शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

नागपुरी कविता - चाँदनी छिटकल है ,फिर भी मोर मन खामोश है। - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - चाँदनी छिटकल है ,फिर भी मोर मन खामोश है।
अशोक "प्रवृद्ध"

चाँदनी छिटकल है ,फिर भी मोर मन खामोश है।
बेखबर ई राईत में सारा संसार मदहोश है।

वक्त आगे भागथे,लागथे जईम जाहे कदम,
हाँ, सहारा देवथे मोर तन्हाई कर आगोश है।

हँसथे चेहरा मोर , तोयं  तो बस एतने जानीस ,
कालेकि गम दिल संगे छातिये में परदापोश है।

माँगते मोयं रईह गेलों, देई दे बहार तनी मोखों ,
अनसुना कईरके बईढ गेले , इकर बड़ा आक्रोश है।

अब कहाँ रौनक बांचलक , "प्रवृद्ध" खुशी - उमंग कर हियाँ ?
घटथे साँस संगे धड़कन कर  पल-पल जोश है।


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