नागपुरी कविता -राजनीति के सबके बुझेक आउर बुझवायेक पड़ी।
अशोक "प्रवृद्ध"
राजनीति के सबके बुझेक आउर बुझवायेक पड़ी।
देश फंसल आहे विदेशी मनक जाल में, इके छोड़ायेक पड़ी।।
सइहके लाखों कर बरबादी, मिलहे नकली आजादी।
इके नकली से असली बनायेक पड़ी।।
कोनो वंश करी राइज, चाहे जनता कर समाज।
जतना जलदी, जइसे होवी, इके फरियायेक पड़ी।।
बड़-बड़ सेठ-जमींदार, पुलिस-पलटन हथियार।
सब लुटेरा, हत्यारा के मिटायेक पड़ी।।
रूस, अमरीका से यारी, येहे हके सब दुनिया कर बीमारी।
हमरे कर देश के इ यारी कर बीमारी से बचायेक पड़ी।।
कहीं देश फिर ना टूटे, टूटल-फूटल है सेहो जुटे।
सब कर हक कर झंडा के ऊंचा फहरायेक पड़ी।।
सौ में पांचे गो हैं जहां सुखिया, बाकी दुनिया ऊपर दुखिया।
घरे-घर क्रांति कर संदेश पहुंचायेक पड़ी।।
अशोक "प्रवृद्ध"
राजनीति के सबके बुझेक आउर बुझवायेक पड़ी।
देश फंसल आहे विदेशी मनक जाल में, इके छोड़ायेक पड़ी।।
सइहके लाखों कर बरबादी, मिलहे नकली आजादी।
इके नकली से असली बनायेक पड़ी।।
कोनो वंश करी राइज, चाहे जनता कर समाज।
जतना जलदी, जइसे होवी, इके फरियायेक पड़ी।।
बड़-बड़ सेठ-जमींदार, पुलिस-पलटन हथियार।
सब लुटेरा, हत्यारा के मिटायेक पड़ी।।
रूस, अमरीका से यारी, येहे हके सब दुनिया कर बीमारी।
हमरे कर देश के इ यारी कर बीमारी से बचायेक पड़ी।।
कहीं देश फिर ना टूटे, टूटल-फूटल है सेहो जुटे।
सब कर हक कर झंडा के ऊंचा फहरायेक पड़ी।।
सौ में पांचे गो हैं जहां सुखिया, बाकी दुनिया ऊपर दुखिया।
घरे-घर क्रांति कर संदेश पहुंचायेक पड़ी।।
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