मंगलवार, 7 मई 2019

बेईमान आदमी भी अपन मुनीम ईमानदार चाहेला

राऊरे मन व्यवहार में भी देईख होवब कि आदमी केतना भी बेईमान होवोक , बदमाश होवोक , लुटेरा होवोक , डाकू होवोक लेकिन ऊ कभी नी चाहेला कि मोर (उकर) साथ दूसर कोई बदमाशी करे। बेईमान आदमी भी अपन मुनीम ईमानदार चाहेला । बदमाश आदमी भी अपन कोषाध्यक्ष यानि कि साथी, संगी ईमानदार चाहेला । ईमानदार आदमी मन तो ईमानदार आदमी के प्यार करबे करयंना, लेकिन बेईमान आदमी मन के भी ईमानदार आदमी कर आवश्यकता होवेला। यानी कि दैवी गुण आत्मा कर निकटवर्ती हैं सेले दैवी गुणवाला के प्रायः सब लोग प्यार करयंना। आसुरी स्वभाव कर आदमी भी दैवी गुणवाला कर प्रति भीतर से झुकल रहयंना, खाली बाहरे से फुफकारते रहयंना । श्रीरामजी कर प्रति रावण भीतर से झुकल रहे, लेकिन बाहरे से फुफकारते - फुफकारते मईर गेलक । कंस श्रीकृष्ण कर प्रति भीतर से प्रभावित रहे, लेकिन बाहरे से दुष्टता करत रहे । एहे नीयर जेकर में दैवीय गुण रहेला उकर कुटुम्बी, पड़ोसी मन बाहरे से चाहे उकर हंसी उड़ायं, दिल्लगी करयं , उपहास करयं, लेकिन भीतरे में उकर से प्रभावित होते जायंना । सेले आदमी मन के चाही कि अगर आसुरी स्वभाव कर दस-बीस गो आदमी मन उकर मजाक उड़ायं, उकर विरोध करयं , उकर निन्दा करयं या फिर कोई आरोप-लांछन लगायं तो आदमी के चिंतित नहीं होवेक चाही। आदमी के कभी भयभीत नहीं होवेक चाही। उके सदा इयाईद राखेक चाही कि –
इल्जाम लगाएक वाला इल्जाम लगालैं लाख मगर ।
तोर सौगात समईझके मोयं मुड़ी में उठाले जाथों । । 
मनुष्य कर जीवन में भी भीतरे दया होवेक चाही । लेकिन दया कर मतलब ई ना लागे कि सदा मूर्ख बनल रहू। कभी दुष्टजन कर प्रति फुंफकार भी 

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