रविवार, 15 दिसंबर 2013

समलैंगिकता पर एगो नागपुरी कविता अशोक "प्रवृद्ध"

समलैंगिकता पर एगो नागपुरी कविता
अशोक "प्रवृद्ध"

इ आईज कर डिमांड हके रउरे के नी बुझई
आब नर नर संगे, मादा मादा संगे जई

सुप्रीम कोर्ट दे रहे एगो अइसन फैसला
सेकर विरोध में खड़ा होय गेलयं खाङ्ग्रेसी साला
गे मन कर  मन बढल है लेस्बियन कर हौसला
भइया संगे मूंछ वाली भउजी घर आवी
इ आईज कर डिमांड हके  रउरे के नी बुझई

खतम भे गेलक आब धारा तीन सौ सतहत्तर
छूटा घुमबयं आब समलैंगिक सभत्तर
रीना आब बईन जई लीना कर लुगाई
इ आईज कर डिमांड हके रउररे के नी बुझई

पछिमे से मिलहेबअइसन इंसपिरेशन
बेसे होवी आब ओतना नी बढी पोपुलेशन
रोपत (बोअत) रहबयं बीज लेकिन कहियो फूल नी फुलाई
इ आज कर डिमांड हके रउरे के नी बुझई

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