सोमवार, 3 मार्च 2014

नागपुरी कविता - दुश्मन अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - दुश्मन
अशोक "प्रवृद्ध"

ऊ दुश्मन 
जे के हम 
देईख सकिला साफ़ - साफ़ 
ईसन दुश्मन 
अक्सर दूर - दूर रहयनां 
कखनो - कखनों ही 
 फटकयनां आस - पास 

उनकर करल प्रहार से 
अक्सरहा बईच जाईला हमरे 

ऊ दुश्मन 
जे के हमरे दुश्मन नी समझीला
अक्सरहा रहयनां आस - पास 
ऊ बुराई मन नीयर 
जे रहयनां हमरे कर साथ 

आदत मन नीयर 
ईसन दुश्मन कर वार से 
बईच नी पावीला (सकिला) हमरे 
ईसन दुश्मन कर
 कोनों नाव (नाम) नी होवेला 

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