शुक्रवार, 7 मार्च 2014

नागपुरी कविता - वसन्त - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - वसन्त
अशोक "प्रवृद्ध"

जाड़ कर बंद कोठा कर दुरा से 
अंधार के इन्जोर में लाइन्हे वसन्त l

महकत- गमकत फूल कर कली ले भौंरा कर ,
प्रेम सन्देश लाइन्हे वसन्त
 
पीयर रंगक मुँह में वसन्ती आभा 
फेंकते - बिखराते आहे वसन्त

किसान ले फसल कर सौगात 
ले के आयहे वसन्त

जीवन के जीवन देवेक 
एक धाँव फिर से आहे वसन्त

आउर पढ़े वाला छौव्वा मन ले 
देवी सरस्वती मांय कर वरदान ले के आयहे वसन्त 

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