नागपुरी दोहा
अशोक "प्रवृद्ध"
आफत में पड़ल है जिंदगी , उलझल है सब हालात !
कईसन है ई जनतंत्र , जहां हईये नखे जन कर बात !!
नेता जी आहैं मौज में , जनता है सुतल भूखेऊ !
झूठा वादा सब करयनां , कष्ट हरयनां नहीं केऊ !!
हंसी - ठिठोली है कहूँ , तो कहूँ बहथे नीर !
महंगाई कर माऊर से , टूटथे सबकर धीर !!
मौसम देईख चुनाव कर , उमड़ल जनता से प्यार !
बदलल - बदलल लागथे , फिर से उनकर व्यवहार !!
राजनीती कर खेल में , सबकर आपन - आपन चाल !
मुद्दा ऊपर हावी दिसथे , जाति - धरम कर जाल !!
आईन्ख कर पानी मरल , कहाँ बाचल है शरम !
सब कर सब बिसराय गेलयं , जनसेवा कर करम !!
जब तक कुर्सी नी मिली , है देश - धरम से प्रीत !
सत्ता जब आय गेलक हाथ में , ओहे पुरना रीत !!
एके सांचा में हैं ढलल , नेता पक्ष आऊर विपक्ष !
मिलके लूटथयं देश के , मक्कारी में हैं दक्ष !!
लोकतंत्र कर परब कर , ढेईर होलक उपहास !
दागी - बागी सब भला , शत्रु होय गेलयं खास !!
राईतो - राईत बदईल गेलक , नेता मनक रंग !
काईल तक जेकर साथ रहयं , आइझ उकरे से जंग !!
मौका आलक हाथ में , सब संताप के राखू दूरे !
ने तो बहुत पछताब , चुप रहली जे राऊरे !!
जाइंच - परईख के देईख लेऊ , केकर में है कतई खोट !
सोईच - समईझ के देऊ , आपन - आपन वोट !!
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