


लूट कर मिल गेलक छूट , रे भईया जईम के लूटा
खाली कईर देवा सबकर जेब ,रे भईया जईम के लूटा

मूड़ी से लेईके गोड़ तक, लगाय देवा रेलम पेल ,
रे भईया जईम के लूटा
गरीब से लेईके अमीर तक, सब कर बजाय देवा बाजा आउर ढोल
रे भईया जईम के लूटा
लूट कर मिल गेलक छूट , रे भईया जईम के लूटा
खाली कईर देवा सबकर जेब , रे भईया जईम के लूटा

अईसन निकलावा दिवाला, खायेक कर पईड़ जाए सबके लाला
रे भईया जईम के लूटा
बीवी है हरसाल , मियाँ कर ढीला होवल पैजामा
रे भईया जईम के लूटा
लूट कर मिल गेलक छूट , रे भईया जईम के लूटा
खाली कईर देवा सबकर जेब , रे भईया जईम के लूटा

कोईला से लेईके सोना तक , सबसे भरा आपन जेब
रे भईया जईम के लूटा
शरम - हया आउर इज्जत , देवा सबके बेईच
रे भईया जईम के लूटा
लूट कर मिल गेलक छूट ,रे भईया जईम के लूटा
खाली कईर देवा सबकर जेब ,रे भईया जईम के लूटा


सड़थे अनाज , प्रवृद्ध आउर किसान चढथयं बलि कर भेंट  
रे भईया जईम के लूटा
सरसों है जग मग , निकलाय लेवा ईकर तेल
रे भईया जईम के लूटा
लूट कर मिल गेलक छूट ,रे भईया जईम के लूटा
खाली कईर देवा सबकर जेब ,रे भईया जईम के लूटा




शुक्रवार, 7 मार्च 2014

नागपुरी कविता - वसन्त - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - वसन्त
अशोक "प्रवृद्ध"

जाड़ कर बंद कोठा कर दुरा से 
अंधार के इन्जोर में लाइन्हे वसन्त l

महकत- गमकत फूल कर कली ले भौंरा कर ,
प्रेम सन्देश लाइन्हे वसन्त
 
पीयर रंगक मुँह में वसन्ती आभा 
फेंकते - बिखराते आहे वसन्त

किसान ले फसल कर सौगात 
ले के आयहे वसन्त

जीवन के जीवन देवेक 
एक धाँव फिर से आहे वसन्त

आउर पढ़े वाला छौव्वा मन ले 
देवी सरस्वती मांय कर वरदान ले के आयहे वसन्त 

मंगलवार, 4 मार्च 2014

नागपुरी कविता - ई बात आउर है ई धूप मोर से हाईर गेलक - अशोक "प्रवृद्ध'

नागपुरी कविता - ई बात आउर है ई धूप मोर से हाईर गेलक 
अशोक "प्रवृद्ध'


जबान रहते हुए जे बेजुबान रही 
हमरे कर देश में ईसने सरकार रही 


जे मीठा पानी कर तालाब में मछरी पकड़ेक सीख गेलक 
गोड़ आउर पाईन्ख कर रहते ऊ बे - उड़ान रही 
ई बात आउर है ई धूप मोर से हाईर गेलक 
लेकिन गाछ कहाँ मोर छाइंह कर सायबान रही 
महल है ऊ मनक जे के नेंवे (नींव) कर पत्ता नखे 
मकान बनालयं जे ऊ बे - मकान  रही 
मोंय फ़ैल होवेक डर से दिनसगर (दिन - राईत पढ़त रहों 
मोर डहर (सफर) में हर - हमेशा इम्तिहान रही 
गुड्डी (पतंग) राईख के उड़ायखे भूईल गेलों 
मोर गाँव में धुंगा वाला आसमान रही 
ऊ एगो शिकारी रहे छुईप के शिकार करत रहे 
हाम भी शामिल ऊकर हर जुर्म में हममचान  रही

 पहाड़ कर उतुंग शिखर तक चईढ़के ऊ हमके  भूईल गेलक 
हम ऊकर ले सीढ़ी कर पायदान रही 

हमरे कर मुंडी (सिर) में जरुरत कर बोझ रहे ऐतना
बूढ़ाल गतर (शरीर) कर भीतरे नवजवान रही 
 हाम आपन जंग सरहद में कहियो नी हारली 
घरे कर जंग में अक्सरहा लहूलुहान रही