नागपुरी कविता - कहिनी के भाई सहिनी
अशोक "प्रवृद्ध"
कहिनी के भाई सहिनी
उ बसालयं तीन गो गाँव
दूगो उजईड़ल एगो बसबे नी करलक।।
हुवां बसलयं तीनगो कुम्हार
दूगो अंधरा एगो कर आँइखे नी रहे।।
उ मन बनालयं तीनठो हँड़िया
दूगो फुटल रहे एगो कर पेंदीये नी रहे।।
उके बेईच के मिललक तीन पइसा
दुगो खोटा एगो चलते नी रहे।।
उकर से कोडुवालयं तीन गो पोखरा
दुगो सुखल एगो में पानीये नी रहे।।
हुवां से पकड़लयं तीनगो मछरी
दूगो सड़ल रहे एगो कर पोटाय नी रहे।।
ऊ मछरी मन के कोनो गउहकीं मिलबयं होले बताब भाई -बहिन संगी - सहिया मन!
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