रविवार, 27 अक्तूबर 2013

नागपुरी कविता - एक धाँव फिर से तेलंगा आउर सुभाष माँगथे देश॥ अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - एक धाँव फिर से तेलंगा आउर सुभाष माँगथे देश॥
अशोक "प्रवृद्ध"

चाइरो आरा (कोना) घोर अँधार है, इंजोर माँगथे देश,
पतझड़ छाया, मधुमाश माँगथे देश,
बलिदान कर अहसास माँगथे देश,
एक धाँव फिर से तेलंगा आउर सुभाष माँगथे देश॥

तनी - मनी करिया पन्ना फाड़ल जाहे किताब से,
इतिहास के सजाल जाहे खादी आउर गुलाब से,
पूछथों का ले तेलंगा आउर सुभाष कर पता नखे ,
कैसे कईह देंव बीतल सत्ता कर कोनो खता नखे॥

एका-एक ऊ तेलंगा आउर सुभाष न जाने कहाँ हेराय गेलयं
आउर सब कर सब कर्णधार मीँठी नींद में सुइत गेलयं ,
मानू या न मानू फर्क है साजिश आउर भूल मेँ,
कोई षड्यँत्र छुपल है, समय कर धूर (धुल) में॥

गाँधी कर अहिँसा मँत्र कान्दते चलल जाथे ,
देखू ई लोकतँत्र सुतल चलल जाथे ,
आजादी कर आत्महत्या पर सभे का ले गूंगा बनल हैं ,
इकर खुदकसी कर जिम्मेदार के है ?

एखन चरका खादी कर ई आँधी नी चाही ,
दस-बीस साल एखन गाँधी नी चाही ,
हेराल शेर कर तलाश माँगथे देश,
एक धाँव फिर से तेलंगा आउर सुभाष माँगथे देश.....!!!

रचनाकार - अशोक "प्रवृद्ध"

सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

नागपुरिया कहनी - वार्ड पार्षद कर चुनाव - अशोक "प्रवृद्ध"

वार्ड पार्षद कर चुनाव
अशोक "प्रवृद्ध"

ग्राम पंचायत कर चुनाव होवे वाला रहे। रेखा कर भाई गणपति सिंह ग्राम पंचायत कर चुनाव में वार्ड पार्षद पद लगीन (खातिर) चुनाव में खड़ा होय रहयं। इच्छा तो मन में बहुत साल से रहे कि गाँव - पंचायत कर मुखिया चाहे सरपंच बईन के गाँव में आपन बाप - दादा वाला रूतबा के कायम करू , मगर सरकार कर द्वारा भूरिया कमिटी कर सिफारिश के लागू कई र देवल जाल से क्षेत्र में पड़े वाला सब कर सब एकल पद माने मुखिया, प्रमुख आउर जिला परिषद कर अध्यक्ष कर पद अनुसूचित जनजाति कर सदस्य मन ले आरक्षित होय जाय रहे । आउर तो आउर सरकार कर आरक्षण नीति कर चलते पंचायत कर पंचायत समिति कर सदस्य कर चुनाव में भी ऊ खड़ा होवेक लाईक नी रहलयं । सेले मन में बहुत आस रहे पार्षद बनेक कर । पार्षद बनल बाद हेने - ओने जोईड़ - जाईड़ के साईंत उपमुखिया बनेक कर जोगाड़ होय सकेला। से हे सोईच के घर कर सभे सगा - सम्बन्धी मन चुनाव प्रचार में जुटल रह्यं ।  आइज क्षेत्र में पड़ेक वाला हरिजन मोहल्ला कर दौरा करेक रहे ।
हरिजन बस्ती में घुसतेहें रेखा कर नाक- भौं चढ़े लागलक । गणपति सिंह देखलयं तो बहिन के धमकालयं ,' देख रेखा ! मोके इ मन से वोट लेवेक है।"
'ठीक है, दा (भइयाा) !' कइहके रेखा सामान्य होवेक कर कोशिश करे लागलक । सब केउ फूलमतिया कर घर में घुसलयं । फूलमतिया सबकर ले चाह (चाय) मंगुवालक ।' का दा (भैया) ! ईकर घरक चाह (चाय) ? मोर तो जीव (जी) ख़राब होवथे । ' रेखा आपन  भाई कर कान में फुसफुसालाक ।'ओह रेखा ! तोयं समूचे (पूरा) खेल के बिगड़ाय देबे । मोके वार्ड पार्षद बईन जाएक दे । फिर तोयं फूलमतिया कर चाह (चाय) कर तीता - कडुवा (कसैला) स्वाद के भी भूईल जाबे । "  गणपति सिंह धीरे सुन (से) कहलयं ।
'अच्छा दा (भैया) । आब समईझ गेलों । " कईहके रेखा चाह (चाय) कर चुस्की लेवे लागलक।

रचनाकार - अशोक "प्रवृद्ध"

शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

नागपुरी कविता - दुश्मनी में तो उकर आईज भी कोनो अंतर नीं आलक - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता -
दुश्मनी में तो उकर आईज भी कोनो अंतर नीं आलक
          अशोक "प्रवृद्ध"

दुश्मनी में तो उकर आईज भी कोनो अंतर नीं आलक ,
ताज्जुब है बहुत दिन से एने कोनो पत्थर नी आलक।

उके दुई मील पैदल छोडेक जात रहों मोयं बस तक,
मोंयं उकर घर गेलों तो ऊ गेट तक बाहरे नी आलक ।.

जहाँ भी देखू बैठल हैं लाइन तोडे़क वाला ,
मोंयं लाइन में लागल राहों से ले नम्बर नी आलक।

चईढ़ हों देईख के हर एक सीढ़ी सावधानी से,
जहाँ पर आईज हों मोंयं ऊ जगन उईड़ के नी आलों।

ज़माना कर हवा कर असर ऐतना जेयादा है,
कि कोनोंत्योहर में बेटा पलईट के घर नी आलक।

केखो मश्वरा का देवं कि ईसन जी कि उसन जी,
मोर ख़ुद कर समझ में जब ई जीवन भर नी आलक ।

रचनाकार - अशोक "प्रवृद्ध"

गुरुवार, 17 अक्तूबर 2013

नागपुरिया प्रेरक कहनी - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरिया प्रेरक कहनी
   अशोक "प्रवृद्ध"

एक धाँव (बार) श्रीनाथ नाव (नाम)कर एगो बाम्भन (ब्राह्मण) निर्जन वन में बैठके पूजा करत रहे । ऊ जोन गछ (पेड)़ कर नीचे बैठल रहे , सोन (ओहे) गछ में एगो बकुला (बगुली) भी बैठल रहे ।  अचानक ऊ बकुला श्रीनाथ बाम्हन (ब्राह्मण) कर ऊपरे हईग देलक (बीट कईर देलक)। श्रीनाथ बाम्हन गोस्सा (क्रोध) होयके उके श्राप (शाप) दे देलक । देखते हें देखते ऊ बकुला जईल के भस्म होय गेलक । श्रीनाथ बाम्हन बहुत खुश होलक , ऊ सोचलक उकर से बइढ़के ई दुनिया में तपस्वी दोसर कोई नखे । ऊ ईकर बहुते (खूब) प्रचार कर्ल्क । तनिक (कुछ) दिनक बाद ऊ नजीक (पास) कर एगो गांव में भीख (भिक्षा) मांगे गेलक । गाँव कर एगो घर कर सामने पहुंईचके ऊ आवाज लगालक । घर कर मालकिन आपन पति कर सेवा में लागल रहे । ऊ बाहरे निकईल के उके तनी (कुछ) देरी रुकेक ले कहलक आऊर पति कर सेवा में लाईग गेलक । उके बाहरे आवेक में तनी देरी होय गेलक । बाहरे आवेक में होवल देरी से श्रीनाथ ढ़ेईरे (काफी) गोस्सा होलक । जब ऊ औरत भीख (भिक्षा) लेके बाहरे आलक तो बाम्हन गोसायके कहलक , “ तोंय मोके एतना इंतजार (प्रतीक्षा), का ले करवाले ?” औरत कहलक -  “बाम्हन देवता मोयं कोनो बकुला (बगुली) ना लागों कि राउरे कर शराप से भस्म होय जाबूँ ? मोयं आपन कर्तव्य पालन में लागल रहों सेले राउरे के तनी देरी रूकेक पड़लक । नहीं तो मोयं राउरे के इंतजार (प्रतीक्षा) नी करवातों । राउरे गोस्सा न करू । क्रोध मनुष्य कर सबसे बड़ शत्रु होवेला । केकरो से कष्ट मिलेक बाद भी जे आदमी उकर जवाब हिंसा से नी देवेला ओहे बाम्हन होवेला । इ बात कर पुष्टि करेक ले मोंय राउरे के  एगो ठाँव (जगह) बताथों । हुवां राउरे जाऊ आउर उकर से मिलू ।"

ऊ औरत कर बताल ठाँव (स्थान) पर श्रीनाथ गेलक । हुवांं एगो शिकारी रहत रहे । श्रीनाथ ऊ औरत कर सब बात ऊके सुनालक । शिकारी ऊके बैठालक आउर कहलक , “ बाम्हन देवता मोंयं जानवर मनके माईर के उनकर मांस बेचेक कर काम करोना । मोके जानवर मनक जान लेवेक अच्छा नी लागेल लकिन (पर) ई मोर मजबूरी ह्य । आपन धर्म कर पालन करेक ले ई काम करोना ।  सबकर आपन - आपन कर्तव्य आउरं धर्म होवेला आउर इकर पालन सबके करेक चाही ।” कर्तव्य कर महत्व कर बात सुइनके श्रीनाथ कर आंईख खुईल गेलक । कालेकि उके आपन भूल कर पता चईल जाय रहे ।

रचनाकार - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - चित चोरी गुपुते सोहाय

नागपुरी कविता - चित चोरी गुपुते सोहाय

चित चोरी गुपुते सोहाय
नहीं करू छेड़ छाड़ सुनु छैला नन्दलाल
हम्हों जे देबैं गरिआय तलेना कह्बयं ,
                                                 गोपीन के बोलेहों नई आय।।
गगरी के देलें फोरी फारलेन अनारी सारी
नींदा करबेन घरे जाय तले ना कहबयं
                                         गोपीन के बोलेहों नई आय।।
घरे दही चोरी करैं घाटे बले हिया हरयं
चित चोरी गुपुते सोहाय तले ना कहबयं
                                         गोपीन के बोलेहों नई आय।।
लेहु छुपे छुपे 'धन' तन मन सजीवन
डावं डावं होवे नहीं हाय तले ना कहबयं

नागपुरी कविता - असरा तो है

नागपुरी कविता - असरा तो हय

असरा तो हय
जिनगी भेलक महा कठिन
डहर  बहुत कठिन है तेउ
मंजिल कर असरा तो हय!

मन मरू देशक मृग होलक
मरीचिका हय छलजल हय
सुखल हय कंठ ओठ सब
तरसत जिउ तरासल हय

हय तातल तवा गोड़तर
कहीं नीर कर पातर कुन
धरा कर असरा तो हय!

गरज घुमड़ छने छने हय
ठनका संगे लवका हय
संका हय बहेक-दहेक
घोर विपदा कर अवधा हय

नदी में हय बाढ़ आवल
दह भंवर बेगो हय तेउ
डोंगा कर असरा तो हय!

राइत हय पाला छेछत
ठिठुरत जीउ जहान हय
रोका पोरा तर  लुकाल
अनदाता कर प्राण हय

मुर्गा बोलत उठिहें सब
मन भर तापिहें आइग
पसंगी कर असरा तो हय !

दिल में डबकत हय उनकर
अजब खिसाल समुन्दर अब
धूसर हय  मनकर आकाश
छायक उठी बवंडर अब

जिनगीक चिनगी हय राखतर
फूस-फूस,भुस-भुस , धुंगा हय
ज्वाला कर असरा तो हय!

सोमवार, 14 अक्तूबर 2013

नागपुरी कविता - श्री राम महिमा अशोक "प्रवृद्ध"

               नागपुरी कविता - श्री राम महिमा
                         अशोक "प्रवृद्ध"


लेईके अवतार धरती पर रउरे , जगत कर उद्धार करली ,
धन्य! धन्य! हे राम! धन्य हइ ! रउरे सबके प्यार करली ।

आग्या माईन के पिता कर रउरे , त्याईग देली सिंहासनों के ,
सीता, लक्ष्मण कर संग पैदल, वन जाएक स्वीकार करली ।

केवट आपन नाव में , नदी पार करालक खाली (केवल) ,
सेकर (उकर) बदले में केवट के ,भव सागर से पार कईर देली ।

मौन पड़ल प्रतिमा पर भी, दया द्रिष्टि डालली जब रउरे ,
पत्थर पड़ल अहिल्या के छूईके , उके श्राप से ताईर देली ।

बन वासी मनके भी रउरे , गला लगायके अपनाली ,
खायके जूठा फल, शबरी के , एक अनोखा प्यार देली ।

कतना दानव रहे एगो मानव, सिया हरण कईर के  देखालक,
मानवता क्र रक्षा करेक ले , वानर दल तैयार करली ।

जेके राक्ष मन तड़्पालयं , ऊ मन में रउरे दया देखाली ,
मुक्ति जटायू के देली जेकर , रावण पाइङ्ख (पर) काईट देलक ।

पवन पुत्र कर साथ, गगन में चलेक कठिन नहीं रहे लेकिन,
नील आउर नल कर बनाल पुले में , चईलके सागर पार करली।

रावण बध कर बाद  रउरे हें , लंका नरेश बईन सकत रही ,
लेकिन  विभीषण के हें  रउरे , लंका कर सब राईज दे देली ।

वन से लौईट देखाली रउरे, प्रजा प्रेम कर रूप अनोखा,
जन साधारण कर कहल में भी, सीता के बनवास दे देली ।

शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

नागपुरी कविता - ऊ बिपईत राम कर छउवा हके - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - ऊ बिपईत राम कर छउवा हके
अशोक "प्रवृद्ध"

ओह-हो हो
छी-छी-छी , धर्म भ्रष्ट कईर देलक !
का होलक महाराज ?
अरे-रे-रे ... एगो अछूत
बिहाने - बिहान
मोके छूईके अपवितर कईर देलक ...
फिर नहायेक पडी जाएके ... ओफ़्फ़-हो !!
का होलक ? कैसे होलक पंडित महाराज ??
ऊ देखू  , ऊ छउवा (बच्चा) ...
परीक्षा देवे स्कूल जात रहे
मोयं नी ध्यान देलों
जाते जाते
एके धाँव हपईट के
ऊ मोर गोड़ (पैर) छूय लेलक !!
तो का होलक ! छऊवे (बच्चे) तो है !!
आउर तो आउर
ऊ राउर गोड़ (पैर) छूईके
आशीर्वादे तो लेलक राउर से !!!
अरे-रे-रे ... का तोयं नी जानींस
कि -
ऊ बिपईत राम कर छउवा (बच्चा) हके ???

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

नागपुरी कहनी - आस्था - अशोक "प्रवृद्ध"

                  नागपुरी कहनी - आस्था
                    अशोक "प्रवृद्ध"


विनोद बाबू घोर एकेश्वरवादी यानी ईश्वर एक हय कर समर्थक  हयं । ईश्वर कर अवतारवाद आउर मूर्ति पूजा में उनकर तनिको (कतई) विश्वास नखे। ऊ सिर्फ परमेश्वर कर  सर्वोत्तम नाम ॐ में विश्वास करयना आउर ॐ छोइड के ऊनके ईश्वर कर कोनो आउर रूप अथवा अवतार में विश्वास नी करयनां। एक दिन एगो काम से उनकर घर पहुंचलों तो का देखथों कि हुवां सत्यनारायण स्वामी कर मूर्ति राखल हय आउर सत्यनारायण स्वामी कर कथा होवथे । विनोद बाबू आपन पत्नी कर साथ बईठके सत्यनारायण स्वामी कर कथा कर श्रवण करत हयं । कथा कर बाद में हवन आउर आरती में भी उनकर उत्साह आउर समर्पण -भाव देखतेहें बनत रहे।

           कथा ख़तम होवेक कर बाद मोयं उनकर से पूईछ लेलों -  ''राउरे तो एकेश्वरवादी हई आउर मूर्ति पूजा कर विरोधी ?''

' हाँ '' कईह के ऊ उत्तर देलयं ।

मोयं पूछलों - ''एखन तनी देरी पईहले जे मोयं देखलों ऊ का रहे ?''

विनोद बाबु समझालयं  '' मोर ईश्वर में आस्था नखे तो का होलक ? आपन पत्नी में तो आस्था हय । उकर से प्रेम हय। का हमरे आपन सगा - सम्बन्धी आउर आदमी मन कर की ख़ुशी ले (खातिर) ऊ नीं कईर सकीला जे उ मनके अच्छा लागी ?''                  

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

नागपुरी दोहा -राजनीति -अशोक "प्रवृद्ध"


       नागपुरी दोहा - राजनीति
         अशोक "प्रवृद्ध"

जहाँ नेवला-साँप कर , होय जाएला मेल।
कुछ इसनेहें समझू , राजनीति कर खेल।।

रहयनां हरदम ताक में, कब के के देंव पछाड़।
जेकर होवी वर्चस्व तनी , लेवयनां उकरे आड़।।

पाँच साल कर बाद में, जनता आवेला इयाईद।
खाली वोट (मत) कर चलते (वास्ते), होवेला फरियाईद।।

शासन-सत्ता पाय के , भऱयनां आपन पेट।
सात पीढी़ कर ले , दौलत लेवयनां समेट।।

घर में जेकर हो लागल, रिश्वत कर बाजार।
ऊ कैसे जानी भला, मँहगाई कर मार।।

ग़लत नीति मनक करे, जे भरपूर विरोध।
डालयनां उकरे, कदम चलेक में अवरोध।।

 अशोक "प्रवृद्ध"

बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

नागपुरी कहनी - नवरात्रि - अशोक "प्रवृद्ध"

  
                          नागपुरी कहनी - नवरात्रि
                             अशोक "प्रवृद्ध"

इलाका कर गंझु साहेब बाजार से निकलत रहयं ,  अचानक उनकर से  करीनाबाई टकरालक।
देखतेहें करीना बाई कहलक ‘कैसन हयं आपने गंझु साहेब ?
करीनाबाई ! मोयं ठीक हों।’
‘एगो नावां (नया)छोंडी़ (कन्या) मतबल नावां माल आहे कोठा में...आवब गंझु साहेब ’
‘नहीं करीनाबाई ! एखन तो नवरात्रि चलथे नी...एखन कन्या के हाथ लगाएक मना है।’
चाईर दिन बाद गंझू साहेब करीना बाई कर कोठा में रहयं ।
‘अरे लान ...करीनाबाई , नावां माल कने है?’
'गंझु साहेब ! आब का हाथ लगाब कन्या के ?’
‘आब तो सब कुछ लगाय लेबूं , नवरात्रि जे ख़त्म होय गेलक। जा जल्दी लेके माल लान। हाथ साफ करथों ।

रविवार, 6 अक्तूबर 2013

नागपुरी कविता - ईश्वर तोके है धिक्कार ! - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - ईश्वर तोके है धिक्कार !
               अशोक "प्रवृद्ध"

निर्मल  हृदय कर प्रार्थना
निष्कपट मन कर भावना
कोनो    नखे  सम्भावना
फिर   भी तोर साधना
  करथे ई  संसार !
ईश्वर  तोके है धिक्कार !

ई चीख कईसन आईज सुन
तनिक   ई आवाज सुन
ले  सुनाथे,   राज  सुन
तोरे हके ई व्यापार  !
ईश्वर  तोके है धिक्कार !

कहीं  तंत्र है, कहीं है मंत्र
चमचा  तोर है  स्वतंत्र 
का खूब ! है ई षडयंत्र
हर  जगह है अत्याचार  !
ईश्वर  तोके है धिक्कार  !

है   एगो मोरो  चाहना
होवी  अगर  मोरसे  सामना
एगो  सवाल है मोके पूछना
का दिल में है तोर प्यार
ईश्वर तोके है धिक्कार  !

रचनाकार - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी रचना - चौरासी लाख योनि (प्रजाति) - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी रचना - चौरासी लाख योनि (प्रजाति)
                अशोक "प्रवृद्ध"

राउरे मन आपन परिवार कर बड़ - बुजुर्ग मनक मुंह से तो ई जरूरे सईन  होवब कि -
"84 लाख योनि में जनम लेवेक बादे ई मनुष्य जन्म प्राप्त होवेला ,  सेले मनुष्य के जीवन में उचित कर्म करेक चाही ।"

भारतीय पुरातन ग्रन्थ मन भी बड़ -बुजुर्ग मनक ई बात कर समर्थन करयनां। पदम् पुराण में एगो श्लोक मिलेला , ऊ श्लोक कर अनुसार ई प्रथ्वी में एककोशिकीय, बहुकोशिकीय, थल चर, जल चर तथा नभ चर आदि कोटि (प्रजाति) कर जीव मिलेना। इ मनक न केवल संख्या बल्कि (अपितु) वर्गीकरण कर जानकारी भी हमरे के पद्म पुराण में लिखल मिलेला ।

जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यकः ।
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशवः, चतुर लक्षाणी मानवः ।।


जलज/ जलीय जिव/जलचर (Water based life forms) – 9 लाख (0.9 million)
स्थिर अर्थात पेड़ पोधे (Immobile implying plants and trees) – 20 लाख (2.0 million)
सरीसृप/कृमी/कीड़े-मकोड़े (Reptiles) – 11 लाख (1.1 million)
पक्षी/नभचर (Birds) – 10 लाख 1.0 million
स्थलीय/थलचर (terrestrial animals) – 30 लाख (3.0 million)
मानवीय नस्ल के (human-like animals) – 4 लाख 0.4 million
कुल = 84 लाख ।

ई मईधका (प्रकार) से हमरे के 7000 वर्ष पुराना पद्म पुराण कर मात्र एके गो श्लोक में न केवल पृथ्वी में मौजूद माने कि  उपस्थित प्रजाति मनक संख्या मिल जायेला बल्कि उ मनक वर्गीकरण भी मिलेला ।

आब देखू आधुनिक विज्ञान कर मत -

आधुनिक जीवविज्ञानी मन आईज तक मात्र (लगभग) 13 लाख (1.3 million) पृथ्वी पर उपस्थित जीव तथा प्रजाति मनक नाव (नाम) पता लगायेक पाईर हयं आउर उ मनक  कहेक  है कि एखनो हमरे कर आंकलन जारी है इसन लाखों प्रजाति मनक खोज, नाम आउर अध्याय एखन बाचल (शेष) हैं , जे धरती में उपस्थित आहयं (है) । एक अनुमान कर आधार पर हर साल (प्रतिवर्ष) लगभग 15000 नावा (नयी) प्रजाति  सामने आवथे।
आश्चर्य कर बात हके कि आधुनिक जीव वैज्ञानिक मन एखन तक आपन हाड़ - तोड़ मेहनत से करीब (लगभग) पिछला 200 साल में मात्र 13 लाख कर करीब प्रजाति कर खोज करेक पाईर हयं । आउर हमरे मनक पूर्वज मन एखन से हजारों - लाखों बरीस पईहले चौरासी लाख योनि (प्रजाति) कर बारे में बखूबी जानत रहयं लेकिन आधुनिक वैज्ञानिक मन ई बात के स्वीकार करेक ले लजायनां। लाखों बरीस ई ले कहथों कि जीव मनक प्रजाति कर बारे में आदि सनातन ज्ञान कर भंडार वेद में भी वर्णन मिलेला। ईकर से साफ़ पत्ता चलेला कि पुरातन भारतवर्ष में हमरे कर पूर्वज मन कतना दूर कर ज्ञ्यान प्राप्त कईर रहयं जेके हमरे मन आपन नादानी से भूलाय गेली आउर अंग्रेज मनक अधूरा ज्ञान कर पीछे दौड़ेक लाईगही।

शनिवार, 5 अक्तूबर 2013

नागपुरी रचना - अंग्रेज सरकार कर इंडियन पुलिस एक्ट

नागपुरी रचना - अंग्रेज सरकार कर इंडियन पुलिस एक्ट

1857 जैसन क्रान्ति दुबारा फिर न होवोक सेले अंग्रेज सरकार इंडियन
पुलिस एक्ट (INDIAN POLICE ACT )बनालक आउर पुलिस बनालक ।
उकर मे एगो धारा बनालक राइट टू ऑफेन्स (right to offence )| इकर
मतलब रहे आउर है कि पुलिस वाला राउरे पर
जेतना मर्जी ओतना लाठी माइर सकेला राउरे कुछ नी कइर सकीला आउर
अगर राउरे लाठी पकडेक कर कोशिश करीला तो राउरे पर मुकद्दमा चली।
इंडियन पोलिस एक्ट (indian police act ) जैसन 34700 कानून अंग्रेज
सरकार भारत के गुलाम बनाएक कर खातिर बनाए रहे।आउर बहुत शर्म कर
बात है ! उ सब क्र सब कानून आइज भी वैसन कर वैसने देश में चलथयँ ।एक
भी कानून के हमरे मन ६५-६६बरीस में बदले नी पारली। बस फर्क एतना है
कि पइहले चरका माने कि गोर अंग्रेज़ मन शासन करत रहयं आइज काइल
करिया अंग्रेज़ मन शासन करथयं।

नागपुरी कविता - ओहे ठाँव

नागपुरी कविता - ओहे ठाँव

हाम तो घ्ाुइर आली फिन ओहे ठाँव
मुदा ठाँव कर मतलब
खाली माटी, पखना आउर मैदाने होवेला का?
कहाँ हय ऊ लाल पोंछ वाला चिरई
आउर जामुन कर हरियरी
कहाँ हय मिमियायक वाला छगरीमन
आउर कटहर वाला साइँझ?
केंइद कर सुगंध
आउर उकर ले उठेक वाला कुनमुनाहट कहाँ हय?
कहाँ गेलक सउब खिड़की
आउर चांदो कर बिखरल केंस?
कहाँ हेराय गेलक सउब बटेरमन
आउर चरका खुर वाला हिनहिनात सउब घ्ाोड़ामन
जिनकर सिरिफ दाहिना गोड़ हें खुला छोड़ल जाय रहे?
कहाँ चइल गेलक सउब बरातमन
आउर उनकर खाना-पीना?
सउब रीत-रेवाज आउर खस्सीवाला भात कहाँ चइल गेलक?
धन कर बाली से भरल-पूरल खेत कहाँ गेलक
आउर कहाँ चइल गेलक फूलवाला पौधामनक रोआँदार बरौनीमन?
हमिन खेलत रही जहाँ
लुकाछिपी कर खेइल खउब देइर-देइर तलक
ऊ खेतमन कहाँ चइल गेलक?
सुगंध से मताय देकवाला पुटुस कर झारमन कहाँ चइल गेलक?
स्वर्ग से सोझे छप्पर उपरे उतइर आवेकवाला
फतिंगामन कहाँ गेलयँ
जेके देखतेहें
बुढ़िया कर मुँह से झरेक लागत रहे गारी:
हामर चितकबरी मुरगी चोरायकवाला
तोहिन सउब कर सउब, बदमास लागिस -
हामके मालूम हय तोयँ उके पचायक नि पारबे
चल भाइग हिआँ से बदमास
तोयँ हमर मुरगी के कोनो रकम नि हजम करेक पारबे।

नागपुरी कविता - बेस तइर बिदाइयो नइ

नागपुरी कविता - बेस तइर बिदाइयो नइ

बेस तइर बिदाइयो नइ
हाम तो नि कांदली बिल्कुल
बिदा होयक बेरा
का ले कि नइ रहे फुरसत हमर ठिन जरिको
आउर नि रहे लोर -
बेस तइर हमिन कर बिदाइयो नइ होलक।
दूर जात रही हमिन
लगिन हमिन के कोनो मालूम नि रहे
कि हमिन बिछुड़े जात ही हर-हमेसा ले
तसे का तइर ढरकतलक इसन में
हमिन कर लोर?
जुदाइ कर ऊ गोटेक राइत रहे
आउर हमिन जागलो नइ रही
(आउर नइ बेहोसी में निंदाले रही)
जोन राइत हमिन बिछुड़त रही हर-हमेसा ले।
ऊ राइत
नि तो अंधरिया रहे
नि तो उजियार
आउर नि चांद हें असमान में उइग रहे।
ऊ राइत
हमिन से बिछुइड़ गेलक हमिन कर तरेगइन
दिया हमिन कर सामने खउब करलक नाटक
रतजगा करेक कर -
इसन में कहाँ से सजातली
जगायक वाला
अभियान।

नाग्पुरी गीत - नींद न परे राती एहो दैया,

नाग्पुरी गीत - नींद न परे राती एहो दैया,

नींद न परे राती एहो दैया,
झुरत पलंग वैसी मने मन...
घायल बिहरबान, थिर न रहत प्राण
निसु दिने रे दैया
दहत मदन तन छने-छन.
सिहरी उठति छाती
नींद न परे राती एहो दैया,
झुरत पलंग वैसी मने मन...
-
घासीराम

नागपुरी कविता - होय गेलक भोर

नागपुरी कविता
होय गेलक भोर

होय गेलक भोर
चरैई चुनगुन
कराथैंय शोर
उठू किसान
जागू जवान
लगाऊ अपन जोर
खेती बारी करू
पुरजोर
होय गेलक भोर
चरैई चुनगुन
कराथैंय शोर
खेत में बनल
रही हरियाली
तब घर में रही खुशयाली
चरैई चुनगुन
कराथैंय शोर
होय गेलक भोर
छउवा-पूता सबै जागा
पढेक लिखेक
स्कूल जावा
पईढ लिख के
बाना होसियार
पावा नोकरी
और रोजगार
चरैई चुनगुन
खूब करू मेहनइत
धरती उगली सोना
भरल रही अन्न से
घर केर कोना-कोना
चरैई चुनगुन
कराथैंय शोर
होय गेलक भोर,
होय गेलक भोर.

नागपुरी कविता - कहिनी के भाई सहिनी - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - कहिनी के भाई सहिनी
अशोक "प्रवृद्ध"

कहिनी के भाई सहिनी
उ बसालयं तीन गो गाँव
दूगो उजईड़ल एगो बसबे नी करलक।।
हुवां बसलयं तीनगो कुम्हार
दूगो अंधरा एगो कर आँइखे नी रहे।।
उ मन बनालयं तीनठो हँड़िया
दूगो फुटल रहे एगो कर पेंदीये नी रहे।।
उके बेईच के मिललक तीन पइसा
दुगो खोटा एगो चलते नी रहे।।
उकर से कोडुवालयं तीन गो पोखरा
दुगो सुखल एगो में पानीये नी रहे।।
हुवां से पकड़लयं तीनगो मछरी
दूगो सड़ल रहे एगो कर पोटाय नी रहे।।

ऊ मछरी मन के कोनो गउहकीं मिलबयं होले बताब भाई -बहिन संगी - सहिया मन!

घासीराम का एक दुर्लभ छंद (नागपुरी कविता)

घासीराम का एक दुर्लभ छंद
(नागपुरी कविता)

कारे कजरारे सटकारे घुँघवारे प्यारे ,
मणि फणि वारे भोर फबन लौँ ऊटे हैँ ।
बासे हैँ फुलेल ते नरम मखतूल ऎसे ,
दीरघ दराज ब्याल ब्यालिन लौं झूठे हैँ ।
घासीराम चारु चौंर जमुना सिवार बोरोँ ,
ऎसी स्याम्ताई पै गगन घन लूटे हैँ ।
छाई जैहै तिमिर बिहाय रैनि आय जैहै ,
झारि बाँध अजहूँ सभाँर वार छूटे हैँ ।

झारखण्ड गीत :- राग-नागपुरी जनानी झुमईर

झारखण्ड गीत :- राग-नागपुरी जनानी झुमईर

धनी-धनी झारखंड, भारत हमरे.
जेकर सेना बानर-भालु, चर-अचरे,
गे साजैन जहां झरना झर , झर झरे….
लोहा अबरख, तांबा धरती भीतरे.
नदी-नाला-गाढा-ढोढा सोना हैं सगरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
कंद, आऊर मूल, फल पहार ऊपरे
केंद , कनवद श् बैर पियार पिठवैरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
जडी-बुटी दवाई बीरो जंगल, भीतरे.
गछ में रेशम, लाह मऊध ऊपरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
कटई-कोयनार-फुटकल जीरहुल कचनारे.
डुमईर पाकईर जामुन कठहर बढहरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
सखुआ दतुन, करू मडवा छपरे.
झांख-झुरी जलावन गरीब अमीरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
लम्बा-लम्बा गछ देखु बन आऊर पतरे.
छोटे-छोटे आम्बा फरे रस हैं भीतरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
बांस केरा हंढुवा संना अंचारे.
खुखडी भुं जल खाऊ रुगडा केर झोर,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
मडुआ-गोंदली गोडा टाईड टिकुरे.
माय लेगीन घांस देखु सगर हरियरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
रंग-बीरंग चंरंई-चूनगून, चेरे-बेरे करे.
हैरला गुंडरी तीतीर मुरगी मेंजुरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
कुंड से बारी पटे ईन्दरा पोखरे.
आलू-भाटा-कुबी-पालक बीलैंती मटरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
कय किसीम भाखा बोलयं गांव-नगरे.
खायं-खोटयं मेहीं मोट छीलका गोरगोरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
टीरी-टीपी गाय देखु चुके चुका गरे.
हिंदु आऊर मुसलमान किरीस्तान घरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
पपीता मिसडेगा केर गुमला केर चाऊरे.
पलामू केर घीव से धूप-दीप जरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
ओडीया ढकिया बने बने हरफारे.
जोतु खेत बुनू बीहीन चढत असारे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे ….
बरसाती आलु कोडू चढत कुवारे.
अलटीमेटम नैनीताल कुफरी चमत्कारे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
नींबू नारंगी केरा रोपहु अंगुरे.
अझो झाईर टमरस झबरल फरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
रेलगाडी मोटर छुटे बडे भीनसरे.
जनेमन तने जाऊ महिमानी करे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
पेठीया बजार लागे सवदा खातीरे,
नुन-तेल तीयन तमकु किनहु जरूरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
पानी से बीजली बने जरे घरे-घरे.
हटीया बोकारो टाटा लागत सुंदरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
रज्जरपा छीनमांथा मांय दामोदर कीनारे.
रकत के धार बहे कटत बकरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
नेतरहाटे दिवाकर चलु दरसन करे.
हापामुनी महांमाया पुजहु अवसरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
गिरजा, महजीद, मंदिर शोभत गुरूद्वारे.
मौलवी, पादरी, पंडीत गरंथी सबेरे
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
बीर बीरसा मुंडा ठाकुर जगरनाथपूरे.
भीखारी गणपईत राय शहीद परस्परे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
रांची हजारीबाग टाटा नगरे.
झारखंडक बाजा बाजे गह, गह करे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
सीधु – कान्हु बलीदानी रहैयं जोरगरे
संथाले संथाली शोभंय बाबा देवधरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
पंचपरगना सील्ली बुण्डु, चासाचासी करे.
नर-नारी मनोहारी छोह, नाचा सगरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
डेगे-डेगे परब आवे बरखा हंय घनघोरे.
जीतिया करम तीज बाजत मांदरे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
हिंदु आऊर मुसलमान, ईसाई-संवसारे.
झारखंडी भाई सभे शिक्ख, सरदारे.
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
नीज धरम-करम पर रहु ईमानदारे.
दादा-भईया नाता-गोता झारखंड सरकारे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
पोठी संगे जोंक पंऊरे रहु होशियारे.
झारू आपन गोड हांथ देखु चाईरो करे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….
कहत श्याम नाथ करत हंथजोरे.
बसंते जगावे कोईल कुहु-कुहु करे,
गे साजैन जहां झरना झर, झर झरे….

नागपुरी कविता - चेतावनी

नागपुरी कविता - चेतावनी

सिकार पर निकलेक कर सउक रखेक वाला सउब झन
आउर सिकार उपरे झपट्टा मारेक कर ओर करेक वाला सउब झन
अपन बंदूक कर
मुँह कर निसाना मइत कर हमर खुसी बट
इ एतइ महँग ना लागे
कि इकर उपरे एको ठो गोली खरच करल जाओक
(ई एकदमे बरबादी हय)
तोयँ जे देखत हिस
हरिन कर छउवा तइर
बेस तेज आउर मनमोहना
डेगत-कूदत
इया तीतर तइर पाँइख के फड़फड़ाते -
ई मइत बुइझ लेबे कि
बस एहे खुसी हय
हमर बिसुवास कइर
मोर खुसी कर इकर से
कोनो लेना-देना नखे।

नागपुरी कविता - ई बदरी बइरसी

नागपुरी कविता - ई बदरी बइरसी
ई बदरी बइरसी
ई बदरी बइरसी
पुरबे से उठाय हे
पछिमे तक जाय हे
उतरे और दखिने
सगरो पसराय हे
कईटको फांक नी दीसे
अकासे ढंपाय हे
आब धरती सरसी
ई बदरी बइरसी
गरजत हे ना ठनकत हे
घनगर गुन्गुवात हे
ई बदरी गंभीर बुझात हे
पोटराय हे चागुरदी से
धरती के हरसल हय
श्याम गुनी हुलसी
ई बदरी बइरसी
जोन खेत अरियाल हे
पइन नाला सोझिआल हे
बाँध पिंड बरिआर आउर
रोके के झोंकेक तइआर हय
तहां पानी छलकी
ई बदरी बइरसी
सुरु सीरी सीरी समसी
ई बदरी बइरसी
नी मानी ई बदरी
कुछ नी राखी अपन ठीन
सब के उझईल देई
'कृष्णं बन्दे जगद्गुरुम्'
करिया घनश्याम हय
आब केऊ नइं तरसी
ई बदरी बइरसी
अथाह समुन्दर कर
पानी तो नुन्छार हय
नून के छोइड के
गुण के उठाय के
भइर के ह्रदय में
चइल देहे बांटक लेगिन
नेवईर नेवइर , झुइक झुइक
सउब के बइरसाय देवी
तरसल मनके
सरसाय देवी
पइनगर आउर गुनगर हय
उदार हय , फलदार हय
ई नेवरी आउर लहसी
ई बदरी बइरसी

नागपुरी कविता - मने 'धन 'बरंडो उठाय

नागपुरी कविता - मने 'धन 'बरंडो उठाय

सब दने रायं रोपो , मारो लूटो झाँपो तोपों
कहों एकांत नइ भेंटाय तो अइसन में
का पूजा पाठ करल जाय।।
हरी भजे सब खने , चल मन बन दने
गाँव घरे कलह बलाय तो अइसन में
का पूजा पाठ करल जाय।।
सुपट एकांत जहाँ ,मन में अंदोर तहां
नाना काम संग्राम कराय तो अइसन में
का पूजा पाठ करल जाय।।
बाहरे विरोध कहीं ,भीतरे संतोष नहीं
मने 'धन 'बरंडो उठाय तो अइसन में
का पूजा पाठ करल जाय।।

नागपुरी कविता - पछिम से का आलक हवा

नागपुरी कविता - छिम से का आलक हवा
 

पछिमे से का आलक हावा
घरे - घर आब बाज़ार भे गेलक।
मोल -तोल हय डेग -डेग में
रिसता कार-बार भे गेलक।
दारु किडनैप लंगापन तो
युग कर संसकार भे गेलक।
बुढ़वा घर कर होल संतरी
छौंड़ा तो फरार भे गेलक।
आइग लागलक का बन में
चन्दन तक अंगार भे गेलक।

नागपुरी प्रार्थना - धरती वन्दना - अशोक "प्रवृद्ध"


                      नागपुरी प्रार्थना -    धरती वंदना
                               अशोक "प्रवृद्ध"

मोंय बंदत हौं दिन-रात वो ,मोर धरती मईया,
जय होवोक तोर, मोर छईयां ,भुइंया जय होवोक तोर ।
राजा-परजा ,देवी-देवता तोर कोरा में आवैन,
जईसन सेवा करेन तोर उ मन तईसन फल पावैन।
तोर महिमा कतई बखान करोन ओ मोर धरती मईया ,
जय होवोक तोर , मोर छईयां भुइयां , जय होवोक तोर !

अर्थात -हे धरती माता !
 मै दिन-रात तेरी वन्दना करता हूँ ।
 हे मुझे शीतल छाया देने वाली भूमि !
तेरी जय हो !
राजा-प्रजा , देवी-देवता , तेरी गोद में
आए और जैसी सेवा की , वैसा ही फल पाया . हे धरती माता !
तेरी महिमा का मैं कितना बखान करूं !

नागपुरी रचना- नवरात्रि कर वैज्ञानिक -आध्यात्मिक अवधारणा -अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी रचना - नवरात्रि कर वैज्ञानिक -आध्यात्मिक अवधारणा
             अशोक "प्रवृद्ध"

हिन्दू पंचांग कर आश्विन माह कर नवरात्रि के शारदीय नवरात्रि कहयनां । पावन नवरात्रि कर इ काल आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से लेके नवमी तिथि तक कर होवेला । विज्ञान कर दृष्टि से शारदीय नवरात्र में शरद ऋतु में दिन छोट होवे लागेला आउर राइत बड़। हुवें चैइत महीना कर चैत्र नवरात्र में दिन बड़ होवे लागेला आउर राइत घटेला माने छोट होवे लागेला। ऋतुं कर परिवर्तन काल कर असर मानव जीवन पर ना पडो़क , सेले साधना कर बहाने हमरे मनक ऋषि-मुनि मन इ नव्रात्रि क्र नौ दिन में उपवास कर विधान कईर हयं।शाइन्त (संभवत:) इले कि ऋतु कर बदलाव कर इ समय (काल) में मनुष्य खान-पान कर संयम आउर श्रेष्ठ आध्यात्मिक चिंतन कईर के स्वयं के , अपने - आप के भीतरे से स्वस्थ ,सबल (मजबूत) बनाएक पावी (सकी), ताकि मौसम कर बदलाव कर असर हमरे मन पर ना पड़े। सेहेले इके शक्ति कर आराधना कर पर्व भी कहल जाहे। येहे कारण है कि भिन्न - भिन्न नव (नौ) गो स्वरूप में इ अवधि में जगत जननी कर आराधना-उपासना करल जायेला (जाएला) । नवरात्रि पर्व कर समय में प्राकृतिक सौंदर्य भी बइढ़ जाएला। इसन लागेला कि जैसे ईश्वर कर साक्षात् रूप येहे हके । प्राकृतिक सुंदरता कर साथे-साथ वातावरण सुखद होय जाएला। आश्विन मास में मौसम में न अधिक ठंडा रहेला आउर न अधिक गर्मी। प्रकृति कर इ रूप सब कर मन के उत्साहित कईर देवेला । जेकर से नवरात्रि कर  समय शक्ति साधक मनक ले आउर अनुकूल होय जाएला। तब नियमपूर्वक साधना आउर अनुष्ठान करयनां । व्रत-उपवास, हवन आउर नियम-संयम से उमनक शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक शक्ति जाईग जाएला । जे उ मनके ऊर्जावान बनायनां । इ काल में लौकिक उत्सव कर साथे - साथ प्राकृतिक रूप से ऋतु परिवर्तन होवेला । शरद ऋतु कर शुरुआत होवेला , बारिश कर मौसम बिदा होवे लागेला । इ कारण से बनल सुखद वातावरण इ संदेश देवेला कि जीवन कर संघर्ष आउर बीतल समय कर  असफलता मन के पीछें छोईड़ के मानसिक रूप से सशक्त प्रवृद्ध आउरं ऊर्जावान बईनके नावा आशा आउर उम्मीद कर साथ आगे बढ़ब।
जय माँ अम्बे ।
राउरे मन के शुभ नवरात्रि ।
रचनाकार - अशोक "प्रवृद्ध" 

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

नागपुरी कविता -राजनीति के सबके बुझेक आउर बुझवायेक पड़ी। - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता -राजनीति के सबके बुझेक आउर बुझवायेक पड़ी।
                      अशोक "प्रवृद्ध"

राजनीति के सबके बुझेक आउर बुझवायेक पड़ी।
देश फंसल आहे विदेशी मनक जाल में, इके छोड़ायेक पड़ी।।

सइहके लाखों कर बरबादी, मिलहे नकली आजादी।
इके नकली से असली बनायेक पड़ी।।

कोनो वंश करी राइज, चाहे जनता कर समाज।
जतना जलदी, जइसे होवी, इके फरियायेक पड़ी।।

बड़-बड़ सेठ-जमींदार, पुलिस-पलटन हथियार।
सब लुटेरा, हत्यारा के मिटायेक पड़ी।।

रूस, अमरीका से यारी, येहे हके सब दुनिया कर बीमारी।
हमरे कर देश के इ यारी कर बीमारी से बचायेक पड़ी।।

कहीं देश फिर ना टूटे, टूटल-फूटल है सेहो जुटे।
सब कर हक कर झंडा के ऊंचा फहरायेक पड़ी।।

सौ में पांचे गो हैं जहां सुखिया, बाकी दुनिया ऊपर दुखिया।
घरे-घर क्रांति कर संदेश पहुंचायेक पड़ी।।

बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

नागपुरी कविता - गरीब कर पेट - अशोक "प्रवृद्ध"

नागपुरी कविता - गरीब कर पेट

गरीब कर पेट
एगो  मशीन हके
जे एक दिन कर खाना से भी
चलाय लेवेला दू -  चाइर दिन तक काम।

जब सब वैज्ञानिक
व्यस्त हैं
अपन - अपन प्रयोग में
कि कैसे ऊर्जा कर खपत कम होवी
तब एगो गरीब
सहस्राब्दी कर नोबेल पुरस्कार जीत लेवेला
कालेकि अपन जीवन में ऊ
एक तिहाई या आधा
ऊर्जा बचायके राखेला
बिना कोनो खर्चा के।

आउर इ कोनो नावा बात नखे
इ तो हजारों साल
से होते आवथे

तब भी
वैज्ञानिक मन
व्यस्त हैं
ऊर्जा कर बचत कर चक्कर में।

निकइल रही डहर में दोस्त खोेजेक ले (नागपुरी कविता) अशोक "प्रवृद्ध"

निकइल रही डहर में दोस्त खोेजेक ले (नागपुरी कविता)
          अशोक "प्रवृद्ध"

निकइल रही डहर में दोस्त खोेजेक ले
सभे खड़ा रहयं जहाँ अपन हाथ में खंजर लेके
मन में होय गेलक खौफ पाँव चलथे आगे
घरी - घरी आँइख चइल जाथे पाछे देखेक ले

पूरा सफर ईसने कटलक मिललक नहीं वफ़ा
घुरली आपन घर आपन दिल के खाली लेके
भला सौदागर मनक महफ़िल में बैठके का करती
जे मन तैयार रह यं हर जजबात के बेचेक ल

नागपुरी कविता - इंतजार - अशोक "प्रवृद्ध"

इंतजार
अशोक "प्रवृद्ध"
जेठ कर दुपहरिया में खटथी
ऐहे उम्मीद में कि एक दिन सावन आवी
तो मन कर धरती हरियर होय जई ।

बाकी

हाय रे हमर पागल परान
घाम में जइर के राख होय गेलक
राह निहारत लाश होय गेलक
आऊर आब

ऐहे फसल ले (खातिर) का सावन का भादो ?

नागपुरी कविता - गरीबी - अशोक " प्रवृद्ध"

गरीबी
अशोक "प्रवृद्ध"
गरीबी !
ना हँसेक देवेल ना कांदेक
ना जीयेक देवेल ना मरेक
साँप- छुछुंदर नीयर गति कइर देवेल
पागल मति कइर देवेल
खोइर-खोइर के खायेल
आऊर

मजबूर कइर देवेल आदमी के
आइग में चलेक ले ,
गदहो के बाप कहेक ले ,
आऊर दुधारू गाय कर लाइथ सहेक ले।

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

नागपुरी कहनी (नागपुरिया कथा) द्रोणाचार्य आउर कृपाचार्य कर जनम कर कहनी अशोक "प्रवृद्ध"


नागपुरी कहनी (नागपुरिया कथा)

    द्रोणाचार्य आउर कृपाचार्य कर जनम कर कहनी
                अशोक "प्रवृद्ध"

गौतम ऋषि कर बेटा (पुत्र) कर नाव (नाम) शरद्वान रहे। उनकर जन्म बाण कर साथे होय रहे। उनके वेदाभ्यास में तनिको रुचि नी रहे आउर धनुर्विद्या से उनके बहुते ढेइर लगाव रहे। उ धनुर्विद्या में एतना निपुण होय गेलयं कि देवराज इन्द्र भी उनकर से भयभीत रहे लागलयं । इन्द्र भगवान उनके साधना से डगमगुवायक ले (खातीर) नामपदी नाव (नाम) कर एगो देवकन्या के शरद्वान जगन भेजलयं। शरद्वान उ देवकन्या कर सुन्दरता से एतना प्रभावित आउर उतेजित होय गेलयं कि उनकर वीर्य निकइल के फ़ेकाय गेलक आउर एगो सरकंडा में आयके गिरलक । उ गिरल वीर्य सरकंडा कर दूइ भाग में बटाय गेलक,जेकर एगो भाग में से कृप नाव  कर छोड़ा छउवा (छौवा/बालक)  उत्पन्न भेलक आउर दोसर भाग से कृपी नाव कर एगो मैयां (छोड़ी) छौवा (कन्या) जनम लेलक (उत्पन्न भेलक)। कृप भी धनुर्विद्या में आपन बापे (पिता) नीयर (जईसन) पारंगत होय गेलयं। भीष्म ईहे कृप के पाण्डव आउर  कौरव मन के शिक्षा-दीक्षा देवेक खातीर राखलयं आउर उ बाद में कृपाचार्य कर नाव (नाम) से प्रसिद्ध होलयं ।

कृपाचार्य पाण्डव आउर कौरव मनके शिक्षा देवे  लागलयं। जखन उ मनक सुरुआती शिक्षा ख़तम होय गेलक सेखन (तब) अस्त्र-शस्त्र कर बढ़िया से शिक्षा देवेक ले भीष्म द्रोण नाव (नाम) कर एगो आचार्य के आउर राइख लेलयं।

इ द्रोणाचार्य जी कर भी एगो विशेष कहनी (कहानी) हय । एक धांव (बेर) भरद्वाज मुनि यज्ञ करत रहयं। एक दिन उ गंगा नदी में नहात रहयं। ओहे जगन उ घृतार्ची नाव (नाम) कर एगो अप्सरा के गंगा जी में से नहाय के निकलते देइख लेलयं। उ अप्सरा के देखेक कर बाद उ भरद्वाज मुनि कर मन में काम वासना क्र भावना जाइग गेलक आउर उनकर वीर्य निकइल के गिर गेलक ,जेके भरद्वाज मुनि एगो यज्ञ पात्र में राइख देलयं।

आगे चइल के ओहे यज्ञ पात्र से द्रोण कर जनम (उत्पत्ति) होलक। द्रोण आपन पिता क्र आश्रम मेंहे रइह के चाइरों वेद आउर अस्त्र-शस्त्र कर ज्ञान में पारंगत होय गेलयं। द्रोण कर संगे प्रषत् नाव (नाम) कर एगो राजा कर बेटा (पुत्र) द्रुपद भी शिक्षा लेवत रहे ,तब संगे रहते-रहते द्रोण आउर द्रुपद में बहुते गहरा दोस्ती होय गेलक ।

ओहे बेरा माने ओहे आस -पास कर समय में परशुराम आपन समूचा धन- दउलत ब्राह्मण मनकर बीच में दान कइरके महेन्द्राचल पर्वत में तप करत रहयं । एक बेरा कर बात हके कि द्रोण परशुराम कर भीरे गेलयं आउर उनकर से दान देवेक ले विनती करे लागलयं , उ घरी तो परशुराम ठीना (जगन) कोनो नी  रहे तो इसन में परशुराम कहलयं (बोललयं) - “वत्स ! तोयं देरी से आले , मोयं तो आपन सब कुछ बहुते पहीलेहें ब्राह्मण मनके दान में दे देलों। आब तो मोर ठीना कोनों नखे , खाली अस्त्र-शस्त्र बाचल हय । अगर तोयं कहबे तो मोयं तोके उकेहे दान में दे सकोना।
 द्रोण ईहे तो चाहत रहयं उ तुरन्ते कहलयं , “हे गुरूदेव ! रउरे से अस्त्र-शस्त्र पायके मोके बहुते ख़ुशी होई , लेकिन रउरे के मोके इ अस्त्र-शस्त्र कर शिक्षा-दीक्षा भी देवेक पड़ी आउर उकर विधि-विधान भी बताएक पड़ी।”
 इ तरी माने इ नीयर परशुराम कर चेला (शिष्य) बइन के द्रोण अस्त्र-शस्त्र कर संगे -संगे समूचा विद्या कर  अभूतपूर्व ज्ञाता होय गेलक।

शिक्षा पूरा करेक कर बाद द्रोण कर शादी (वियाह) कृपाचार्य कर बहीन कृपी कर संगे होय गेलक। कृपी से द्रोण के एगो बेटा (पुत्र) भेलक । उनकर उ बेटा कर मुंह से जन्मखे घरी (बेरा) अश्व कर माने कि घोड़ा जइसन आवाज निकले लागलक। से चलते उ छउवा (बालक) कर नाव (नाम) अश्वत्थामा राखल गेलक। कोनो कारन वस राजाश्रय नी मिलेक कारण से द्रोण आपन पत्नी कृपी आउर बेटा अश्वत्थामा कर संगे गरीबी से रहत रहयं । एक दिन उनकर बेटा अश्वत्थामा दूध पीयेक खातीर बड़ा कांदत (रोअत) रहे, लेकिन गरीब होवेक कर चलते द्रोण आपन बेटा के दूध लाइनके देवेक नी सकत रहयं। अचानक उनके आपन बचपन कर मित्र राजा द्रुपद क्र इयाइद आय गेलक जे कि पाञ्चाल देश कर नरेश माने राजा बइन जाय रहे।
द्रोण द्रुपद जगन (ठीन) गेलयं आउर जायके कहलयं कि हे “मित्र ! मोंय रउरे कर बचपन कर दोस्त हकों । मोर एगो छोट बेटा हय , उके दूध कर बहुते जरूरत हय , दूध खातीर एगो गाय चाही येहे ले (खातीर) बड़ा आस लेइके हाम रउरे जगन आय ही।” एतना बात सुनल बाद द्रुपद आपन बचपन कर दोस्ती भुलाय के  आपन राजा (नरेश) होवेक कर अहंकार में आयके द्रोण ऊपरे बिगइड़ उठलयं आउर कहलयं , “तोके अपने- आप के मोर (दोस्त)  मित्र बताएक में लाज नखे लागत ? दोस्ती खाली आपन बराबइर कर आदमी कर संगे होवेला,ना कि तोर जईसन गरीब आउर मोर जईसन राजा कर संगे ।”

अपमानित होयके द्रोण उ जगन से लौइट आलयं आउर कृपाचार्य कर घर में गुप्त रूप से रहे लागलयं । एक दिन कर बात हके कि युधिष्ठिर आपन भाई मनक संगे गेंदा खेलत रहयं तो उ मनकर गेंदा एगो कुइयाँ में गिर गेलक। ओहे बेरा द्रोण ओने से होयके जात रहयं तो युधिष्ठिर कर नजर द्रोण पर परलक तो उनकर से कुइयाँ में से गेंदा निकलायंक ले कहलयं । उ मनक बात के सुइन के द्रोण कहलयं , "हम गेंदा जरुर निकलाय देब अगर तोहरे मन हमर परिवार खातिर खाना  कर जोगाड़ कइर देबा हले।” युधिष्ठिर बोललयं , “देव ! अगर हमरे कर पितामह कर अनुमति होय जई तो रउरे हर हमेसा लगीन (खातीर) भोजन कर चिन्ता से मुक्त होयके भोजन पाय सकीला ।” द्रोणाचार्य तुरंत एक मुट्ठी सींक लेइके उके मन्त्र से अभिमन्त्रित कइर देलयं आउर धनुष- वाण से एगो सींक से गेंदा के छेईदके गेंदा के सींक से फंसाय देलयं फिन (फिर) दोसरा सींक से गेंदा में फँसल सींक के छेदलयं । येहे तरी एक सींक से दोसरा सींक में छेदा करते - करते उ गेंदा के कुइयाँ में से बाहरे निकलाय देलयं ।

इ अद्भुत प्रयोग कर बारे में आउर द्रोण कर सभे विषय मंे प्रकाण्ड पण्डित होवेक विषय में मालूम होवल पर भीष्म पितामह इनके राजकुमार मन के उच्च शिक्षा देवेक ले (खातीर) नियुक्त कइर के राजाश्रय में ले लेलयं । येहे द्रोण आगे चइलके द्रोणाचार्य कर नाव (नाम) प्रसिद्ध , मशहूर भेलयं ।