बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

निकइल रही डहर में दोस्त खोेजेक ले (नागपुरी कविता) अशोक "प्रवृद्ध"

निकइल रही डहर में दोस्त खोेजेक ले (नागपुरी कविता)
          अशोक "प्रवृद्ध"

निकइल रही डहर में दोस्त खोेजेक ले
सभे खड़ा रहयं जहाँ अपन हाथ में खंजर लेके
मन में होय गेलक खौफ पाँव चलथे आगे
घरी - घरी आँइख चइल जाथे पाछे देखेक ले

पूरा सफर ईसने कटलक मिललक नहीं वफ़ा
घुरली आपन घर आपन दिल के खाली लेके
भला सौदागर मनक महफ़िल में बैठके का करती
जे मन तैयार रह यं हर जजबात के बेचेक ल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें