शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

नागपुरी कविता - ऊ बिपईत राम कर छउवा हके - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - ऊ बिपईत राम कर छउवा हके
अशोक "प्रवृद्ध"

ओह-हो हो
छी-छी-छी , धर्म भ्रष्ट कईर देलक !
का होलक महाराज ?
अरे-रे-रे ... एगो अछूत
बिहाने - बिहान
मोके छूईके अपवितर कईर देलक ...
फिर नहायेक पडी जाएके ... ओफ़्फ़-हो !!
का होलक ? कैसे होलक पंडित महाराज ??
ऊ देखू  , ऊ छउवा (बच्चा) ...
परीक्षा देवे स्कूल जात रहे
मोयं नी ध्यान देलों
जाते जाते
एके धाँव हपईट के
ऊ मोर गोड़ (पैर) छूय लेलक !!
तो का होलक ! छऊवे (बच्चे) तो है !!
आउर तो आउर
ऊ राउर गोड़ (पैर) छूईके
आशीर्वादे तो लेलक राउर से !!!
अरे-रे-रे ... का तोयं नी जानींस
कि -
ऊ बिपईत राम कर छउवा (बच्चा) हके ???

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