रविवार, 27 अक्तूबर 2013

नागपुरी कविता - एक धाँव फिर से तेलंगा आउर सुभाष माँगथे देश॥ अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - एक धाँव फिर से तेलंगा आउर सुभाष माँगथे देश॥
अशोक "प्रवृद्ध"

चाइरो आरा (कोना) घोर अँधार है, इंजोर माँगथे देश,
पतझड़ छाया, मधुमाश माँगथे देश,
बलिदान कर अहसास माँगथे देश,
एक धाँव फिर से तेलंगा आउर सुभाष माँगथे देश॥

तनी - मनी करिया पन्ना फाड़ल जाहे किताब से,
इतिहास के सजाल जाहे खादी आउर गुलाब से,
पूछथों का ले तेलंगा आउर सुभाष कर पता नखे ,
कैसे कईह देंव बीतल सत्ता कर कोनो खता नखे॥

एका-एक ऊ तेलंगा आउर सुभाष न जाने कहाँ हेराय गेलयं
आउर सब कर सब कर्णधार मीँठी नींद में सुइत गेलयं ,
मानू या न मानू फर्क है साजिश आउर भूल मेँ,
कोई षड्यँत्र छुपल है, समय कर धूर (धुल) में॥

गाँधी कर अहिँसा मँत्र कान्दते चलल जाथे ,
देखू ई लोकतँत्र सुतल चलल जाथे ,
आजादी कर आत्महत्या पर सभे का ले गूंगा बनल हैं ,
इकर खुदकसी कर जिम्मेदार के है ?

एखन चरका खादी कर ई आँधी नी चाही ,
दस-बीस साल एखन गाँधी नी चाही ,
हेराल शेर कर तलाश माँगथे देश,
एक धाँव फिर से तेलंगा आउर सुभाष माँगथे देश.....!!!

रचनाकार - अशोक "प्रवृद्ध"

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