गुरुवार, 28 अगस्त 2014

नागपुरी में वेदार्थ

नागपुरी में वेदार्थ
- अशोक "प्रवृद्ध"

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुवरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात ॥

नागपुरी में मन्त्र कर अर्थ - ऊ प्राणस्वरूप,दुःखनाशक, सुखस्वरूप,श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक देवस्वरूप परमात्मा के हमरे अंतःकरण में धारण करील l ऊ परमात्मा हमरे कर बुद्धि के सन्मार्ग में प्रेरित करयं l
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उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ।। 
 -कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र १४

अर्थात -उठो, जागो, और जानकार श्रेष्ठ पुरुषों के सान्निध्य में ज्ञान प्राप्त करो । विद्वान् मनीषी जनों का कहना है कि ज्ञान प्राप्ति का मार्ग उसी प्रकार दुर्गम है जिस प्रकार छुरे के पैना किये गये धार पर चलना ।

नागपुरी अर्थ - उठू , जागू आऊर जानकार (विद्वान)) श्रेष्ठ पुरूष मनक संघे ज्ञान प्राप्त करू l विद्वान मनीषी मनक कहेक है कि ज्ञान प्राप्त करेक कर डहर (मार्ग) ओहे तरी (नीयर)  दुर्गम है जे तरी (नीयर) छुरा कर पैना करल धार में चलेक l
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मृत्यो पदं योपयन्तो यदैव ,
द्राघिय आयु परतरं दधाना ।
आप्यायमाना प्रजया धनेन । 
शुद्धा पूता भवत यज्ञियास ।। 
ऋग्वेद 10.18.2, अथर्ववेद 12.2.30 

अर्थात  - हे मानवो! मृत्यु के भय को दूर कर, लम्बी व दीर्घ आयु को धारण करते हुए तुम यहाँ आओ । हे यज्ञकर्ताओ! तुम संतान व धन से संपन्न होते हुए, शुद्ध व पवित्र होवो।

नागपुरी अर्थ - हे मनुख (मनुष्य) मन ! मृत्यु कर डर (भय) के दूर कईरके , लंबा आऊर सुदीर्घ उम्र (आयु) के धारण करते हुए तोहरे मन हियाँ आवा । हे यज्ञ कर्ता मन ! तोहरे संतान आऊर धन से संपन्न होते हुए शुद्ध आऊर पवित्र होवा ।
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नमो महद्भ्यो नमो अर्भकेभ्यो नमो युवभ्यो नम आशिनेभ्यः।यजाम देवान्यदि शक्नवाम मा ज्यायसः शंसमा वृक्षि देवाः॥- ऋग्वेद-संहिता - प्रथम मंडल सूक्त २७ , मंत्र ९ /ऋग्वेद मंत्र संख्या ३१२

मंत्रार्थ - बड़ो, छोटों , युवको और वृद्धो को हम नमस्कार करते है। सामर्थ्य के अनुसार हम देवो का यजन करें। हे देवो! अपने से बड़ो के सम्मान मे हमारे द्वारा कोई त्रुटि न हो॥



नागपुरी अर्थ - बड़ , छोट , नवजवान आऊर वृद्ध मन के हम नमस्कार करीला l
सामर्थ्य कर अनुसार हम देव मन कर यजन करब l
हे देव ! आपन से बड़ मनक सम्मान में हमर से कोनों त्रुटि ना होवोक ll

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सध्रीचीनान् व: संमनसस्कृणोम्येक श्नुष्टीन्त्संवनेन सर्वान्।
देवा इवामृतं रक्षमाणा: सामं प्रात: सौमनसौ वो अस्तु।।
-अथर्व. ३-३०-७

अर्थात - तुम परस्पर सेवा भाव से सबके साथ मिलकर पुरूषार्थ करो। उत्तम ज्ञान प्राप्त करो। योग्य नेता की आज्ञा में कार्य करने वाले बनो। दृढ़ संकल्प से कार्य में दत्त चित्त हो तथा जिस प्रकार देव अमृत की रक्षा करते हैं। इसी प्रकार तुम भी सायं प्रात: अपने मन में शुभ संकल्पों की रक्षा करो।


नागपुरी अर्थ -  तोयं परस्पर सेवा - भाव से सब कर साथ मिल के पुरुषार्थ कर l उत्तम ज्ञान प्राप्त कर l योग्य नेता कर आज्ञा में कार्य करेक वाला बन l दृढ - संकल्प से कार्य में दत्त - चित्त हो आऊर जे नीयर देव मन अमृत कर रक्षा करयनां ,से हे नीयर तोयं भी साँझ - बिहान आपन मन में शुभ संकल्प कर रक्षा कर l

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मा नः सोमपरिबाधो मारातयो जुहुरन्त ।
आ न इन्दोवाजे भज ॥ ऋग्वेद 1-43-8

नागपुरी अर्थ - हमरे मनक ज्ञान में बाधा डालेक वाला आऊर धन कर लोभी हमरे के ना सतांव . हमारे मनक ज्ञान हमरे कर बल के बढाए 

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