शनिवार, 25 मई 2019

काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह – ई पांच पिशाच रुधिर पीयेंना।



कामक्रोधमदलोभमोह – ई पांच पिशाच रुधिर पीयेंना।



काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह ई पांच पिशाच रुधिर पीयेंना।

अथर्ववेद कर मंत्र – 8/4/22 में उपदेश देल जाए हे-
 उलूकयातुमुत शुशलूकयातुम्, जहि श्वयातुमुत कोकयातुम।
सुपर्णयातुमुत गृध्रयातुम, दृषदेव प्रमशा रक्षइन्द्र।।
- अथर्ववेद 8/4/22

ई वेद मंत्र में उल्लू कर चाल अज्ञानता अर्थात मोह, भेड़िया कर चाल, क्रोध, हंस कर चाल, अहंकार, गिद्ध कर चाल (लोभ) तथा चिड़ा कर चाल (काम) रूपी पांच शत्रु के जितेक कर आह्वान करल जाहे।

वास्तव में ई पांचों राक्षस मनुष्य कर मूल प्रवृत्तिजन्य मनोविकार हकै,  जिनकर त्याईग करके ही मनुष्य जीवन सफल होय सकेला। प्रत्येक मनुष्य में मूल-प्रवृत्ति उग्र या शान्त रूप में अवश्य होवेला। मूल प्रवृत्तिय अपन जन्मजात अथवा प्राकृत रूप मे अत्यन्त विनाशकारी होवेना। मूल प्रवृत्ति प्रदत्त शक्ति है, जे कारण प्राणी किसी विशेष प्रकार कर पदार्थ कर बटे यानी कि ओर ध्यान देवेला आऊर उकर उपस्थिति में विशेष प्रकार कर संवेग कर अनुभूति करेला आऊर ऊ पदार्थ कर सम्बन्ध में एक विशेष प्रकार कर आचरण करेला । ई मूल प्रवृत्तिजन्य मनोविकार कर  विनाशकारी दुष्प्रभाव से इनकर शोध द्वारा बचल जाय सकेला। धर्माचरण, सदाचार, सद्व्यवहार, स्वाध्याय, योग तथा सत्संग से दुष्ट मनोविकारों कर दुष्परिणाम से मुक्त होवल जाय सकेला ।

काम

काम कर प्रवृत्ति या मनोवेग अत्यन्त प्रबल होवेला। काम कुसुम धनु सायक लीने।
 काम कर दुर्दमनीय वेग से मनुष्य बेबस आऊर पस्त होय जायेला ।

स्त्री जातो मनुष्याणां स्त्रीशां च पुरुषेषु वा।
परस्परकृतः स्नेहः काम इव्यभिधीयते।। शार्गधर-1/67

अर्थात- स्त्री में पुरुष कर आऊर पुरुष में स्त्री कर परस्पर स्वाभाविक आकर्षण आऊर स्नेह के काम कहयंना।

से हे ले स्त्री-पुरुष कर समागम से सन्तान की उत्पत्ति होवेला आऊर सृष्टि कर प्रवाह चलते रहेला।

कमोजज्ञे प्रथमो नैनं देवा आपुः पितरो न मर्त्या।

तत स्वत्वर्मास ज्यामान् विश्वहा महांस्तस्मैते ते काम नम इत्कृणोमि।। अथर्ववेद-9/2/19

अर्थात- काम सबसे पहले पैदा होलक । इके न देव जीत सकेना , न पितर आऊर न मनुष्य जीत सकेना । से ले हे काम तोयं सब प्रकार से बहुत बड हीस। एहे ले मोयन तोके नमस्कार करोना ।

श्रीमद्भागवत् गीता में लिखल है-

आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्य वैरिणः।

काम रूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च।।

अर्थात- ज्ञान कर नाश करेक वाला ई काम ही ज्ञानी तथा मुमुक्षु यानी कि मोक्ष कर इच्छुक कर वैरी है।
कामनुराणां न भय न लज्जा
 अर्थात- कामी व्यक्ति को न भय होवेला न लज्जा।

अन्धीकरोमि भुवनं वधिरी करोमिजगत
 अर्थात- काम व्यक्ति के अन्धा व बईहरा कईर देवेला।

राजा भर्तृहरि श्रृंगार शतक कर पईहले हे श्लोक में काम कर निन्दा करते हुए लिख हैं -

हे काम! तोके बार-बार धिक्कार है।

मनुस्मृति में लिखल है-
न जातु काम कामनामुप भोगेन शाम्यति हविषा कृष्ण वर्त्येव भूय एवामि वर्धते।
 अर्थात- कामना के निरन्तर जगाएक से कामना कर शमन नी होव्व्ला। जे नीयर घी कर आहुति से अग्नि प्रचण्ड होवेला, ओहे नीयर  निरन्तर भोग विलास से काम भावना अत्यन्त प्रचण्ड होय जायेला आऊर कामी मनुष्य शक्तिहीन, अकर्मण्य आऊर निन्दनीय बईन जाएला ।

अनियंत्रित काम से व्यभिचार आऊर बलात्कार कर सृष्टि होवेला। आईझ अश्लील साहित्य, विज्ञापन, सिनेमा आऊर  टी.वी. सीरियल में प्रदर्शित उत्तेजक दृश्य, संवाद व संगीत आऊर अर्धनग्न पहनावा, तामसी भोजन व मद्यपान तीव्र कामुकता कर सृष्टि करयंना।

काम प्रवृत्ति के नियंत्रित व परिष्कृत करेक ले उकर मूल में उपस्थित प्रवृत्ति कर उपयोग सद्साहित्य, कला व सुसंगीत कर सृजन में करेक चाही। सात्विक जीवन व्यतीत करते हुए केवल सन्तानोत्पत्ति आऊर वंश वृद्धि करेक ले काम में  प्रवृत्त होवेक चाही। कठोर संयम एवं ब्रह्मचर्य कर पालन से हे काम पर विजय पावल जाय सकेला। गृहस्थ-ब्रह्मचारी भी काम पर नियंत्रण कईर सकेना । महाभारत कर आदि पर्व में युधिष्ठिर कर पूछने पर मंत्री कणिक कहयंना कि -धर्मादर्थश्च कामश्च स धर्म किन्न सेव्यते।
 अर्थात- अर्थ आऊर काम कर सिद्धि धर्म से होवेला ।

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