गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

नागपुरी दोहा -राजनीति -अशोक "प्रवृद्ध"


       नागपुरी दोहा - राजनीति
         अशोक "प्रवृद्ध"

जहाँ नेवला-साँप कर , होय जाएला मेल।
कुछ इसनेहें समझू , राजनीति कर खेल।।

रहयनां हरदम ताक में, कब के के देंव पछाड़।
जेकर होवी वर्चस्व तनी , लेवयनां उकरे आड़।।

पाँच साल कर बाद में, जनता आवेला इयाईद।
खाली वोट (मत) कर चलते (वास्ते), होवेला फरियाईद।।

शासन-सत्ता पाय के , भऱयनां आपन पेट।
सात पीढी़ कर ले , दौलत लेवयनां समेट।।

घर में जेकर हो लागल, रिश्वत कर बाजार।
ऊ कैसे जानी भला, मँहगाई कर मार।।

ग़लत नीति मनक करे, जे भरपूर विरोध।
डालयनां उकरे, कदम चलेक में अवरोध।।

 अशोक "प्रवृद्ध"

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