इंतजार अशोक "प्रवृद्ध" जेठ कर दुपहरिया में खटथी ऐहे उम्मीद में कि एक दिन सावन आवी तो मन कर धरती हरियर होय जई ।
बाकी
हाय रे हमर पागल परान घाम में जइर के राख होय गेलक राह निहारत लाश होय गेलक आऊर आब
ऐहे फसल ले (खातिर) का सावन का भादो ?
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