सोमवार, 14 अक्तूबर 2013

नागपुरी कविता - श्री राम महिमा अशोक "प्रवृद्ध"

               नागपुरी कविता - श्री राम महिमा
                         अशोक "प्रवृद्ध"


लेईके अवतार धरती पर रउरे , जगत कर उद्धार करली ,
धन्य! धन्य! हे राम! धन्य हइ ! रउरे सबके प्यार करली ।

आग्या माईन के पिता कर रउरे , त्याईग देली सिंहासनों के ,
सीता, लक्ष्मण कर संग पैदल, वन जाएक स्वीकार करली ।

केवट आपन नाव में , नदी पार करालक खाली (केवल) ,
सेकर (उकर) बदले में केवट के ,भव सागर से पार कईर देली ।

मौन पड़ल प्रतिमा पर भी, दया द्रिष्टि डालली जब रउरे ,
पत्थर पड़ल अहिल्या के छूईके , उके श्राप से ताईर देली ।

बन वासी मनके भी रउरे , गला लगायके अपनाली ,
खायके जूठा फल, शबरी के , एक अनोखा प्यार देली ।

कतना दानव रहे एगो मानव, सिया हरण कईर के  देखालक,
मानवता क्र रक्षा करेक ले , वानर दल तैयार करली ।

जेके राक्ष मन तड़्पालयं , ऊ मन में रउरे दया देखाली ,
मुक्ति जटायू के देली जेकर , रावण पाइङ्ख (पर) काईट देलक ।

पवन पुत्र कर साथ, गगन में चलेक कठिन नहीं रहे लेकिन,
नील आउर नल कर बनाल पुले में , चईलके सागर पार करली।

रावण बध कर बाद  रउरे हें , लंका नरेश बईन सकत रही ,
लेकिन  विभीषण के हें  रउरे , लंका कर सब राईज दे देली ।

वन से लौईट देखाली रउरे, प्रजा प्रेम कर रूप अनोखा,
जन साधारण कर कहल में भी, सीता के बनवास दे देली ।

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