नागपुरी कविता - जिन्दगी भईर मोके तोर ख्वाहिश रही ,
अशोक "प्रवृद्ध"
जिन्दगी भईर मोके तोर ख्वाहिश रही
साँझ तो साँझ , बिहानो - बिहान रही !
नी बुईझ हे आऊर नी बुझी , दिल कर ई लागल ,
चाहे जोन भी होई हालात , आईग तो आईगे रही !
मुद्दत होय गेलक , गोड़ घर से निकलबे नी कईर हे
सरपरस्ती में तोर , बंदिश है , बंदिश रहबे करी !
मोयं आपन कहियो कोनों , सौदा नी कर लों ,
व्यक्तित्व मोर , जे बेदाग है बेदाग रहबे करी !
काश मोर ,बस ई बात ऊ समईझ जातयं ,
आपन भी एगो हद है , आऊर ऊ हद कायम रही !
अशोक "प्रवृद्ध"
जिन्दगी भईर मोके तोर ख्वाहिश रही
साँझ तो साँझ , बिहानो - बिहान रही !
नी बुईझ हे आऊर नी बुझी , दिल कर ई लागल ,
चाहे जोन भी होई हालात , आईग तो आईगे रही !
मुद्दत होय गेलक , गोड़ घर से निकलबे नी कईर हे
सरपरस्ती में तोर , बंदिश है , बंदिश रहबे करी !
मोयं आपन कहियो कोनों , सौदा नी कर लों ,
व्यक्तित्व मोर , जे बेदाग है बेदाग रहबे करी !
काश मोर ,बस ई बात ऊ समईझ जातयं ,
आपन भी एगो हद है , आऊर ऊ हद कायम रही !
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