गुरुवार, 17 अक्तूबर 2013

नागपुरिया प्रेरक कहनी - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरिया प्रेरक कहनी
   अशोक "प्रवृद्ध"

एक धाँव (बार) श्रीनाथ नाव (नाम)कर एगो बाम्भन (ब्राह्मण) निर्जन वन में बैठके पूजा करत रहे । ऊ जोन गछ (पेड)़ कर नीचे बैठल रहे , सोन (ओहे) गछ में एगो बकुला (बगुली) भी बैठल रहे ।  अचानक ऊ बकुला श्रीनाथ बाम्हन (ब्राह्मण) कर ऊपरे हईग देलक (बीट कईर देलक)। श्रीनाथ बाम्हन गोस्सा (क्रोध) होयके उके श्राप (शाप) दे देलक । देखते हें देखते ऊ बकुला जईल के भस्म होय गेलक । श्रीनाथ बाम्हन बहुत खुश होलक , ऊ सोचलक उकर से बइढ़के ई दुनिया में तपस्वी दोसर कोई नखे । ऊ ईकर बहुते (खूब) प्रचार कर्ल्क । तनिक (कुछ) दिनक बाद ऊ नजीक (पास) कर एगो गांव में भीख (भिक्षा) मांगे गेलक । गाँव कर एगो घर कर सामने पहुंईचके ऊ आवाज लगालक । घर कर मालकिन आपन पति कर सेवा में लागल रहे । ऊ बाहरे निकईल के उके तनी (कुछ) देरी रुकेक ले कहलक आऊर पति कर सेवा में लाईग गेलक । उके बाहरे आवेक में तनी देरी होय गेलक । बाहरे आवेक में होवल देरी से श्रीनाथ ढ़ेईरे (काफी) गोस्सा होलक । जब ऊ औरत भीख (भिक्षा) लेके बाहरे आलक तो बाम्हन गोसायके कहलक , “ तोंय मोके एतना इंतजार (प्रतीक्षा), का ले करवाले ?” औरत कहलक -  “बाम्हन देवता मोयं कोनो बकुला (बगुली) ना लागों कि राउरे कर शराप से भस्म होय जाबूँ ? मोयं आपन कर्तव्य पालन में लागल रहों सेले राउरे के तनी देरी रूकेक पड़लक । नहीं तो मोयं राउरे के इंतजार (प्रतीक्षा) नी करवातों । राउरे गोस्सा न करू । क्रोध मनुष्य कर सबसे बड़ शत्रु होवेला । केकरो से कष्ट मिलेक बाद भी जे आदमी उकर जवाब हिंसा से नी देवेला ओहे बाम्हन होवेला । इ बात कर पुष्टि करेक ले मोंय राउरे के  एगो ठाँव (जगह) बताथों । हुवां राउरे जाऊ आउर उकर से मिलू ।"

ऊ औरत कर बताल ठाँव (स्थान) पर श्रीनाथ गेलक । हुवांं एगो शिकारी रहत रहे । श्रीनाथ ऊ औरत कर सब बात ऊके सुनालक । शिकारी ऊके बैठालक आउर कहलक , “ बाम्हन देवता मोंयं जानवर मनके माईर के उनकर मांस बेचेक कर काम करोना । मोके जानवर मनक जान लेवेक अच्छा नी लागेल लकिन (पर) ई मोर मजबूरी ह्य । आपन धर्म कर पालन करेक ले ई काम करोना ।  सबकर आपन - आपन कर्तव्य आउरं धर्म होवेला आउर इकर पालन सबके करेक चाही ।” कर्तव्य कर महत्व कर बात सुइनके श्रीनाथ कर आंईख खुईल गेलक । कालेकि उके आपन भूल कर पता चईल जाय रहे ।

रचनाकार - अशोक "प्रवृद्ध"

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