सोमवार, 3 मार्च 2014

नागपुरी हास्य कविता -रावण कर चमत्कार- अशोक "प्रवृद्ध '

नागपुरी हास्य कविता -रावण कर चमत्कार

अशोक "प्रवृद्ध '


श्री राम कर नाव (नाम) से पखल (पत्थर) कर पऊरेंक (तैरने) कर समाचार 
जब लंका पहुँचलक  ,

तब हुवां कर जनता में काफी हलचल होलक  
कि भईया जेकर नावे से  (नाम से ही) 
पखल पऊरें लागेला  ऊ अदमी भी का गजब कर होई ?

ई नीयर (तरह) बेकार कर
 बतकही - अफ़वाह से परेशान
 रावण तैश में आयके चैलेन्ज कईर देलक 
आउर ढिंढोरा पीटवाये देलक कि काईल से रावण कर नाव
लिखल पखल भी पानी में गिराल पऊरान्ल जाई  !!


आउर अगला दिन श्रीलंका में 
सार्वजनिक अवकाश कर घोषणा कईर देल गेलक !
निश्चित दिन आउर समय पर
सब जनता रावण कर चमत्कार
 देखेक ले पहुँईच गेलयं ।

नियत समय पर रावण आपन भाई - बंधु,
पत्नी आउर सरकारी कर्मचारी मनक साथ पहुँचलक 
आउर एगो बड़का - भारी पखल में उकर नाव  लिखल गेलक ।
मजदूर मन ऊ पखल के 
उठालयं आउर समुदर में
- ड़ाईल देलयं पखल सीधे पानी कर भीतरे !

सारा कर सारा जनता ई सबके 
साँस रोईक के देखत रहे
 जबकि रावण लगातार मने- मने मंत्रोचारण करत रहे  ।
 अचानक, पखल वापस उपरे
आलक आउर पऊरें लागलक।

जनता खुशी से पगलाय गेलक 
आउर लंकेश कर जय कर नारा से 
आसमान के गुन्जाय देलक ।
एगो सार्वजनिक समारोह कर बाद रावण आपन 
लाव - लश्कर कर साथ आपन महल वापस चईल गेलक 


आउर जनता के भरोसा होय गेलक 
कि ई राम -वाम तो बस ईसने है ,
पखल तो हमरे कर महाराजा रावण कर नाव से भी 
पऊरेंला 
लेकिन ओहे राईत के मंदोदरी ई बात के नोटिस करलक 
कि रावण पलंग में सुईतके बस छत के देखले जाथे ।

"का होलक स्वामी 
फिर से अमल (अम्ल) कर कारण से नींद नी आवथे का ?"
"इनो टेबुल कर दराज में पड़ल है ले लानों का ?"मंदोदरी पूछलक ।
"मँदु !रहेक दे 
। आईझ तो इज्जत बस लूटते - लूटते बाँचलक।""आईन्दा से ईसन चैलेन्ज आउर प्रयोग नी करबूं। "
छत के एकसिरथा देखते रावण जवाब देलक 


मँदोदरी चौंक के उठलक आउर कहलक , “ईसन का होय गेलक स्वामी ?”
रावण आपन मुंडी (सिर) कर नीचे से हाथ 
निकलाय के छाती में राखलक आउर कहलक 
"ऊ आईझ विहान (सुबह) बेरा ईयाईद है पखल 
पऊरन्त रहे ?"

मँदोदरी एगो मधु मुस्कान कर साथ में हाँ में मुंडी हिलालक।
“ पखल जब पानी में नीचे चईल जाय रहे ,
ऊकर साथे मोरो सांस नीचे चईल जाय रहे । " रावण कहलक ।
असमंजस में पड़ल मँदोदरी कहलक  , “ लेकिन पखल वापस उपरे भी तो आय गेलक नी ?
वैसे कोन (कौन) मन्त्र के पढ़त रही रउरे 
जेकर से पानी में नीचे गेल पखल वापस उपरे आयके  पऊरे लागलक ?"

ई बात सुईंनके रावण 
एगो लम्बा साँस लेलक आउर कहलक 
मंतर - वंतर (मन्त्र- वंत्र) कोनों नी 
पढ़त रहों बल्कि घरी - घरी रटत रहों कि 
"" हे पखल ! तोके राम कर कसम है , कृपा कईरके ना डूबबे भाई
  "

!! जय श्री राम !!रावण कर चमत्कार!!

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