शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

नागपुरी कविता - रूपया कहाँ गिरथे ?- अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - रूपया कहाँ गिरथे ?
अशोक "प्रवृद्ध"

रूपया कहाँ गिरथे ?
के कहेला -
रूपया गिरथे
गिरथे तो आदमी
गरीबी कर रेखा से नीचे
ऊपर जाथे कीमत , दाम
नीचे आवथे ई रेखा !
रूपया कहाँ गिरथे ?
गिरथे तो साख ई देश कर
सिरमौर बनेक कर ख्वाब देखतेहें देखते
सर  उठायेक लाईक भी नी रहली ।
रूपया नखे गिरत मोर भाई
गिरथे ई देश कर राजनीति
स्कूल में जहर खायके मरल बच्चा मन पर राजनीति
उत्तराँचल कर त्रासदी पर राजनीति
बिहार कर रेल से पिसल आदमी मन पर राजनीति
बलात्कार पर राजनीति
हत्यारा मन पर राजनीति
चीत्कार पर राजनीति
हाहाकार पर राजनीति
हाय रे ई देश कर राजनीति ।
गिरथे मनोबल देश कर
गिरथे  स्वाभिमान देश कर
पाकिस्तान से पडोसी धमकाथयं
चीन से सीमा पर गुर्रात हयं
सब कुछ गिरथे लेकिन ऊ काले नी गिरथे
काले नखे गिरत- जेकर कारण से सब कुछ गिरथेब
नीं रह्लक ई देश के दरकार जेकर
ऊ गिरत काले नखे सरकार  ईकर ।

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