शनिवार, 5 अक्तूबर 2013

नागपुरी कविता - ई बदरी बइरसी

नागपुरी कविता - ई बदरी बइरसी
ई बदरी बइरसी
ई बदरी बइरसी
पुरबे से उठाय हे
पछिमे तक जाय हे
उतरे और दखिने
सगरो पसराय हे
कईटको फांक नी दीसे
अकासे ढंपाय हे
आब धरती सरसी
ई बदरी बइरसी
गरजत हे ना ठनकत हे
घनगर गुन्गुवात हे
ई बदरी गंभीर बुझात हे
पोटराय हे चागुरदी से
धरती के हरसल हय
श्याम गुनी हुलसी
ई बदरी बइरसी
जोन खेत अरियाल हे
पइन नाला सोझिआल हे
बाँध पिंड बरिआर आउर
रोके के झोंकेक तइआर हय
तहां पानी छलकी
ई बदरी बइरसी
सुरु सीरी सीरी समसी
ई बदरी बइरसी
नी मानी ई बदरी
कुछ नी राखी अपन ठीन
सब के उझईल देई
'कृष्णं बन्दे जगद्गुरुम्'
करिया घनश्याम हय
आब केऊ नइं तरसी
ई बदरी बइरसी
अथाह समुन्दर कर
पानी तो नुन्छार हय
नून के छोइड के
गुण के उठाय के
भइर के ह्रदय में
चइल देहे बांटक लेगिन
नेवईर नेवइर , झुइक झुइक
सउब के बइरसाय देवी
तरसल मनके
सरसाय देवी
पइनगर आउर गुनगर हय
उदार हय , फलदार हय
ई नेवरी आउर लहसी
ई बदरी बइरसी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें