मंगलवार, 4 मार्च 2014

नागपुरी कविता - ई बात आउर है ई धूप मोर से हाईर गेलक - अशोक "प्रवृद्ध'

नागपुरी कविता - ई बात आउर है ई धूप मोर से हाईर गेलक 
अशोक "प्रवृद्ध'


जबान रहते हुए जे बेजुबान रही 
हमरे कर देश में ईसने सरकार रही 


जे मीठा पानी कर तालाब में मछरी पकड़ेक सीख गेलक 
गोड़ आउर पाईन्ख कर रहते ऊ बे - उड़ान रही 
ई बात आउर है ई धूप मोर से हाईर गेलक 
लेकिन गाछ कहाँ मोर छाइंह कर सायबान रही 
महल है ऊ मनक जे के नेंवे (नींव) कर पत्ता नखे 
मकान बनालयं जे ऊ बे - मकान  रही 
मोंय फ़ैल होवेक डर से दिनसगर (दिन - राईत पढ़त रहों 
मोर डहर (सफर) में हर - हमेशा इम्तिहान रही 
गुड्डी (पतंग) राईख के उड़ायखे भूईल गेलों 
मोर गाँव में धुंगा वाला आसमान रही 
ऊ एगो शिकारी रहे छुईप के शिकार करत रहे 
हाम भी शामिल ऊकर हर जुर्म में हममचान  रही

 पहाड़ कर उतुंग शिखर तक चईढ़के ऊ हमके  भूईल गेलक 
हम ऊकर ले सीढ़ी कर पायदान रही 

हमरे कर मुंडी (सिर) में जरुरत कर बोझ रहे ऐतना
बूढ़ाल गतर (शरीर) कर भीतरे नवजवान रही 
 हाम आपन जंग सरहद में कहियो नी हारली 
घरे कर जंग में अक्सरहा लहूलुहान रही 

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बेस लागलक राउअर कविता के पढ़ल बाद ,माय भवानी की कर किरपा राउअर पर बनल रहे और अइसने कविता हमींन कर झारखण्ड से लिखते रहू , पहाड़ कर उतुंग शिखर तक चईढ़के ऊ हमके भूईल गेलक
    हम ऊकर ले सीढ़ी कर पायदान रही ,जोहार झारखण्ड

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    1. उत्साह बढ़ाएक खातिर धन्यवाद !
      आऊर क्षमा चाहथों मिश्र जी देरी से उत्तर देवक ले l

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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