गुरुवार, 28 अगस्त 2014

नागपुरी कविता - समय हर - हमेशा चलतेहें रहेला - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - समय हर - हमेशा चलतेहें रहेला 
अशोक "प्रवृद्ध"

समय कर गत्ति के रोकेक चाहयनां ऊ मन 
जेकर खिलाफ होवेला समय 
फिर भी समय बढ़तेहें जायेला 
जैसे बढ़तेहें जायेला नदी 
आपन उद्गम ठाँव से समुन्दर तक 
सब बाधा रूकावट के तोड़ते - फोड़ते 
चिरेला धरती कर सीना 
नदिये नीयर होवेला समय 
हर - हमेशा चलतेहें रहेला 
नदिए नीयर सबके सुख - शुकुन देवेला 
कखनों - कखनों समय 
राऊर हाथ पकईड़के 
घुमयेक लेई जायेला 
बीतल अतीत कर गली में 
फिर ऊ राऊरे के खड़ा कईर देवेला 
ऐखन वर्तमान कर आईना कर सामने 
का राऊरे 
आपन बदलल रूप के , चेहरा के देईखके 
नी डेराब ? भयभीत नी होअब ?
समय डरुवायेक , भयभीत करेक नी चाहेल 
ऊ राऊरे कर साथ होवेक चाहेल 
हर क्षण , हर समय 
ताकि , समय कर आहट के सुनते हुए 
राऊरे महसूस कईर सकू 
ऊकर गीत - संगीत 
आऊर लेई सकू 
उचित अवसर मौका कर सौगात

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