मंगलवार, 21 मई 2019

आर्य कोनो जातिसूचक नाँव ना लागे अपितु गुण कर स्वभाव कर सूचक हके


आर्य कोनो जातिसूचक नाँव ना लागे अपितु गुण कर स्वभाव कर सूचक हके




आईझ काईल आर्य शब्द बहुत चर्चा में आहे । आर्य शब्द कर अर्थ श्रेष्ठ मानव होवेला आऊर श्रेष्ठ गुण से युक्त वेद के मानेक वाला आदमी मन के आर्य कहल जाहे। ई मन भारत कर मूल निवासी रहयं। सृष्टि कर आरम्भ में एहेआर्य मन ई जम्बू दीप स्थित आर्यावर्त के वैदिक ज्ञान-विज्ञान से युक्त श्रेष्ठ गुण कर धारण करेक वाला आर्ये मन बसाय रहयं। ई ऊ समय रहे जब संसार में तिब्बत कर अलावा आऊर कहीं कोई मनुष्य निवास नी करत रहयं , संसार कर सम्पूर्ण भूमि मनुष्य से रहित खाली पड़ल रहे। इकर से पूर्व भारत में वनवासी, आदिवासी या फिर द्राविड़ नाँव कर कोई जाति निवास नी करत रहयं, इकर कोई प्रश्न ही नहीं रहे काले कि ई सृष्टि कर आदि काल रहे ।


ई बात भी ध्यान देवेक लायक है कि सृष्टि कर आदि काल आऊर उकर बाद कर समय में आर्य, दास तथा दस्यु आदि केऊ मुनष्य कर जाईत यानी कि जाति नि रहयं अऊर ना ही , ई मनकर बीच में होवल कोनो लड़ाई या फिर युद्ध मनक वर्णन वेद में नखे । वेद में आर्य आदि शब्द गुणवाचक आहयं, जातिवाचक नहीं। जाति तो संसार कर सभी मनुष्य कर एक है आऊर ई मनुष्य जाति कर स्त्री आऊर पुरूष दुई यानी कि दो उपजाति कईह सकीला। जे आईझ कर पाश्चात्य लेखक ऋग्वेद में आदिवासी के चपटी नाक आऊर करिया यानी कि काली त्वचा वाला बतायंना, ऊ असत्य, निराधार आऊर अप्रमाणिक है। ऊ मन ई भी कहयंना कि आर्य मन बाकी मनक बस्ती (पुर) कर विध्वंस कईर देत रहयं, आऊर कभी-कभी आर्य मनक आर्यम कर साथ भी युद्ध होय जात रहे। ऊ मनक ई सारा बात वेद आऊर सत्यान्वेषण कर विरुद्ध होवेक से काल्पनिक आऊर प्रमाणहीन हैं।

आर्य आऊर दस्यु जातिसूचक नहीं अपितु गुण-कर्म-स्वभाव कर सूचक हके। वेद में भी आर्य आऊर दस्यु शब्द के गुण-कर्म-स्वभाव कर सूचक बताल जाहे। वेद में उपलब्ध ई मन्त्र कर प्रमाण से सब विदेशी आऊर देशी अल्पज्ञ विद्वान मन कर आर्य विषयक भ्रान्ति आऊर मिथ्या मान्यता मनक खण्डन होय जाएला। ईश्वर द्वारा प्रदत्त ऋग्वेद कर मन्त्र 1/51/8 में आर्य आऊर दस्यु के जातिसूचक नहीं बल्कि गुण-कर्म-स्वभाव का सूचक बताल जाहे-


वि जानीह्यार्यान् ये च दस्यवो बर्हिष्मते रन्ध्या शासदव्रतान्।
शाकी भव यजमानस्य चोदिता विश्वेत्ता ते सधमादेषु चाकन।।
-ऋग्वेद 1/51/8


अर्थात- ई संसार में आर्य अर्थात श्रेष्ठ आऊर दस्यु अर्थात विनाशकारी ई दुई प्रकार कर स्वभाव वाला स्त्री आऊर पुरुष हैं। हे परमैश्वर्यवान् इन्द्र (परमात्मा) ! राऊरे बर्हिष्मान् अर्थात संसार कर परोपकार रूप यज्ञ में रत आर्य मनक सहायता ले (परहित विरोधी, स्वार्थ साधक आऊर हिंसक) दस्यु मन कर नाश करू । हमरे के शक्ति देऊ कि हमरे अव्रती (व्रतहीन, सामाजिक नियम आऊर वेदविहित ईश्वराज्ञा भंग करेक वाला) अर्थात अनार्य दुष्ट पुरुष मन पर शासन करू। ऊ मन कदापि हमरे पर शासन ना करयं। हे इन्द्र (ऐश्वर्यो कर स्वामी ईश्वर) ! हमरे सदा ही राऊरे कर स्तुति करेक कर कामना करीला। राऊरे आर्य सद्विचार कर प्रेरक बनू, जेकर से हमरे अनार्यत्व के त्याईग के आर्य अर्थात श्रेष्ठ बनू ।

 ई मन्त्र में ‘‘आर्यशब्द कर प्रयोग परोपकार में संलग्न आर्य अर्थात् श्रेष्ठ मनुष्योचित आचरण वाला आदमी मन ले प्रयुक्त होय हे। कोईयो भी समुदाय में अच्छा आऊर बुरा तथा श्रेष्ठ आऊर कदाचार करेक वाला आदमी होबे करयंना । मन्त्र में ईश्वर से प्रार्थना करल जाहे कि हमरे मन आर्य विचार कर प्रेरक बनू आऊर अनार्यत्व यानी कि बुराई आऊर दुगुर्ण के त्याईग देऊ। से ले ई बात में कन्हु कोई संशय नखे कि आर्य जातिसूचक शब्द नहीं अपितु मनुष्यों में श्रेष्ठ गुण कर प्रधानता कर सूचक है।

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