नागपुरी कविता - लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव !
अशोक "प्रवृद्ध"
ना जाने अबरी धाँव
केकर - केकर डूबी नाव
ऐहे सोच में पड़ल नेतामन
घुमथयं आऊर घुमबयं गांवें - गाँव
पईहले जहां कभियो - कभा
पड़त रहे उनकर पाँव
लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव !
आईझ जबकि बाजार में
कय गो चीज कर बनल है अभाव
आऊर जे मिलथयं
सेकर भी चढल ही भाव
तबो हमरे कर गाँव - देहाईत में
नेता मनक नी रही अभाव
लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव !
खेलबयं हर खेल , चलबयं सब दाँव
बदलते रह्बयं आपन हाव - भाव
लेकिन फिर चुनाव खतम होतेहें
बदईल जई उनकर स्वभाव
आऊर फिर खतम होय जई
जनता से उनकर सब लगाव
लेऊ , आय गेलक फिर से चुनाव !
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