नागपुरी दोहा - राजनीति
अशोक "प्रवृद्ध"
जहाँ नेवला-साँप कर , होय जाएला मेल।
कुछ इसनेहें समझू , राजनीति कर खेल।।
रहयनां हरदम ताक में, कब के के देंव पछाड़।
जेकर होवी वर्चस्व तनी , लेवयनां उकरे आड़।।
पाँच साल कर बाद में, जनता आवेला इयाईद।
खाली वोट (मत) कर चलते (वास्ते), होवेला फरियाईद।।
शासन-सत्ता पाय के , भऱयनां आपन पेट।
सात पीढी़ कर ले , दौलत लेवयनां समेट।।
घर में जेकर हो लागल, रिश्वत कर बाजार।
ऊ कैसे जानी भला, मँहगाई कर मार।।
ग़लत नीति मनक करे, जे भरपूर विरोध।
डालयनां उकरे, कदम चलेक में अवरोध।।
अशोक "प्रवृद्ध"
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