शनिवार, 8 मार्च 2014

नागपुरी कविता - लूट कर मिल गेलक छूट , रे भईया जईम के लूटा - अशोक “प्रवृद्ध”

नागपुरी कविता - लूट कर मिल गेलक छूट , रे भईया जईम के लूटा 
- अशोक “प्रवृद्ध”  


लूट कर मिल गेलक छूट , रे भईया जईम के लूटा
खाली कईर देवा सबकर जेब ,रे भईया जईम के लूटा

मूड़ी से लेईके गोड़ तक, लगाय देवा रेलम पेल ,
रे भईया जईम के लूटा
गरीब से लेईके अमीर तक, सब कर बजाय देवा बाजा आउर ढोल
रे भईया जईम के लूटा
लूट कर मिल गेलक छूट , रे भईया जईम के लूटा
खाली कईर देवा सबकर जेब , रे भईया जईम के लूटा

अईसन निकलावा दिवाला, खायेक कर पईड़ जाए सबके लाला
रे भईया जईम के लूटा
बीवी है हरसाल , मियाँ कर ढीला होवल पैजामा
रे भईया जईम के लूटा
लूट कर मिल गेलक छूट , रे भईया जईम के लूटा
खाली कईर देवा सबकर जेब , रे भईया जईम के लूटा

कोईला से लेईके सोना तक , सबसे भरा आपन जेब
रे भईया जईम के लूटा
शरम - हया आउर इज्जत , देवा सबके बेईच
रे भईया जईम के लूटा
लूट कर मिल गेलक छूट ,रे भईया जईम के लूटा
खाली कईर देवा सबकर जेब ,रे भईया जईम के लूटा


सड़थे अनाज , प्रवृद्ध आउर किसान चढथयं बलि कर भेंट  
रे भईया जईम के लूटा
सरसों है जग मग , निकलाय लेवा ईकर तेल
रे भईया जईम के लूटा
लूट कर मिल गेलक छूट ,रे भईया जईम के लूटा
खाली कईर देवा सबकर जेब ,रे भईया जईम के लूटा




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