मंगलवार, 7 मई 2019

परशुराम एगो वंश परम्परा कर नाँव

आईझ बैशाख शुक्ल तृतीया कर पावन दिन हके। आईझ कर दिन के अक्षय तृतीया कहयंना। अक्षय तृतीया कर दिन कोई भी शुभ कार्य बिना मुहूर्त देखुवाले कराल जाय सकेला। ई दिन सोना, चांदी आऊर विभिन्न धातु कर वस्तु किनेक कर परम्परा है। मान्यता है कि त्रेता युग कर आरंभ एहे पावन तिथि से होय रहे। मान्यता कर अनुसार इस तिथि को उपवास रखेक, स्नान दान करेक से अनंत फल कर प्राप्ति होवेला। व्रती के कभी भी कोनो चीज़ कर अभाव नी होवेला, उकर भंडार हमेशा भरले रहेला। ई व्रत कर फल कभी कम नी होवे वाला, न घटेक वाला, कभी नष्ट नी होवे वाला होवेक कर कारण ही इके अक्षय तृतीया कहल जाएला। वैशाख मास कर शुक्ल पक्ष कर तृतीया तिथि के भगवान परशुराम जयंती कर जन्मदिन अर्थात परशुराम जयंती कर रूप में भी मनाल जाएला। भगवान विष्णु कर षष्टम अवतार परशुराम कर अतिरिक्त विष्णु कर अवतार नर व नारायण कर अवतरित होवेक कर मान्यता भी ई दिन से जुड़ल है।
पौराणिक मान्यतानुसार त्रेता युग में विष्णु कर षष्ठम अवतार भगवान परशुराम कर जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र कर वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका कर गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया के होय रहे। उनके भगवान विष्णु कर आवेशावतार मानल जाएला । पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार कर अनन्तर उनके राम , जमदग्नि कर पुत्र होवेक कर कारण जामदग्नय आऊर शिव कर द्वारा प्रदत्त परशु धारण करल रहेक कर कारण ऊ परशुराम कहलालयं।
भगवान परशुराम कर नाँव आते ही उनकर द्वारा ई पृथ्वी के इक्कीस बार क्षत्रियों से मुक्त कराएक, सीता स्वयम्बर कर बाद श्रीराम कर अनुज लक्ष्मण से गर्मागर्म विवाद , महाभारत काल में काशीराज कर बेटी- अम्बा, अम्बिका, अम्बालिका के भीष्म पितामह द्वारा अपहरण कईर के लानेक कर बाद विचित्रवीर्य से विवाह करेक से इंकार करे वाली अम्बा से भीष्म कर व्याह कराएक ले भीष्म से युद्ध करेक कर बात आदमी मनक स्मृति में शीघ्र ही कौंधे लागेला।ई एगो आश्चर्यजनक तथ्य है कि सहस्त्राब्दियों वर्ष पूर्व सतयुग यानी कि कृतयुग कर अंत में भगवान परशुराम उत्तर आऊर पूर्व कर राजा मनक एगो महासंघ बनायके आईझ कर गुजरात कर हैहय राजा मनक विरुद्ध एगो महासंग्राम के विजयी नेतृत्व प्रदान कईर रहयं। एहे कारण है कि परशुराम कर नेतृत्व में हैहय मनक विरुद्ध सत्ययुग कर अंत में होअल ई महासंग्राम कर विजेता महानायक परशुराम सर्व लोकख्यात होय गेलयं। आऊर स्थिति ई होय गेलक कि वशिष्ठ आऊर विश्वामित्र मनक वंश परम्परा नीयर परशुराम जों भार्गव वंश कर रहयं, एकर पूरा एगो वंश परम्परा बईन गेलक, जेकर सब महापुरुष स्वाभाविक रूप से भार्गव यानी कि परशुराम कहालयं । आईझ स्थिति ई होय जाहे कि वशिष्ठ आऊर विश्वामित्र नीयर सब भार्गव यानी कि सब के सब परशुराम भी एके होय जाहैं ।
पौराणिक ग्रंथ मनक अध्ययन से ई सत्य कर सत्यापन होवेला कि परशुराम कई युग तक विभिन्न युगपरिवर्तनकारी घटना मनक साक्षी आऊर स्वयं कारण यानी कि कारक बनलयं। हैहय मन से लड़े वाला परशुराम सतयुग में होलयं। हैहय मन से होवल ई महासंग्राम में परशुराम हैहय राजा मन के एक कर बाद एक इक्कीस धांव पराजित करलयं। एहे बेरा से यानी कि ई घटना कर कारण से हें भारतीय स्मृति में ई बात बैईठ गेलक कि परशुराम भारत भूमि के इक्कीस धांव क्षत्रिय से रहित कईर देलयं। विद्वान मन प्रायः ई सवाल उठायं ना कि का क्षत्रिय मनक इक्कीस धांव विनाश कोई एगो योद्धा कईर सकेला? का ई संभव है? इकर बाद त्रेतायुग में एगो परशुराम रहयं जे शिव धनुष तोड़े वाला श्रीराम कर साथ विवाद करलयं , उकर शौर्य के चुनौती देलयं आऊर आऊर राम से अपन मद-दलन करवाय के लौटलयं । इकर बाद द्वापर में एगो परशुराम होलयं , जे अम्बा से भीष्म पितामह कर व्याह कराएक ले भीष्म से युद्ध करलयं। इकार से ई स्पष्ट होय जाएला कि परशुराम सतयुग , त्रेतायुग आऊरद्वापर युग तीन युग तक जीवित रहलयं । पौराणिक मान्यतानुसार ऊ आईझ भी जीवित हैं आऊर कल्कि अवतार में विष्णु कर ऊ अवतार कर गुरु पथप्रदर्शक बनबयं। परशुराम के सप्तचिरंजीवी आऊर अष्टचिरंजीवी मन में भी शामिल करल जाहे। विद्वान मनक काहेक है कि विविध युग में उपस्थित सभी परशुराम एके गो व्यक्ति नी होय सकेना बल्कि ईपरशुराम कर वंशज मनक वंश परम्परा कर विभिन्न युग में जन्म लेवे वाला कई व्यक्ति हकयं ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें